Monday, April 27, 2015

इतना देकर दुःख वे भी थक जाती होंगीं -सतीश सक्सेना

इतना दुःख देकर,वे भी थक जातीं होंगीं
करवट ले ले खुद को,खूब जगातीं होंगीं !

दिन तो कटता जैसे तैसे , मगर रात भर,
स्वयं लगाए ज़ख्मों को , सहलातीं होंगीं !

शब्द सहानुभूति के विदा हुए , कब के !
अब सखियों में बेचारी, कहलातीं होंगीं !

जीवन भर का संग लिखा कर लायीं  हैं , 
फूटी किस्मत पा कितना पछतातीं होंगीं !

जाने कितनी बार तसल्ली खुद को देकर , 
अभिमानों को स्वाभिमान,बतलातीं होंगीं !

Saturday, April 25, 2015

किन्नर मन्नू महंत से बातचीत - सतीश सक्सेना

पिछले सप्ताह दिन में एक काल आयीं जिसमें अगर समय हो तो बात करने का अनुरोध था , दूसरी तरफ हरियाणा से मन्नू महंत
नामक किन्नर मुझसे अपने समाज के बारे में बात करना चाहते थे !उनसे बात करते समय यह लगभग साफ़ था कि वे अपनी बात कहने में बेहद गंभीर, व्यवस्थित और विद्वान थे और हरियाणा में अपनी गद्दी के प्रधान भी !  
इन्होने मेरा एक लेख पढ़कर ही मुझे फोन किया था , मेरे लेख एवं किन्नरों के प्रति मेरे दृष्टिकोण के प्रति धन्यवाद कहते हुए उन्होंने लगभग आधा घंटा बात की जिसमें अपनी सामाजिक स्थिति के प्रति समाज से शिकायत और बेहतर सम्मान की मांग शामिल थी  !
किन्नरों के प्रति समाज का रवैया न्याय पूर्ण नहीं है इसमें कोई संदेह नहीं , इन्हें समाज हमेशा शक की नज़र से ही देखता है व इनकी समस्याओं और स्थिति को जाने बिना , बदले में सिर्फ भय और नफरत ही देता है !
मानवता दया करुणा के नाम पर बड़ी बड़ी बातें करते हम लोग किन्नरों के प्रति जानवरों से भी खराब रवैया अख्तियार करते हैं , वे लोग सामान्य व्यक्तियों की भांति जीवन यापन करना चाहते हैं जो समाज करने नहीं देता ! 

किन्नर आदिकाल से पाये जाते हैं , पौराणिक काल में शिव के एक अवतार अर्धनारीश्वर की चर्चा है जिनका आधा
भाग नारी और आधा पुरुष का था , किन्नर शिव के इस रूप को पूजते हैं ! महाभारत में भी इनकी चर्चा है कि द्रुपद पुत्र शिखंडी, स्त्री स्वरूपा पैदा हुआ था, और उसकी आड़ में अर्जुन ने भीष्म पर तीर चलाये थे , चूंकि भीष्म की प्रतिज्ञा थी कि वे किन्नरों पर , निहत्थों पर एवं स्त्री पर प्रहार नहीं करेंगे युद्ध भूमि में पिछले जन्म की अम्बा को शिखंडी रूप में पहचान, उन्होंने हथियार एक और रख दिए और किन्नर शिखंडी की आड़ से, अर्जुन को भीष्म पर घातक वार करने का मौका मिला !

इनके बारे में तमाम गलत धारणाएं समाज में फैलायी गयी हैं , जिन लोगों को इनसे कोई सहानुभूति नहीं वही इनके बारे में सबसे अधिक अनर्गल प्रचार करते हैं !वे नाच गा कर  भिक्षा यापन कर अपना गुज़ारा करते हैं , उनका यह भी दावा है कि वे यक्ष , गन्दर्भ, किन्नर समाज के लोग हैं और नाच गाना उनका पुरातन पेशा है , उन्हें अपनी स्थिति से कोई शिकायत नहीं  बल्कि उसे पसंद करते हैं , समाज से उन्हें एक ही शिकायत है कि अगर समाज उनका आदर न कर सके तो भी उसे उनके अपमान का कोई अधिकार नहीं ! वे सूफी संत सम्प्रदाय की राह पर चलने वाले लोग हैं और उनकी दुआओं में उतनी ही शक्ति है जितनी किसी और और वास्तविक संत में ! 
इनके साथ अपराध होने की स्थिति में टेलीविजन मीडिया अथवा अखबारों में इन्हें कोई महत्व अथवा प्रमुखता नहीं दी जाती बल्कि इन्हें हेय व अपमानजनक दृष्टि से देखा जाता है !  वे अपने आपको किन्नर कहलाना पसंद करते है , हिजड़ा उर्फ़ छक्का शब्द एक गाली है जो इन्हें, निर्मम समाज की देन है , किन्नर हर धर्म का सम्मान करते व मानते  हैं , मृत्यु होने की दशा में किन्नरों को उनके धर्म  के आधार पर  दफनाया या जलाया जाता है !

