Friday, June 24, 2016

भगवान आपकी रक्षा करें - सतीश सक्सेना

आखिरकार किसी डॉ ने इस धंधे से जुड़े काले सत्य को उजागर करने की कोशिश करते हुए पहली बार अपनी चुप्पी तोड़ी है ,डॉ  अरुण गाडरे एवं डॉ अभय शुक्ला ने अपनी पुस्तक  "Dissenting Diagnosis " में जो सत्य उजागर किये हैं वे वाकई भयावह हैं ! लोगों की मेहनत की कमाई को मेडिकल व्यापारियों द्वारा कैसे लूटा जा रहा है इसका अंदाज़ा तो था पर इस कदर लूट है, यह पता नहीं था !

डॉक्टर भगवान का स्वरुप होता है क्योंकि वह मुसीबत में पड़े व्यक्ति को भयानक बीमारी से बाहर निकालने में समर्थ होता है , इस तरह रोगी के परिवार के लिए वह देवतुल्य ही होता है मगर आज समीकरण उलट चुके हैं , डॉक्टर बनने के लिए लाखों रुपया खर्च होता है , उसके बाद क्लिनिक पर किये गए करोड़ों रूपये जल्दी निकालने के लिए, धंधा करना लगभग अनिवार्य हो जाता है अफ़सोस यह है कि यह धन निकालने का धंधा , मानव एवं रोगी शरीर के साथ किया जाता है !
अधिकतर डॉक्टर सामने बैठे रोगी को सबसे पहले टटोलते हैं कि वह मालदार कितना है , और इस समय हर रोगी अपने आपको रोग मुक्त होना चाहता है अतः उसे धन खर्च करने में ज्यादा समस्या नहीं होती और वह डॉक्टर की हाँ में हाँ मिलता रहता है , 

पहली ही मीटिंग में उसके प्रेस्क्रिप्शन में 5 से 10 टेस्ट लिख दिए जाते हैं और साथ ही लैब का नाम भी , जहाँ से टेस्ट करवाना है ! बीमारी के डाइग्नोसिस के लिए आवश्यक टेस्ट में, कुछ ऐसे टेस्ट भी जुड़े रहते हैं जिनके बारे में उक्त लैब से पहले ही, डॉक्टर कोरिक्वेस्ट आई होती है ! जब आप लैब पंहुचते हैं तब यह आवश्यक बिलकुल नहीं कि सारे टेस्ट किये ही जाएंगे , जिन टेस्ट को करने के लिए लैब का अधिक कीमती केमिकल और समय खर्च होता है उनकी रिपोर्ट अक्सर आपके डॉक्टर की राय से बिना किये हुए ही दे दी जाती है एवं आपके डॉक्टर एवं लैब की आपसी सुविधा से यह टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव या पॉजिटिव अथवा नार्मल कर दी जाती है !लीवर पॅकेज , किडनी पैकेज , वेलनेस पैकेज और अन्य रूटीन पैकेज टेस्ट के सैंपल अक्सर बिना वास्तविक टेस्ट किये नाली में बहा दिए जाते हैं एवं उनकी रिपोर्ट कागज पर, डॉक्टर की राय से, जैसा वे चाहते हैं , बनाकर दे दी जाती है ! 
एक निश्चित अंतराल पर इन फ़र्ज़ी तथा वास्तविक टेस्ट पर आये खर्चे को काट कर, प्रॉफिट में से डॉक्टर एवं लैब के साथ आधा आधा बाँट लिया जाता है ! अप्रत्यक्ष रूप से रोगी की जेब से निकला यह पैसा , उस रोग के लिए दी गयी डॉक्टर की फीस से कई गुना अधिक होता है , अगर आपने डॉ को फीस ५०० रूपये और लगभग 8000 रुपया टेस्ट लैब को दिए हैं , तब डॉक्टर के पास लगभग 4800 रुपया पंहुच चुका होता है , जबकि आपके हिसाब से आपने फीस केवल 500 रुपया ही दी है ! लगभग हर लेबोरेटरी को सामान्य टेस्ट पर ५० प्रतिशत कमीशन देना है वहीं एम आर आई आदि पर 33 % देना पड़ता है !


