Sunday, August 3, 2014

कभी कभी बेचारा मन -सतीश सक्सेना

माँ का रहा, दुलारा मन !
उन आँखों का तारा मन !

कितनी मायूसी में सोया 
उनके बिन बेचारा मन !

चंदा सूरज से लड़ आया
ऐसे कभी  न हारा मन !

कैसे बेमन होकर माना  
माँ ममता का मारा मन 

जाने किसको ढूंढ रहा है    
गलियो  में बंजारा मन !

31 comments:

  1. बहुत सुंदर .......

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  2. मन तो चंचल है रुकता कहाँ
    अभी यहाँ तो अगले पल कहाँ ? ....सुन्दर प्रस्तुति |

    : महादेव का कोप है या कुछ और ....?
    नई पोस्ट माँ है धरती !

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  3. खूबसूरत और मासूम पंक्तियां ..प्यारा न्यारा मन

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  4. छोटी बहर की लहर, बहुत खूबसूरत है।

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  5. चंदा सूरज से लड़ आया
    ऐसे कभी न हारा मन !
    बहुत सुन्दर गज़ल बधाई

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  6. इक कविता चुभती सी दुखती सी

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  7. शब्द संयोजन भाव संयोजन बड़ी खूबसूरती से किया है !

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  8. मन को समझाना पडता है , मन ही तो है मित्र हमारा ।

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  9. बहुरत ही सुन्दर भाव लिए अच्छी ग़ज़ल ... दिल के तारों को छूते हुए ...

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  10. सुन्‍दर शब्‍द संयोजन .... के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति
    सादर

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  11. bechara man...kabhi n wash me aaya...kabhi baz n aaya....sundar rachna..

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  12. माँ पर सुन्दर सुरभित गीत ,बहुत सुन्दर

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  13. बेमन हुए बिना अमन भी तो नहीं मिलता..सुंदर रचना !

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  14. लाजवाब रचना...

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  15. बहुत सुन्दर

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  16. चंदा सूरज से लड़ आया
    ऐसे कभी न हारा मन !
    ...वाह...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  17. कितनी मायूसी में सोया
    उनके बिन बेचारा मन !
    चंदा सूरज से लड़ आया
    ऐसे कभी न हारा मन !

    बहुत सुन्दर

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  18. कितनी मायूसी में सोया
    उनके बिन बेचारा मन !
    चंदा सूरज से लड़ आया
    ऐसे कभी न हारा मन !

    बहुत सुन्दर

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  19. बहुत सुंदर ..

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  20. वाह बहुत खूब ॥

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  21. माँ और मन दोनों पर ,सुन्दर मनन !

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  22. वाह कहूँ कि आह कहूँ...क्या जाने मैं क्या कहूँ..

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- सतीश सक्सेना

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