Thursday, July 16, 2015

बड़ी पहचान छोटी हो,गवारा दिल नहीं करता -सतीश सक्सेना

कहीं बंध जाएँ खूंटे से आवारा दिल नहीं करता !
भरोसा करके सो जाए बंजारा,दिल नहीं करता !

दया पाकर कोई भिक्षा,फकीरों को नहीं भाती 
तुम्हारे  द्वार जाने को, दुबारा दिल नहीं करता !

मेरे हिन्दोस्तां की शान खो जायेगी , नफरत में  
बड़ी पहचान छोटी हो,गवारा दिल नहीं करता !

जमाने भर के भोजन को, मेरे पुरखों ने खोला है,
ये लंगर बंद करने को, हमारा दिल नहीं करता !

जिन्होंने साथ छोड़ा था मुसीबत में , पहाड़ों पर 
उन्हीं बैसाखियों का लें सहारा दिल नहीं करता !

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