आपरेशन थिएटर का खर्चा निकालने को ही कम से कम एक आपरेशन रोज करना ही होगा अतः अक्सर इसके लिए आपरेशन केस तलाश किए जाते हैं चाहें फ़र्ज़ी आपरेशन ( सिर्फ स्किन स्टिचिंग ) किए जाएं या अनावश्यक मगर ओ टी चलता रहना चाहिए अन्यथा सर्जन एवं एनेस्थेटिस्ट का व्यस्त कैसे रखा जाए ! अाज शहरी भारत में लगभग हर तीसरा बच्चा, आपरेशन से ही होना इसका बेहतरीन उदाहरण है !

भगवान आपकी  रक्षा करें  ..... 

Tuesday, June 21, 2016

संगमरमरी फर्शों पर ही, पाँव फिसलते देखे हैं -सतीश सक्सेना

ड़े बड़ों के,सावन में अरमान मचलते देखे हैं 
सावन भादों की रातों, ईमान बहकते देखे हैं 

गर्वीले, अय्याश, नशे में रहें , मगर ये याद रहे  
संगमरमरी फर्शों पर ही, पाँव फिसलते देखे हैं 

कई बार मौसम भी, अपना रंग दिखा ही देता है
सावन की मदहोशी में, अंगार पिघलते देखे हैं 

झुग्गी से महलों के वादे, सदियों का दस्तूर रहा
राजमहल ने मोची के भी सिक्के चलते देखे हैं 

मूर्ख बना के कंगालों को, जश्न मनाते महलों ने
अक्सर ठट्ठा मार मारकर, जाम छलकते देखे हैं 