इनको ट्रेन यात्रा अथवा बस यात्रा में कोई सीट नहीं देता चाहें यह बीमार ही क्यों न हों उनके साथ खाना पीना तो दूर लोग बैठना भी पसंद नहीं करते !
 अख़बारों के हिसाब से माने तो छत्तीस गढ़ में कोई कानून बनाने का प्रयत्न हो रहा है  जिसमें इन्हें ऑपरेशन द्वारा स्त्री या पुरुष बनाने की बात कही गयी है ? अगर यह सच है तो यह अमानवीय है ! उनका मानना है कि यह लोग अल्पमत में हैं और कम संख्या में हैं इनका सरंक्षण होना चाहिए न कि इन्हें समाप्त ही कर दिया जाये !

इनकी देवी का नाम  बहुचरा माता है जिनका मंदिर बलोल , संथाल , गुजरात में है !  मन्नू महंत का कहना है कि 

" चाहे इस्लाम हो या हिन्दू , हर धर्म में इन्हें सम्मान दिया गया है और इनकी चर्चा है ! वे आगे कहते हैं कि हाल में उन्होंने पढ़ा है कि किन्नरों को ऑपरेशन द्वारा महिला या पुरुष बना दिया जाएगा कितने दुर्भाग्य की बात है कि जिस भारत देश में किन्नरों को साधू संत और असली फ़क़ीर माना जाता है उनके अगर सुबह दर्शन हो जाएँ तो माना जाता है कि सारे आज काम पूर्ण होंगे , जिन्हे अल्लाह , वाहे गुरु , यीशु मसीह , भगवान के बहुत करीब माना जाता है वही मालिक के बन्दे अपनी पहचान के लिए भी किसी सरकार या हुकूमत के आगे मज़बूर हैं क्या इनके हकों के लिए क़ानून बनाने से पहले इनसे पूंछना जरूरी नहीं ?
क्या आपको नहीं लगता कि वे उन बेजुबान जानवरों में से नहीं जिनके बारे में कानून बनाने से पहले उनसे पूंछा भी नहीं जाता ? क्या आपको नहीं लगता कि कुदरत और प्रकृति से छेड़छाड़ करना गलत है ?
किन्नर अपनी जिन्दगी से बहुत खुश हैं वो सबको दुआएं देते हैं , सबका भला चाहते हैं , वे सूफी साधू संत हैं , भिक्षा यापन से गुज़ारा करते हैं  और ऐसे ही रहना चाहते हैं उन्हें नौकरी आदि कुछ नहीं चाहिए अगर समाज या सरकार उन्हें कुछ देना चाहती है तो उनके थोड़ी इज़्ज़त दे इस पंथ का अपमान न करे !"  
मन्नू महंत, गद्दी नशीन गुरु, गांव -भुन्ना ,तहसील - गुहला, जिला कैथल, हरियाणा -136034 
फोन - 9991789432 

