Tuesday, February 27, 2018

बढ़ते हृदय आघात और प्रभामण्डल -सतीश सक्सेना

आज मन बेहद व्यथित है , सुबह सुबह Rahul Singh जी के बड़े भाई Rajesh Kumar Singh जी के हृदयाघात से अचानक जाने की खबर पढ़कर, दौड़ने के लिए बाहर जाने का मन नहीं हुआ ! अचानक स्वस्थ इंसान ऐसे कैसे चला गया कल हमारा नंबर होगा अतः इस पर ध्यान क्यों न दें !
हाल के दिनों में बढ़ते हुए हृदयघातों से शायद ही कोई परिवार अछूता बचा होगा, यह बेहद चिंताजनक है , अधिकतर लोग सम्पन्नता की निशानी, आराम और सुविधा उपलब्ध होना मानते हैं और सुविधा का मतलब मेहनत न करना है और वह हम धन के बदले दूसरों से कराएंगे !
यह मूर्खता और मूढ़ता की पराकाष्ठा है अफ़सोस कि विद्वान् और बौद्धिक सम्पदा संपन्न लोग अपने बढ़ते प्रभामंडल के नीचे नाचते नाचते, आसन्न मौत की आहट भी महसूस नहीं करते !
मानवीय शरीर लगभग 100 वर्ष के लिए इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि इसमें होने वाली टूटफूट और क्षरण की मरम्मत स्वतः होती रहे और इसमें गरीबी रईसी का कोई भेदभाव नहीं होता और न मानवीय हस्तक्षेप (दवा दारु ) की कोई जरूरत , इसकी सारी मरम्मत खुद ब खुद होती है बशर्ते शारीरिक प्रतिरक्षा शक्ति मजबूत हो !
शरीर का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा हाथ और पैरों के लिए दिया गया है जो स्वतः चलते समय हिलते हैं और शारीरिक शक्ति इनके हिलने से चार्ज होती रहती है , जो लोग रोज दौड़ने के अभ्यस्त हैं उनके पेट, सीने और मस्तिष्क में हर गिरते कदम के साथ कम्पन होते हैं और महत्वपूर्ण अवयवों का व्यायाम आसानी से हो जाता है जो मात्र टहलने से संभव नहीं सो मित्रों से निवेदन है कि आंखे खोलें और समय रहते दौड़ना सीखना शुरू करें ताकि हृदय में आये परिवर्तन रिवर्स हो सकें !
यह बेहद आसान है और आपका बचना, आपके हँसते हुए परिवार के लिए आवश्यक है !
सस्नेह मंगलकामनाएं !
साथ कोई दे, न दे , पर धीमे धीमे दौड़िये !
अखंडित विश्वास लेकर धीमे धीमे दौड़िये !
समय ऐसा आएगा जब फासले थक जाएंगे
दूरियों को नमन कर के, धीमे धीमे दौड़िये !

Wednesday, February 21, 2018

बूढ़े होते हताश मन को, बच्चों सा नचाने को दौड़ें -सतीश सक्सेना

रिश्तों  में होते झगडे का , अवसाद मिटाने को दौड़ें !
बूढ़े होते हताश मन को , बच्चों सा नचाने को दौड़ें !

कमजोर नजर जाने कब से , टकटकी लगाए दरवाजे 
असहाय अकेली अम्मा के,आंसू को सुखाने को दौड़ें ! 

उसने अपना पूरा जीवन, केवल तुम पर कुर्बान किया  
तेरा वैभव काम नहीं आया,ये ग्लानि मिटाने को दौड़ें !

जैसे ही दौलतमंद बने, मेहनत त्यागी, बेकार हुए  
बरसों से जकड़े घुटनों को , दमदार बनाने को दौड़ें !

आजाद देश में देशभक्त, उग आये कुकुरमुत्तों जैसे
खादी पहने इन धूर्तों की , पहचान कराने को दौड़ें !

Friday, February 9, 2018

उम्मीदें कुछ कम कर बेटा -सतीश सक्सेना

अर्थ अनर्थ है,अक्सर बेटा !
शब्द अर्थ,रूपान्तर बेटा !


क्रूर, कुटिल, सूखे पत्थर में ,
धड़कन,न तलाश कर बेटा !

सूख गए , तालाब प्यार के
अब न रहे, पद्माकर बेटा !

इस निष्ठुर जंगल में तुमको
मिलें खूब , आडम्बर बेटा !

अच्छे दिन जुमले हैं केवल,
उम्मीदें कुछ कम कर बेटा !