Friday, June 17, 2016

सब लोग क्या कहेंगे - सतीश सक्सेना

कलमधारियों के बीच शायद मैं अकेला बुद्धिहीन, विवेकहीन हूँगा जिसने ६० वर्ष की बाद दौड़ना शुरू किया कई विद्वान मित्र सोंचते होंगे कैसे दिन आ गए हैं कि पहलवानी करने वाले लोग भी कलम उठाकर अपने आपको लेखक अथवा कवि समझते हैं बहरहाल मैं सोंचता हूँ कि एथलीट कोई भी बन सकता है बशर्ते उसमें कुछ नया करने का मन हो , मजबूत अच्छा शक्ति के आगे बढ़ती उम्र का कोई बंधन, उसे रोक नहीं पायेगा !
लोग कहेंगे कि आप खुश किस्मत हैं कि आपको इस उम्र में कोई बीमारी नहीं है अन्यथा इस उम्र में दौड़ के दिखाने में, नानी याद आ जाती ! मैं सोंचता हूँ , बीमारी तो कई थीं और हैं भी , मगर मैं उन पर कभी ध्यान ही नहीं देता , मेरा यह विश्वास है कि बीमारी ठीक करने का काम मेरे शरीर की प्रतिरोधक शक्ति का है जिसे मैं दौड़कर और मजबूत बना रहा हूँ ! 
ध्यान देता हूँ तो सिर्फ दौड़ने पर ताकि बढ़ता भयावह बुढ़ापा दूर दूर तक नज़र भी न आये और मुझे हर रोज सुबह लगातार ५-१० किलोमीटर दौड़ता देख, डर के कहीं छिप जाए कि यह आदमी पागल है कौन इससे पंगा ले !
जब सुबह मोहल्ले में सब सो रहे होते हैं उस वक्त कुछ एक टहलने वालों के सामने से दौड़ता हुआ पसीने से लथपथ जब मैं अपने घर में घुसता हूँ तब बहता हुआ पसीना अमृत जैसा लगता है और लोग आश्चर्य चकित होते हैं कि कमाल है इस उम्र में यह दौड़ क्यों रहा है उस समय उनके इस हैरानी के अहसास से ही मेरी सारी थकान गायब हो जाती है और चेहरे पर मुस्कान आ जाती है !
मुझे याद है ५ वर्ष पहले मैंने कुकिंग गैस का सिलेंडर एक झटके से उठाया था और मेरे सीधे हाथ की सॉलिड मसल्स एक झटके से टूट कर  अपनी जगह से हटकर लटक गईं थी उस दिन लगा था कि लगता है वे दिन गए जब खलील खां फ़ाख्ते उड़ाया करते थे , मगर आज दौड़ने के साथ ही वह मसल्स फिर रिपेयर होकर न केवल पहले से अधिक ताकतवर बन गयी है बल्कि अब अपने आपको अधिक  शक्तिशाली महसूस करता हूँ !
कल २ बजे की तेज धूप में २ किलोमीटर सड़क पर पैदल चलकर जब टपकते पसीने के साथ मॉल में घुसा तब कार से उतरते लोगों को देख बड़ा सुकून महसूस हो रहा था कि मैं वह कर सकता हूँ जो इस गर्मीं में इनके बस की बात नहीं और मैं वही हूँ जो अपनी पूरी युवावस्था में बस में कभी इसी लिए नहीं चढ़ा था कि दिल्ली की बसों में चढ़ने के लिए उनके पीछे भागना पडेगा ! पूरे जीवन पैदल न  चलने वाला व्यक्ति प्रौढ़ावस्था या बुढ़ापे में, जो भी आप समझें , बिना रुके, लगातार 10 किलोमीटर दौड़ सकता है , इसका अहसास ही, पूरे दिन दिमाग को तरोताजा रखने के लिए काफी है !