-नई दिल्ली। भारतीय संसद के इतिहास में 40 साल बाद कोई निजी विधेयक कानून बनने की दहलीज पर खड़ा हुआ है जो किन्नरों को समाज में बराबरी के अधिकार देने की क्रांतिकारी नींव रखेगा।
राज्यसभा ने शुक्रवार को यह ऐतिहासिक पहल द्रमुक के तिरूचि शिवा की ओर से पेश किये गये इस गैर सरकारी विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया। यह विधेयक अब लोकसभा के दरवाजे पहुंच गया है जहां यह तय होगा कि यह कानून का रूप ले पाता है या नहीं।
इसके बाद विधेयक सदन के नियमों के अनुसार विचार और पारित करने के लिए पेश किया जायेगा। किन्नरों के प्रति सहानुभूति देखते हुए सरकार लोकसभा में भी इस विधेयक के समर्थन में आ सकती है जहां सरकार का बहुमत है।
राज्यसभा में सदन के नेता अरूण जेटली का कहना था कि इस संवेदनशील मुददे पर सदन बंटा हुआ नजर नहीं आना चाहिए। राज्यसभा में सख्याबल के आधार पर मजबूत स्थिति में खड़े विपक्ष ने इस गैर सरकारी विधेयक के पीछे अपनी ताकत झोंक दी जिसके सामने सरकार इसे ध्वनिमत से पारित कराने पर सहमत हो गई है।
- India, probably the world, will get its first transgender college principal when Manabi Bandopadhyay takes charge of Krishnagar Women's College in West Bengal


किन्नरों के बारे में अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर जाएँ !

Wednesday, April 22, 2015

बुरे हाल में साथ न छोड़ें देंगे साथ किसानों का - सतीश सक्सेना

                 15 से 19 अप्रैल 2015 यवतमाळ जिला में आनंद ही आनंद और भारतीय शांति परिषद के संयुक्त तत्वावधान में गाँव गांव पैदल जाकर किसानों से मिलने का दुर्लभ मौका मिला जहाँ पिछले कुछ वर्षों से सर्वाधिक किसान आत्महत्या करते हैं ! पूरे विश्व में
भारत की शानदार संस्कृति और बौद्धिकता के झंडे उठाये लोगों के देश में, सीधे साधे किसान आत्महत्या करें इससे शर्मनाक और कुछ नहीं हो सकता ! सन  2012 में हमारे देश में 14000 किसानों ने आत्महत्या की है , और हमारे राजनेता बिना इन अनपढ़ों की चिंता किये अगले इलेक्शन की तैयारी में जन लुभावन घोषणाएं करते रहते हैं !
यवतमाळ पदयात्रा 

              किसान हमारी प्राथमिकताओं में कहीं नहीं आता , भारतीय किसानों के बारे में टसुये बहाने वालों को यह भी नहीं मालुम कि साधारण किसान की सामान्य दिनचर्या क्या है वह किन समस्याओं से जूझ रहा है और शायद इसकी जरूरत भी नहीं है क्योंकि इलेक्शन के समय यह फटेहाल भोला व्यक्ति अपने दरवाजे पर आये, अपने ही गांव के प्रमुख लोगों से घिरे, इन महामहिमों को निराश करने की हिम्मत नहीं कर पाता और उसे अपने पूरे कुनबे खानदान के साथ वोट इन्हीं खद्दर धारी दीमकों को देना पड़ता है !

             यह पदयात्रा युवा आचार्य विवेक के आह्वान में पूरी हुई जिनकी मीठी वाणी और मोहक व्यक्तित्व से लगता है कि स्वामी  विवेकानंद का पुनर्जन्म हो चुका है , शिवसूत्र उपासक  विवेक पिछले कई वर्षों से , अपनी विदेशी नौकरी और विवाह त्याग कर, अध्यात्म साधना पथ पर चल रहे हैं , सुखद आश्चर्य है कि दिखावटी महात्माओं, बाबाओं के देश में, खादी का कुरता पैंट पहने यह सहज सरल युवा आचार्य,जनमानस पर अपनी छाप छोड़ने में समर्थ रहा है ! इस यात्रा में चलने वालों में विभिन्न समुदायों के लोग जिनमें वयोवृद्ध पुरुष, नवजवान और महिलायें शामिल थे, अपने कार्य छोड़कर इस कड़ी धूप में किसानों के साथ दुःख बांटने को तत्पर दिखे और यह विशाल साधना कार्य बिना किसी अखबार , टेलीविजन न्यूज़ चैनल्स को बिना दावत पार्टी दिए , रोटी दाल खाते हुए बड़ी सादगी से किया गया !

