Saturday, July 9, 2016

संवेदना बिलख कर रोये,कवि न वहां पाये जाएंगे - सतीश सक्सेना

यह कैसा माहौल ? अब यहाँ द्वेष गीत गाये जाएंगे !
संवेदना बिलख के रोये ,कवि न यहां पाये जाएंगे !

दयाहीनता के आलम में उम्मीदें तो कम हैं लेकिन   
संवेदन संतप्त ह्रदय की, हम कसमें खाये जाएंगे !

द्वेषभाव को जल देने को,ढेरों लोग उगे हैं फिर भी 
दिल से दूषित भाव हटाने, गंगा हम लाये जाएंगे !

आग लगाते इन शोलों में, ह्रदय वेदना कौन पढ़ेगा, 
जब तक सूरज आसमान में,हम छप्पर छाये जाएंगे !

राजनीति के इन धूर्तों ने,  बेशर्मी  की हदें पार कीं,
जल्द आयेगा वक्त,रेत के किले सभी ढाए जाएंगे !

3 comments:

एक निवेदन !
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- सतीश सक्सेना

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