-मुझे याद है रनर का सबसे मुश्किल पहला महीना जब मैं रनिंग की कोशिश कर रहा था , उन दिनों पैरों में तेज दर्द होता था लगता था अब नहीं दौड़ पाउँगा वह दर्द अब कहाँ गया इसका पता ही नहीं चला  .... 
-मुझे याद है कि 50 वर्ष की उम्र में, ह्रदय की धड़कन तेज होने पर, एक बार मैं पूरी रात हॉस्पिटल में ऑक्सीजन के सहारे रहा तब लोगों ने कहा था कि बाज आइये अब आपकी उम्र हो गई है मगर अब ६२ वर्ष में ,ह्रदय लगता है दुबारा जवान हो गया है 
-बढे ब्लड प्रेशर का कभी कोई इलाज नहीं किया न कराया आजकल जब चेक करता हूँ , परफेक्ट जवानी वाला  82 / 140 आता है !
-कॉन्स्टिपेशन लगता है कभी था ही नहीं  .... 
- उँगलियों तक खून का बहाव लाने के लिए पागलों की तरह तालियां बजाना कब का बंद कर चुका हूँ !
सो अपनी शानदार तोंद को , बढ़िया लम्बे कुर्ते से छिपाए मंच पर बैठे साहित्यकारों, कवियों , लेखिकाओं से निवेदन है कि इस लेख पर सरसरी नजर न डाल , ध्यान से पढ़ें और कल से जॉगिंग के लिए घर से निकलने का संकल्प लें, भले ही गुस्से में गालियाँ मेरे हिस्से में आएं मगर प्लीज़ सुबह सवेरे ट्रेक पर जाने में अधिक न सोचिये कि सब लोग क्या कहेंगे 
याद रखें हमारे देश में सबसे अधिक डायबिटीज़ तथा ह्रदय रोगी हैं तथा रनिंग इन सबका सबसे अच्छा और निरापद इलाज है , Running is the best cardio exercise ...
आप सबके स्वास्थ्य के लिए चिंतित .... 

Wednesday, June 15, 2016

तुम मिलोगे तो ही,पर जमीं पर नहीं -सतीश सक्सेना

हम भी यूँ तो गिरेंगे, जमीं पर नहीं !

जीते जी तो झुकेंगे, कहीं पर नहीं !
हर गली से, गुज़रते हैं , हँसते हुए
वे मेहरबां सभी पर, हमीं पर नहीं !

हंसने का भी समय, हो मुक़र्रर यहाँ 
खूब खुल के हंसें पर गमीं पर नहीं ! 

वैसे हंसकर कहूँ , यदि बुरा न लगे 
तुम निछावर हुये हो, हमीं पर नहीं ! 

पर भरोसा सा है, आओगे एक दिन 
तुम मिलोगे तो ही,पर जमीं पर नहीं !

रनिंग की जद्दोजहद पर यह लेख लड़कियों, महिलाओं के लिए भी है - सतीश सक्सेना

Running ka Bachpan- "Appreciate a novice that's the only advice"

Appreciation and encouragement do wonders for a kid (and to a novice runner) taking baby steps--> balancing/ falling/ trying --> and the baby walks --> finally runs :) A novice runner tries, gets breathless, overcomes inhibitions, manages pain and finally a star runner is born...!
It doesn't really matter where you are, what you are or who you are; What really matter is your Will to succeed and belief "I think I can..."