विवेक जी के इस कथन पर कि आनंद ही आनंद किसी राजनीतिक प्रतिबद्धता से नहीं जुड़ा है और न हम इसके कार्यक्रमों में किसी राजनीतिक दल को शामिल करेंगे, हम जैसे बेआशीष फक्कड़ ने भी किसानों के दर्द में जाने का फैसला किया था और इस राह के आध्यात्मिक आयोजनों में भी, मैंने यही पाया यह मेरे लिए एक बड़े संतोष और राहत का विषय था !

               इस दौरान हमने विवेक जी के शिष्यों की गाड़ियों में लगभग 700 km यात्रा की जिसमें लगभग 85 किलोमीटर की दूरी तेज धूप में पैदल चलकर तय की गयी ! पदयात्रा के रास्ते में आचार्य बिनोबा भावे का पवनार आश्रम एवं  महात्मा गांधी के सेवाग्राम के दर्शन सुखद रहे ! उससे भी सुखद यह था कि एक आध्यात्मिक फ़क़ीर के पीछे कवि , साहित्यकार , डॉक्टर , इंजीनियर , सॉफ्टवेयर इंजीनियर , व्यापारी , किसान , मजदूर , चार्टर्ड एकाउंटेंट ,महिलायें , गृहणी और उनके बच्चे सब शामिल थे ! महिलायें न केवल कार चला रहीं थी बल्कि पैदल यात्रिओं के लिए भोजन पानी की व्यवस्था इस ४० डिग्री तेज धूप में पैदल चल कर , कर रही थीं और शामिल लोग इतनी विविधिता लिए थे कि उनसे बात करके थकान का नाम नहीं रहता ! ६० वर्षीय राजेश पारेख जो कि नागपुर के बड़े ज्वैलर्स में से एक हैं, ऐसे ही एक आदर पुरुष थे !  


और इस भक्ति भावना का प्रभाव ग्रामीणों पर भी पड़ा , शुरू में किसान पदयात्रा के उद्देश्य से शंकित थे क्योंकि पहले गांव में काफिला सिर्फ महामहिमों का आता था और ढेर सारे वादे देकर जबरन वोट ले जाता था मगर जब उन्हें यह कहा गया कि हमारा वोटों से कोई लेना देना नहीं , हम भाषण देने नहीं, आपको सुनने आये हैं तब राहत की सांस लेते किसानों ने अपना दर्द खुल कर बताया ! उनके कष्ट अवर्णनीय हैं, उनके अपने उपजाए देसी बीज, खाद , कीटनाशक छीन लिए गए और उन्हें बाज़ार का प्रोडक्ट खरीदने को मजबूर करने के कानून बना दिए गए यही नहीं उनकी फसल की कीमत भी खरीदार तय करेंगे, यह कानून बना दिया गया ( फसल का रेट सरकार तय करती है )  ! 


आचार्य विवेक 
इस देश में आज किसान अपने आपको हारा और बंधुआ मज़दूर मानने को मजबूर है और शायद ही कोई नेतृत्व उन्हें दिल से प्यार करता हो सब के सब इन भेंड़ों से अपनी रुई लेने आते हैं और यह झुण्ड अपना बचाव भी नहीं कर पाता ! इनकी पूरे साल की कमाई (उत्पादन ), सरकार की मदद से, अपनी मनमर्जी का पैसा देकर, कुटिल शहरी व्यापारी ले जाकर खरीद की मूल्य से आठगुने, दसगुने भाव पर बेंच कर अपनी तिजोरी भरते हैं और इलेक्शन के समय राजनेताओं को मदद के बदले धन देते हैं ताकि वे अगले ५ वर्षों के लिए दुबारा सत्ता में आ जाएँ और फिर इन्हें नोचते रहें , उनकी खुशकिस्मती से यह असंगठित भेड़ें भी करोड़ों की संख्या में हैं , सो कोई समस्या दूर दूर तक नहीं ! दैहिक, मानसिक शोषण और प्रताड़ना की यह मिसाल, पूरे विश्व में अनूठी व बेमिसाल है ! यही एक देश है जहाँ मोटे पेट वाले बेईमान सबसे अधिक भारत माता की जय बोलते नज़र आते हैं !

अनपढ़ों के वोट से , बरसीं घटायें  इन दिनों !
साधू सन्यासी भी आ मूरख बनायें इन दिनों !