Monday, February 5, 2018

हम रहें या न रहें पदचिन्ह रहने चाहिए -सतीश सक्सेना


अबतक लगभग 300 गीत कवितायेँ एवं इतने ही लेख लिख चुका हूँ मगर प्रकाशनों, अख़बारों, कवि सम्मेलनों और गोष्ठियों में नहीं जाता और न प्रयास करता हूँ कि मुझे लोग पढ़ें या सुने ! 300 कविताओं में मुझे अपनी एक भी कविता की कोई भी छंद पंक्ति याद नहीं क्योंकि मैं उन्हें लिखने के बाद कहीं भी सुनाता नहीं , न घर में न मित्रों में और न बाहर , मुझे लगता है अगर मैंने साफ़ स्वच्छ व आकर्षण लायक लिखा है तो लोग उसे अवश्य पढ़ेंगे चाहे समय कितना ही लगे , लेखन अमर है बशर्ते वह ईमानदार हो ! कवि नाम से चिढ है मुझे अब यह नाम सम्मानित नहीं रहा , कवि उपनाम धारी हजारों व्यक्ति अपनी दुकानें चमकाते चारो और बिखरे पड़े हैं !

मुझे पहला उल्लेखनीय सम्मान आनंद ही आनंद संस्था ने दिया जब विवेक जी ने मुझे राष्ट्रीय भाष्य गौरव पुरस्कार के लिए हिंदी साहित्य से, लोगों के चयन का जिम्मा लेने के लिए अनुरोध किया था , आश्चर्य यह था कि मैं आनंद ही आनंद संस्था और उसके संस्थापक आचार्य विवेक जी के बारे में पहले से कुछ नहीं जानता था मगर उन्हें मेरे लेखन को पढ़कर मेरी ईमानदारी पर भरोसा हुआ जिसे मैंने इस वर्ष तक सफलता पूर्वक निभाकर अब उनसे इस पदमुक्ति (अध्यक्ष भाष्य गौरव पुरस्कार ) के लिए अनुरोध किया है, लम्बे समय तक एक पद से जुड़े रहना मुझे उचित नहीं लगता !
पिछले माह भारत पेट्रोलियम स्टाफ क्लब में विशिष्ट अतिथि के रूप में आमत्रित किया गया जहाँ मैं किसी को नहीं जानता था, हिंदी साहित्य जगत में लम्बे समय से कार्यरत एवं हिंदुस्तानी भाषा अकादमी के अध्यक्ष सुधाकर पाठक जी का अनुरोध था कि मैं वहां के स्टाफ को अपने स्वास्थ्य अनुभव के बारे में दो शब्द कहूं , इससे पहले सुधाकर पांडेय जी से न कभी भेंट हुई और न कोई परिचय था वे मेरी रचनाओं के मात्र मूक पाठक थे जिनसे मेरा कोई पूर्व परिचय न था !
भारत पेट्रोलियम में मुझे मंच सहभागिता का अवसर मिला जाने पहचाने ओलम्पियन गोलकीपर रोमियो जेम्स के साथ , वे लोग समझना चाहते थे कि रिटायर होने के बाद भी मैं मैराथन कैसे और क्यों दौड़ा और उससे क्या स्वास्थ्य लाभ मिले ? और इस वार्षिक उत्सव के अवसर पर उन्होंने बिना कोई मशहूर नाम के चुनाव के मुझ जैसे एक अनजान व्यक्ति को चुना , मुझे लगता है सुधाकर पाठक का व्यक्तित्व इस नाते विशिष्ट है और उनसे मिलने के बाद विश्वास है कि वे हिंदी जगत में नए आयाम कायम करेंगे !
ऐसे ईमानदार सम्मान अच्छे लगते हैं बशर्ते उसके पीछे अन्य उद्देश्य और प्रयास निहित न हों ! अफ़सोस कि हिंदी जगत में अधिकतर सम्मान प्रायोजित अथवा निहित व्यक्तिगत फायदे लिए होते हैं इस माहौल में आचार्य विवेक जी जैसे व्यक्तित्व का होना सुखद है एवं निश्चित ही शुभ संकेत है !

हिंदी जर्जर, भूखी प्यासी

निर्बल गर्दन में फंदा है !
कोई नहीं पालता इसको
कचरा खा खाकर ज़िंदा है !
कर्णधार हिंदी के,कब से
मदिरा की मस्ती में भूले !
साक़ी औ स्कॉच संग ले
शुभ्र सुभाषित माँ को भूले
इन डगमग चरणों के सम्मुख, विद्रोही नारा लाया हूँ !
भूखी प्यासी सिसक रही,अभिव्यक्ति
को चारा लाया हूँ !




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