कोच रविन्दर की यह संक्षिप्त पोस्ट मेरी नज़र में शायद उनकी सबसे बेहतरीन पोस्ट है जो एक अनाड़ी मगर मजबूत इरादे वाले रनर के हौसले व मनोदशा बताने के लिए पर्याप्त है ! 
मुझे दुःख है कि अधिकतर शानदार रनर, जिन्होंने इस स्टेज पर पंहुचने के लिए ढेरों पसीना बहाया है अपना अनुभव शेयर नहीं करते हैं या यूं कहें कि उन्हें लिखने में झिझक होती है , काश वे यह सोंचते कि अगर वे अपना अनुभव लिख दें तो कितने नवोदित रनर उस दर्द तकलीफ से बच जाते जो वे अनाड़ीपन में झेल चुके हैं ! 
बड़े बूढ़े कहते हैं एथलीट या पहलवानों में बुद्धि नहीं होती अगर यह सच मान लें तो शायद यही कारण होंगे कि ज्यादातर रनर उसी श्रेणी के हैं जो पूरे जीवन ठोकरें खा खा कर, घायल मसल्स लेकर भी, लंगड़ाते हुए खुद शानदार रनर बन चुके हैं ,मगर वही अनुभव दूसरों को बांटने की समझ या दिल नहीं है ! यह शब्द कड़वे जरूर लगेंगे मगर सच्चाई यही है कि इस क्षेत्र में रनिंग के बारे में बहुत कम लिखा गया है !मैं सोंचता हूँ कि यह जिम्मेदारी अथाह कष्ट उठाकर प्रथम श्रेणी में दौड़ते उन्ही रनर की है जो अपने से जूनियर मगर तमीज की रनिंग सीखने की जद्दोजहद में लगे एक कमजोर रनर  के लिए कुछ देना नहीं चाहते !
फिर सोंचता हूँ कि बिना मदद के सीखना , शायद अधिक अच्छा है कि उड़ना सीखने के लिए बच्चे को कई बार ऊंचाई से गिरना पड़ता है , और अंततः वह अनन्त आकाश की गहराइयों में एक दिन शान से उड़ रहा होता है ! 
एक अनुभव साझा करता हूँ , मुझे दूसरों के मुकाबले पसीना कई गुना अधिक आता है, मगर मेरा ध्यान पसीने के जरिये बहते शारीरिक शक्ति के लिए बेहद आवश्यक साल्ट पर कभी नहीं गया , २१ मई को , 44 डिग्री तापमान में starry night
अजय कुमार 
marathon मुझे बेहद भारी पड़ा जब मैं पहले 10 किलोमीटर में ही लगभग दो-तीन लीटर पसीना बहा चुका था, हेडबैंड से टपकता नमकीन पसीना आँखों में जा रहा था और इस पसीने के जरिये बहते शरीर के बहुमूल्य साल्ट तेजी से शारीरिक शक्ति घटा रहे थे , शुरुआत से ही से मैंने अपनी गति धीमी रखी थी और जब 12 किलोमीटर के बाद मैंने अपनी गति बढ़ाना चाहा तब पैरों में क्रैंप आने शुरू हो गए ! मैं अपनी सीमित शारीरिक शक्ति को बचाते हुए गति धीमे कर जैसे तैसे दौड़ता रहा , काफ मसल्स में होते तीखे दर्द के बावजूद दृढ निश्चय था कि दौड़ हर हाल में पूरी करनी है , अंततः मेडल लेते हुए पसीने में बहते साल्ट की कमी की वैल्यू समझ आ चुकी थी ! 21 km रनिंग के बाद मुझे कम से कम 4-7 दिन का आराम करना चाहिए था जो
संतोष कुमार 
लगातार सौ दिन दौड़ने में शामिल होने के कारण  मैं नहीं कर सका और अगले दिन से ही दौड़ना शुरू कर दिया और 21 तारीख की हाफ मैराथन के बाद २२ तारीख से लेकर ४ जून तक मैं 53 किलोमीटर और दौड़ चुका था जिनमें पांच दिन मैं 5 किलोमीटर से 8 किलोमीटर तक दौड़ा था , बिना रेस्ट और एक्स्ट्रा साल्ट के लिए दौड़ने के पहले किलोमीटर में जांघों व् कमर में अजीब सी दुखन महसूस कर रहा था , listen to your body के तहत मुझे लगा कि मैं अति कर रहा हूँ अंततः मुझे अपनी लगातार रनिंग बंद करनी पड़ी , शायद इस दर्द का कारण मीठे का पूर्ण त्याग एवं बेहद पसीने के कारण बहते पोटेशियम सोडियम की कमी रही होगी ! 
अब पिछले ९ दिन से लगातार रेस्ट कर रहा हूँ , कल पहली बार काफी दिन बाद साइक्लिंग और पुशअप किये जो दर्द के दौरान, करना असम्भव हो गए थे ! 
यह आवश्यक है कि नए रनर के लिए हिम्मत दिलाते रहें उसके लिए तालियां बजाते रहें यही काफी होगा वह लड़खड़ाते हुए, गिरते हुए अपने पैरों से अपने आपको बैलेंस करके, दौड़ने की कोशिश तो कर रहा है, विश्वास रखिये आखिर कार एक दिन वह दौड़ेगा .... 
एक नौसिखिया रनर अपनी उम्र भूलकर, झिझक छोड़कर, भारी बदन लेकर भी, अपना दर्द और तकलीफें भुलाकर अगर दौड़ने निकला है तो विश्वास रखें कि वह एक दिन स्टार रनर बनेगा और शान से दौड़ेगा 
इससे कोई लेना देना नहीं कि आप क्या करते हैं, कहाँ रहते हैं ,और कौन हैं ? रनिंग के लिए आवश्यक सिर्फ आपकी इच्छा शक्ति और आत्मविश्वास है कि अगर वे कर रहे हैं तो मैं भी कर सकता हूँ !
अंत में मैं दो डायबिटिक रनर जिन्होंने अपनी डायबिटीज़ बिना दवा कंट्रोल कर ली उनके चित्र दे रहा हूँ , अजय कुमार एवं संतोष कुमार ने , न केवल बीमारी पर विजय पाई है बल्कि रनिंग में शानदार ऊंचाइयां भी हासिल की हैं ! 
हैप्पी रनिंग !!!