झूठ, मक्कारी, मदारी और धन के जोर पर ,  
कैसे कैसे लोग भी , योद्धा कहायें इन दिनों !

मेरा यह दृढ विश्वास है कि हर क्षेत्र में हमारी ईमानदारी, पतन के गर्त तक पंहुच चुकी है , हम कोई भी काम बिना फायदे के नहीं करते , निर्ममता से अपनी छबि निर्माण के लिए कमजोरों  को सिर्फ धोखा देते हैं और शक्तिशालियों से धोखा खाते हैं ! पूरा देश बेईमानों का गढ़ बन गया है अब यहाँ जीने के लिए और धनवान बनने के लिए राष्ट्रप्रेम के नारे के झंडे के साथ अपनी पीठ पर और गले में मालिक (राजनीतिक दल  ) की पट्टी आवश्यक है !  लोग आपको देख भयभीत होकर आदर देते दुम हिलाएंगे ही ! 

             इस बेहद खराब माहौल में  " चला गांवां कडे " का नारा दिया है आचार्य विवेक ने , इस नारे को सार्थक बनाने के लिए एक ऑफिस खोला गया है जिसका कार्य गाँव की समस्याओं का अध्ययन करना है ! विदर्भ के विभिन्न गांवों से वर्तमान व्यवस्था से व्यथित युवाओं और स्वयं सेवकों ने ग्राम प्रतिनिधि का कार्य करने को अपना नाम दिया है ! मैनेजमेंट के बेहतरीन जानकार, विवेक ने अपना कार्य बड़ी सादगी और शालीनता से किया है, पूरी यात्रा में इस नवयुवक आचार्य के चेहरे पर थकान, विषाद  का एक भाव नज़र नहीं आया हर वक्त एक आत्मविश्वास से सराबोर प्रभावशाली स्नेही प्रभामंडल नज़र आता था जिसे उसके प्रशंसक एवं शिष्य हर समय घेरे रहते ! उनके कई मजबूत समर्पित शिष्य उनके हर आदेश को मानने को तत्पर रहते थे !


             विवेक जहाँ जहाँ जा रहे थे , महिलाओं और पुरुषों ने ,घर से निकल निकल उनका तिलक लगाकर अभिनन्दन किया ! मेरा विश्वास है कि मध्य भारत क्षेत्र में, आने वाले समय में तेजी से बढ़ती उनकी लोकप्रियता निश्चित ही स्वयंभू नेताओं और मठाधीशों को चौंकाने के लिए काफी होगी ! 

              इन पांच दिनों में आनंद ही आनंद  की ओर से, बिना किसी भाषण बाजी के केवल अपना और आचार्य विवेक का संक्षिप्त परिचय देकर किसानों से अपनी बात कहने का अनुरोध किया जाता था ! इन धुआंधार मीटिंगों से जो बातें सामने आयीं वे निम्न थीं !

