Wednesday, December 24, 2014

सनम सुलाने तुम्हें, हमारे गीत ढूंढते आएंगे - सतीश सक्सेना

आदरणीय ध्रुव गुप्त की दो पंक्तियाँ इस रचना के लिए प्रेरणा बनी हैं , उनको प्रणाम करते हुए ……  

यदि रूठोगे कहीं तुम्हें हम , रोज मनाने आएंगे,
चाहा सिर्फ तुम्हीं को हमने, ये बतलाने आएंगे !

भूल न जाना मुझको वरना, हौले हौले रातों के 
अनचाहे सपनों में, अक्सर खूब सताने आएंगे !

सुना, चाँदनी रातों में तुम भूखे ही सो जाते हो 
थाली मीठी यादों की ले संग खिलाने आएंगे !

खूब सताएं दुनियाँ वाले, वादे छीन न पाएंगे
जितना काटें बांस, हरे हो, नए सामने आएंगे !

कैसे निंदिया खो बैठे हो, अवसादों के घेरों में
सनम सुलाने  तुम्हें , हमारे गीत  ढूंढते आएंगे !

Tuesday, December 23, 2014

कर न पायीं बातें ग़ज़लें , हंसने और हंसाने की - सतीश सक्सेना

ऐंठ छोड़िये, बातें करिये , जीने और जिलाने की !
कफ़न आ गया बाजारों में, बातें सबक सिखाने की 

अम्बर चाँद सितारे हम पर, नज़र लगाए रहते हैं,
कैसे नज़र इनायत होगी साक़ी औ मयखाने की !

सुबह सवेरे तौबा करते , अब न हाथ लगाएंगे !
रोज शाम आवाजें आतीं पीने और पिलाने की !

रंज भुलाकर साथ बैठकर, हँसते, खाते, पीते हैं !
यहाँ न ऐसी बातें होती , रोने और रुलाने की ! 

इश्क़, बेरुखी, रोने धोने, से भी कुछ आगे आयें  
कर न पायीं बातें ग़ज़लें, हंसने और हंसाने की !

Thursday, December 18, 2014

इस्लाम की छाती पे , ये निशान रहेंगे - सतीश सक्सेना

लाशों पे नाचते तुम्हें,  यमजात कहेंगे !
शायर और गीतकार भी बदजात कहेंगे !

कातिल मनाएं जश्न,भले अपनी जीत का 
इस्लाम  की छाती पे, इन्हें  दाग़ कहेंगे !

इन्सान के बच्चों का खून,उनकी जमीं पर 
रिश्तों की बुनावट पे,हम आघात कहेंगे !

दुनियां का धर्म पर से, भरोसा ही जाएगा !
हम दूध मुंहों के रक्त से,खिलवाड़ कहेंगे !

महसूद, ओसामा  के नाम, अमिट हो गए 
हर  ज़ुल्म ए तालिबान,  ज़हरबाद कहेंगे !

जब भी निशान ऐ खून,हमें याद आएंगे 
इंसानियत के नाम , एक गुनाह कहेंगे !

Ref : https://www.theguardian.com/world/2014/dec/16/taliban-attack-army-public-school-pakistan-peshawar

Sunday, December 7, 2014

दुखद संक्रमण काल, तुम मुझे क्या दोगे - सतीश सक्सेना

समय प्रदूषित, लेकर आये,  क्या दोगे ?
कालचक्र विकराल,तुम मुझे क्या दोगे ?

दैत्य , शेर , सम्राट 
ऐंठ कर , चले गए !
शक्तिपुरुष बलवान

गर्व कर  चले गए ! 
मैं हूँ प्रकृति प्रवाह, 
तुम मुझे क्या दोगे ?  
हँसता काल विशाल, तुम मुझे क्या दोगे ?

मैं था ललित प्रवाह 
स्वच्छ जल गंगे का 
भागीरथ के समय 
बही, शिव गंगे का !
किया प्रदूषित स्वयं,
वायु, जल, वृक्षों को ?
कालिदास संतान ! तुम मुझे  क्या  दोगे ?

अपनी तुच्छ ताकतों 
का अभिमान लिए !
प्रकृति साधनों का 
समग्र अपमान किये  
करते खुद विध्वंस, 
प्रकृति संसाधन के !
धूर्त मानसिक ज्ञान, तुम मुझे क्या दोगे !

विस्तृत बुरे प्रयोग 
ज्ञान संसाधन  के  !
शिथिल मानवी अंग
बिना उपयोगों  के !
खंडित वातावरण, 
प्रभा मंडल  बिखरा ,
दुखद संक्रमण काल, तुम मुझे क्या दोगे !

यन्त्रमानवी बुद्धि , 
नष्ट कर क्षमता को,
कर देगी बर्बाद ,
मानवी प्रभुता को !
कृत्रिम मानव ज्ञान, 
धुंध मानवता पर !
अंधकार विकराल, तुम मुझे क्या दोगे !

Saturday, December 6, 2014

दर्द में भी , मुस्कराना चाहिए - सतीश सक्सेना

चाँद को माँ से, मिलाना चाहिए
नज़र का टीका लगाना चाहिए !

दर्द जब जब, आसमां छूने लगे,
गम भुलाकर मुस्कराना चाहिए !

आइये अब तो गले लग जाइये 
समय कम है, गीत गाना चाहिए !

कोई अपना रूठ जाए , भूल से, 
पास जा उसको मनाना चाहिए !

वक्त कम है काम बाकी है पड़े,   
नींद से, सबको जगाना चाहिए !

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