Monday, June 6, 2016

रूद्र अब की बाढ़ में इस देश का कूड़ा गहें - सतीश सक्सेना

रूद्र अब की बाढ़ में इस देश का कूड़ा गहें !  
धवल खद्दर वस्त्र पहने,कुछ मदारी तो बहें !

हे प्रभु भूकम्प का कुछ हो असर मेरे देश में !
नफरतों की,रंजिशों की,कुछ दिवारें तो ढहें !

धूर्त  गुरु, मक्कार चेले , हैं इसी उम्मीद में !
धुर गंवारों की गली में भाग्य इनके भी जगें !

मान्यवर की बेहयाई,है शिखर पर आजकल  
मन वचन कर्मों से डाकू,शक्ल से साधू लगें !

धर्म रक्षक भी परेशां, ताकत ए साईं की देख
कैसे इस दमदार शिरडी को भी,गेरू से रंगें ! 

Sunday, June 5, 2016

कैसी व्यथा लिखा कर लाई अपनी मांग भराई में - सतीश सक्सेना

अक्सर हम लोग सोंचते हैं कि हम जो कुछ बेईमानी अथवा गलती कर रहे हैं वह दूसरों को नहीं मालूम पड़ेगी, जीवन की भयंकर भूल साबित होती है आपके आसपास उपस्थित लोगों  एवं बच्चों तक को, आपकी वह चालाकी मालुम पड़ जाती है और आप उनकी नज़रों से कब के गिर चुके हैं यह आपको पता ही नहीं चलता !
बेहतर है कि परिवार में रहते हुए जान बूझकर बेईमानी न करें यह आवश्यक है कि परिवार के लोगों का महत्व आप समय रहते समझ भी लें अन्यथा आपके कमजोर समय में यह लोग बेमन ही साथ देंगे और उस समय आप कहेंगे कि हमने इतना किया फिर भी आज हमारी जरूरत में यह लोग ऐसा व्यवहार कर रहे हैं !
भारतीय समाज में बेईमानी और चालाकी के चलते, बुढ़ापे में लोग कष्ट में जी रहे हैं , और इसकी दोषी जितनी नयी पीढ़ी है पुरानी उससे कम नहीं, अफ़सोस होता है कि उन्हें यह नहीं मालूम कि उन्होंने गलती कहाँ की है अपनी बेवकूफियों , चालाकी और सत्ता के नशे में किस किस का कितना अपमान किया है वह भूलकर मुखिया लोग, खराब समय पर अपनी किस्मत को कोसते  पाये जाते हैं ! 
अक्सर इसकी  शुरुआत घर में बहू के आते ही होती है , किसी अन्य घर की लाड़ली बेटी को हम घर लाते ही वे शिकंजे लगाने शुरू करते हैं जो कि अपनी बेटी पर लगते नागवार महसूस होते हैं , बेटी की ससुराल में अपना अपमान होना जहां हमें जहर लगता है वहीँ बहू के घर वालों की दिल से इज़्ज़त न करना और उनसे भरपूर सम्मान की अपेक्षा करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं और ऐसा करते समय हम ये भूल जाते हैं कि इस दोमुंहे चरित्र को न केवल बहू ध्यान से देख रही है बल्कि आपका बेटा भी समझ रहा होता है !
आजकल की लड़कियां समर्थ हैं अगर किसी घर की पढ़ी लिखी नौकरपेशा बहू आपके घर आई है तो लाने से पहले उसका और उसके घर वालों का सम्मान करना अवश्य सीख लें अन्यथा यह याद रखें कि आपका बनाया घर और धन समय बीतने के साथ कानूनन आपकी उसी बहू का होगा जिसके घर वालों को आपने जी भर के गालियां दी हैं , यह भी  याद रखें कि कोई भी लड़की,चाहे आपकी हो या किसी और की, अपने पिता या मायके का अपमान कभी नहीं भुला सकती , आपके बुढ़ापे में बुरे दिनों में यह लड़की आपका कितना ख्याल रखेगी यह आपके द्वारा दिए गए स्नेह अथवा दर्द पर ही निर्भर करेगा !
घर के मुखिया सास अथवा ससुर द्वारा किये गए गलत व्यवहार पर उंगली उठाने वाला उस परिवार में कोई होता ही नहीं बल्कि उसके सही साबित होने की मुहर, घर वालों द्वारा तुरंत लग जाती है , गलत बात का विरोध न करने की सज़ा, इन परिवारों को ताउम्र भुगतनी पड़ती है ! आज पूर्वजों की शिक्षा "निंदक नियरे राखिये " मात्र मुहावरा बन कर रह गया है , हम सारी उम्र भूल कर ही नहीं सकते , इस ग़लतफ़हमी में शान से जीते रहने के शिकार हम लोग, जीवन में अपनी भूलों पर कभी नहीं पछताते  !
अपने द्वारा किये गए गलत व्यवहार को सुधारना बहुत मुश्किल नहीं सिर्फ खुले मन से क्षमा मांग लेना काफी होता है इससे भूल वश अथवा जानबूझकर की गईं गलतियों से आई कड़वाहट भी आसानी से समाप्त हो सकती है बशर्ते दिल बड़ा होना चाहिए !
दर्द और अपमान जितना हमें लगता है वह दूसरों को भी उतना ही महसूस होता है, इसे हमेशा याद रखें  .....
आपके सुंदर घर में आग कभी नहीं लगेगी !

ऐंठ छोड़िये, बातें करिये, जीने और जिलाने की ! 
अंतिम वक्त भुलाये बैठे,बातें सबक सिखाने की !