  • आज तक गाँव में कोई सरकारी मदद नहीं मिली , जो घोषणाएं हुई भी हैं वे बरसों से दसियों इंस्पेक्टरों की जांच होते होते नगण्य रह जाती हैं ! 
  • पहले किसान अपनी फसल  उगाने के लिए बिना एक पैसा खर्च किये, अपने खुद के द्वारा जमा किये गए बीज ,खाद और कीटनाशकों पर निर्भर था वहीँ अब उसे हाइब्रिड बीज , विशिष्ट कीटनाशक और खाद बाहर से खरीदने पड़ते हैं जिसमें उसकी जमा पूँजी अथवा कर्ज का एक भारी हिस्सा खर्च हो जाता है , सूखा या अतिवृष्टि के कारण फसल नष्ट होने की हालत में यह कर्जा और अगले साल की भोजन की समस्या , शादी व्याह और सामाजिक दवाब उसके आगे भयावह स्वप्न जैसे खड़े नज़र आते हैं और उसकी स्थिति बदतर करने के लिए भरी रोल अदा करते हैं !  
  • बैंक का पैसा हर हालत में वर्ष के अंत में बापस करना पड़ता है चाहे फसल से भारी लागत लगाने के बावजूद एक रूपये का भी मुनाफ़ा न हुआ हो या सारी फसल असमय वर्षा या सूखा से खराब क्यों हुई हो !
  • सरकार द्वारा निर्धारित कपास का समर्थन मूल्य, लागत से भी काम पड़ता है , यह वर्तमान में 4000 /= है जो किसानों के हिसाब से कम से कम 6000 /= पर क्विंटल होना चाहिए !
  • यह विडम्बना है कि किसान अपना धन और श्रम लगाकर फसल उगाता है और उसका मूल्य निर्धारण शहरों में बैठे सरकारी दफ्तर के बाबू करते हैं , छोटे किसान जिसको लागत अधिक पड़ती है और बड़े किसान दोनों को एक सा मूल्य दिया  जाता है , सरकारी व्यवस्था को, विभिन्न कारणों से फसल खराब होने अथवा जानवरों व मौसम  द्वारा बर्वादी से कोई मतलब व जानकारी नहीं अतः लगभग हर किसान ने एक मत से अपनी फसल का मूल्य निर्धारण स्वयं करने की मांग की ! वे चाहते हैं कि बाजार की डिमांड के हिसाब से वे अपनी फसल को बेंचें तभी गांवों में खुशहाली आ सकती है !
  • आज किसानों के बच्चे किसी हाल में किसान नहीं बनना चाहते उनका कहना था कि शहरों से सम्मन देने वाला चपरासी गाँव में टू व्हीलर से आता है जबकि हमारे पास साईकल भी नहीं होती हम कुछ भी कर लेंगे पर किसान नहीं बनना चाहते , स्वतंत्र भारत में , अपनों के द्वारा अपनों के शोषण की यह जीती जागती तस्वीर किसी का दिल दहलाने को काफी है !अनपढ़  किसानों और गृहणियों के मध्य जमकर नोट कूटता चालाक टेलीविजन मिडिया आजकल धनपतियों को सुबह शाम दो बार सलाम करता है और फिर जो माई बाप कहते हैं वही करता है ! किसानों के बारे में नीरस जानकारी देने के लिए
  • मशहूर दूरदर्शन के दिखावटी  कृषि चैनल खोलकर सरकार मस्त है लोकल खद्दरधारी दीमकों ने शेतकारी कमिटी , किसान यूनियन व अन्य किसान नामधारी संगठन बनाकर अपने शराबी चमचों को वहां अध्यक्ष और सेक्रटरी बना दिया है यह राष्ट्रप्रेमी शिष्य गण अपने दफ्तरों में भगत सिंह,चंद्रशेखर आज़ाद की तस्वीर लगाकर शाम को दारु सम्मेलनों में किसानों की समस्याओं पर चर्चा कर अपना कर्तव्य पालन कर मस्त रहते हैं ! 
बड़ी क्रूरता के साथ, अपनी सीधी साधी गाय मारकर, उसे परोसकर हम सिर्फ धनवानों को  और ताकतवर और हृष्ट पुष्ट बना रहे हैं  !पहली बार जीवन में मुझे कोई लेख लिखते समय अपने दिल में कम्युनिस्टों के प्रति आदर सम्मान की भावना जाग्रत हो रही है , मगर उन बेचारों के, मार्क्स लेनिन को अनपढ़ किसान समझे कैसे ? 
                                           *********************************************


उपरोक्त लेख नवसंचार समाचार ने सम्पादकीय पृष्ठ पर छापा है , इस सम्मान के लिए उनका आभार !
http://navsancharsamachar.com/%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%87-%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B2-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A5-%E0%A4%A8-%E0%A4%9B%E0%A5%8B%E0%A5%9C%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%A6%E0%A5%87/

ग्राम विधवाएं, जिनके पति चले गए  

Thursday, April 9, 2015

जात मानवी करम नराधम, कैसे हैं ये लोग - सतीश सक्सेना

मानव ने ही 
धर्म  बनाया,
बुरे वक्त, 
ताकत पाने को !
अंध आस्था  
मुंह फैलाये ,
मानवता को 
ही खाने को !
कितने घृणित 
काम ये करते 
बस्ती में ही आग उगलते ! 
बच्चों की लाशों 
पर चढ़कर हँसते हैं ये लोग !
अधरम का भय दिखा, नराधम बन जाते सिरमौर !
कहाँ से आये हैं 
ये लोग ?

