Monday, October 27, 2014

अरे गुलामों कब जागोगे ? - सतीश सक्सेना

अरे गुलामों, कब जागोगे
देश लुट रहा,पछताओगे !

वतन हवाले, करके इनके   
तुम वन्देमातरम गाओगे !

राष्ट्रभक्ति के मिथ्या नारों
से कब तक मुक्ति पाओगे !

खद्दर कब से, मूर्ख बनाता,
इससे कब हिसाब मांगोगे !

राजनीति की इस बदबू में  
कैसे, खुली हवा लाओगे ?

14 comments:

  1. sach me chinta jayz hai....sandesh deti rachna....lazbab

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  2. बढ़िया व्यंग्य ....बहुत खूब

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  3. इस आक्रोश का पूरा औचित्य है !

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  4. राजनीति में बदबू काफी
    कैसे खुली हवा लाओगे !
    अनपढ़,भ्रष्ट,समाज हमारा
    अरे गुलामों !कब जागोगे !
    ....बहुत सही .....इसी में मजा आता है तो फिर जागकर क्या करेंगे ..... जाने कब गुलामी की आदत जायेगी!

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  5. सही बात कही है आपने.

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  6. जागने का वक्त बस आ ही गया है..

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  7. अनपढ़,भ्रष्ट,समाज हमारा
    अरे गुलामों !कब जागोगे !

    बढ़िया व्यंग्य ....बहुत खूब सतीश जी

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  8. वाह ... गज़ब की व्यंग धार ...

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  9. वाह .........बेहद सशक्‍त शब्‍दों की तेज़ धार लिये उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति

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  10. Kataash shabdo me hai gazab ka dhaar...umda !!

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  11. जन जागृति से ही देश बच सकेगा
    बढ़िया व्यंग्य .....

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- सतीश सक्सेना

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