कैसी व्यथा लिखा के लाई अपनी मांग भराई में -सतीश सक्सेना

अक्सर हम लोग सोंचते हैं कि हम जो कुछ बेईमानी अथवा गलती कर रहे हैं वह दूसरों को नहीं मालूम पड़ेगी, जीवन की भयंकर भूल साबित होती है आपके आसपास उपस्थित लोगों  एवं बच्चों तक को, आपकी वह चालाकी मालुम पड़ जाती है और आप उनकी नज़रों से कब के गिर चुके हैं यह आपको पता ही नहीं चलता !
बेहतर है कि परिवार में रहते हुए जान बूझकर बेईमानी न करें यह आवश्यक है कि परिवार के लोगों का महत्व आप समय रहते समझ भी लें अन्यथा आपके कमजोर समय में यह लोग बेमन ही साथ देंगे और उस समय आप कहेंगे कि हमने इतना किया फिर भी आज हमारी जरूरत में यह लोग ऐसा व्यवहार कर रहे हैं !
भारतीय समाज में बेईमानी और चालाकी के चलते, बुढ़ापे में लोग कष्ट में जी रहे हैं , और इसकी दोषी जितनी नयी पीढ़ी है पुरानी उससे कम नहीं, अफ़सोस होता है कि उन्हें यह नहीं मालूम कि उन्होंने गलती कहाँ की है अपनी बेवकूफियों , चालाकी और सत्ता के नशे में किस किस का कितना अपमान किया है वह भूलकर मुखिया लोग, खराब समय पर अपनी किस्मत को कोसते  पाये जाते हैं ! 
अक्सर इसकी  शुरुआत घर में बहू के आते ही होती है , किसी अन्य घर की लाड़ली बेटी को हम घर लाते ही वे शिकंजे लगाने शुरू करते हैं जो कि अपनी बेटी पर लगते नागवार महसूस होते हैं , बेटी की ससुराल में अपना अपमान होना जहां हमें जहर लगता है वहीँ बहू के घर वालों की दिल से इज़्ज़त न करना और उनसे भरपूर सम्मान की अपेक्षा करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं और ऐसा करते समय हम ये भूल जाते हैं कि इस दोमुंहे चरित्र को न केवल बहू ध्यान से देख रही है बल्कि आपका बेटा भी समझ रहा होता है !
आजकल की लड़कियां समर्थ हैं अगर किसी घर की पढ़ी लिखी नौकरपेशा बहू आपके घर आई है तो लाने से पहले उसका और उसके घर वालों का सम्मान करना अवश्य सीख लें अन्यथा यह याद रखें कि आपका बनाया घर और धन समय बीतने के साथ कानूनन आपकी उसी बहू का होगा जिसके घर वालों को आपने जी भर के गालियां दी हैं , यह भी  याद रखें कि कोई भी लड़की,चाहे आपकी हो या किसी और की, अपने पिता या मायके का अपमान कभी नहीं भुला सकती , आपके बुढ़ापे में बुरे दिनों में यह लड़की आपका कितना ख्याल रखेगी यह आपके द्वारा दिए गए स्नेह अथवा दर्द पर ही निर्भर करेगा !
घर के मुखिया सास अथवा ससुर द्वारा किये गए गलत व्यवहार पर उंगली उठाने वाला उस परिवार में कोई होता ही नहीं बल्कि उसके सही साबित होने की मुहर, घर वालों द्वारा तुरंत लग जाती है , गलत बात का विरोध न करने की सज़ा, इन परिवारों को ताउम्र भुगतनी पड़ती है ! आज पूर्वजों की शिक्षा "निंदक नियरे राखिये " मात्र मुहावरा बन कर रह गया है , हम सारी उम्र भूल कर ही नहीं सकते , इस ग़लतफ़हमी में शान से जीते रहने के शिकार हम लोग, जीवन में अपनी भूलों पर कभी नहीं पछताते  !
अपने द्वारा किये गए गलत व्यवहार को सुधारना बहुत मुश्किल नहीं सिर्फ खुले मन से क्षमा मांग लेना काफी होता है इससे भूल वश अथवा जानबूझकर की गईं गलतियों से आई कड़वाहट भी आसानी से समाप्त हो सकती है बशर्ते दिल बड़ा होना चाहिए !
दर्द और अपमान जितना हमें लगता है वह दूसरों को भी उतना ही महसूस होता है, इसे हमेशा याद रखें  .....
आपके सुंदर घर में आग कभी नहीं लगेगी !

ऐंठ छोड़िये, बातें करिये, जीने और जिलाने की ! 
अंतिम वक्त भुलाये बैठे,बातें सबक सिखाने की !
http://satish-saxena.blogspot.in/2014/10/blog-post_28.html
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