रामू काका, 
रहमत चच्चा ,
हर मुश्किल में साथ रहे थे !
ज़ीनत खाला ,
और निवाले,
इक दूजे का हाथ गहे थे ! 
होली ईद हमारे सबसे,
मनचाहे त्यौहार रहे थे,
अब गलियों में 
शोर मचा है ,
जाने कैसा धुआं उठा है,  
पीठ पे नाम लिखा औरों का 
आये हैं कुछ लोग !
जाने किसका  हुक्म बजाने, घर से निकले लोग !
किस तरह जहर 
उगलते लोग ?

सीधे साधे बच्चे 
अपने,खेल कूदते 
बड़े हुए थे !
धर्म जाति बंधन
न जाने, 
इन गलियों से  
खड़े हुए थे !
किसने इनको भय 
सिखलाया,
कौन क्रोध का पाठ 
पढ़ाया ,
मानवता को तार तार कर 
बने जानवर लोग !
धरती पकडे कोख को रोये, कैसे हैं ये लोग ?
रंजिशे घर में  
लाते लोग ?

मूर्खों को 
बलवान बनाके, 
हाथ में 
कलाश्निकोव थमा के, 
धर्म की परिभाषाएं 
बदलीं !
गुरु, कुतर्की 
आलिम नकली !
किसने घटिया  
मार्ग दिखाया, 
किसने सबको मूर्ख बनाया,
झाग उगलते घर से निकले 
बदला लेते लोग !
जात मानवी,करम नराधम, नफरत बोयें लोग ?
अपने घर में आग लगाएं 
कैसे हैं ये लोग ?


Wednesday, April 8, 2015

हर कविता में छिपी कहानी होती है - सतीश सक्सेना

कुछ ग़ज़लों में एक कहानी होती है,
गहरे दुःख की सर्द निशानी होती है !

हम दोनों के बीच हुई कुछ बातें भी , 
मरते दम तक हमें छिपानी होती हैं !

अब न भरोसा करते हैं लंका वाले
भाई की पहचान करानी होती है !


यूँ  तो, ब्रूटस  बडे भरोसे वाले थे ,
अपने घर पाकर , हैरानी होती है !

कैसे  ढूंढेंगे प्रमाण , दुनिया वाले 
कितनी बातें सिर्फ जुबानी होती है !

Friday, April 3, 2015

चोर उचक्के राजा के सहयोगी , मेरे देश में - सतीश सक्सेना

मंचों से सम्मानित होते ढोंगी ,मेरे देश में !
आँख दबाएं करें इशारे योगी , मेरे देश में !

धूर्त हमेशा आगे रहते , राजनीति मैदान में 
चोर उचक्के राजा के सहयोगी ,मेरे देश में !

श्री पूजा में धूर्त, आहुति देते, नफरत यज्ञ में 
द्वेष संक्रमण काल बढ़ाये रोगी ,मेरे देश में !

वृद्ध किसान जान देते हैं, रोकर अपने गांव में
आसानी से अरबपति सब जोगी ,मेरे देश में !

साध्वी सत्ताचार्य खेत में बीज बो रहे वोट के
झाग उगलते राजभक्त, उपयोगी मेरे देश में !

धनकुबेर के आगे कैसे राजा बिके बाजार हैं
पहरे राधा पर हैं , कृष्ण वियोगी मेरे देश में !

Thursday, April 2, 2015

जागो देशवासियों अब भी समय बचा - सतीश सक्सेना

चलो गांव की ओर, व्यथाएँ  बांटेंगे, 
इकले नहीं किसान यकीन दिलाएंगे 

कसमें खाकर घर से पैदल आये हैं 
भूखे नहीं किसान कभी सो पाएंगे !

अन्न उगाने वाले क्यों कमजोर रहें 
आत्मचेतना,बोध,विवेक जगायेंगे !

हो आनंद  हमेशा इनके आँगन में 
इन चौपालों में,सौभाग्य जगायेंगे !

जागो देशवासियों ! वरना भारत में
खद्दरधारी दीमक , जश्न मनाएंगे !

कृषिप्रधान देश की खेती चाट गए
अब गरीब की रोटी,चट कर जाएंगे ! 

हिम्मत हारें नहीं,समय वह आएगा
खलिहानों में जीवनदीप जलायेंगे !

(यवतमाळ पदयात्रा 15 से  19 april के अवसर पर )

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