Sunday, February 16, 2014

जब देखोगे खाली कुर्सी, पापा याद बड़े आयेंगे - सतीश सक्सेना

आज अनुलता राज नायर  के पिता को श्रद्धांजलि देते हुए न जाने क्यों , अपने पिता की याद आ गयी ! सो यह

रचना पिता को समर्पित हैं , श्रद्धाश्रुओं के साथ !!

चले गए वे अपने घर से 
पर वे मन से दूर नहीं हैं !
चले गए वे इस जीवन से  
लेकिन लगते दूर नहीं हैं !
उन्हें  याद करने पर अपने, 
कंधे  हाथ रखे पाएंगे !
अपने आसपास रहने का, वे आभास दिए जायेंगे !

अब न मिलेगी पप्पी उनकी  
पर स्पर्श , तो बाकी होगा ! 
अब न मिलेगी आहट उनकी 
पर अहसास तो बाकी होगा !
कितने ताकतवर लगते थे,
वे कठिनाई के मौकों पर !
जब जब याद करेंगे उनको , हँसते हुए खड़े पाएंगे !

अपने कष्ट नही कह पाये
जब जब वे बीमार पड़े थे 
हाथ नहीं फैलाया आगे 
स्वाभिमान के धनी बड़े थे
पाई पाई बचा के कैसे, 
घर  की दीवारें  बनवाई !
जब देखेंगे खाली कुर्सी, पापा  याद बड़े आयेंगे !

तिनका तिनका जोड़ उन्होंने 
अपना घर निर्माण किया था !  
कैसे कैसे हम बच्चों को 
अपने पैरों खड़ा किया था 
हमें पता है वे सुख दुःख 
के सपनों में, जरूर आयेंगे !
हमें रास्ते प्यास लगी तो , जल से भरे घड़े पाएंगे !

उनके बचे काम को हमने 
तन मन से पूरा करना है,
उनके दायित्यों को सबने  
हंस हंसकर पूरा करना है ! 
चले गए वे बिना बताये 
पर ऐसा आभास रहेगा ! 
दुःख में हमें सहारा देने, पापा पास खड़े पाएंगे !

40 comments:

  1. सुबह-सुबह मन भाउक हो गया..आप भी न..

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  2. डबडबाई ऑखों से विनम्र श्रध्दॉञ्जलि ।

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  3. वंदनीय पिता की स्मृति में सराहनीय भावाभिव्यक्ति !

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  4. जनक हमेशा साथ ही रहते हैं किसी ना किसी रूप में

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  5. माता-पिता से बढ़कर और नहीं धन कोई
    पिता वटवृक्ष जैसा माँ है उसकी परछाई
    जिंदगी यहीं पर फली फूली मुस्कुराई !
    बहुत सुन्दर गीत है आपका !

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  6. माता पिता के जीवित रहते यदि उनकी हमें अहमियत समझ में आये तो
    यही सच्ची श्रद्धा है उनके प्रति !

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  7. मैंने भी उनकी भाभी की अंगरेज़ी कविता का अनुवाद किया है और उन्हें भेजा है!! यह रचना मुझे अपने पिता जी और दादा जी दोनों की याद दिलाती है, बड़े भाई!! इन दोनों का बड़ा प्रभाव रहा है मुझपर... और सच पूछिए तो इन्हें मैंने आजतक ज़िन्दा रखा है, अपने अन्दर!!

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    Replies
    1. सलिल दादा आपकी सुन्दर कविता बहुत अनमोल है मेरे लिए |
      सादर
      अनु

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  8. परिवार सदा ही ऐसे ही प्रतिष्ठित रहें, अपने देश में।

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  9. मन को गहरे छूती है आपकी कलम ... जज्बाती रचना ...

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  10. तिनका तिनका जोड़ उन्होंने
    इस घर का निर्माण किया था !
    बड़ी शान से, हम बच्चों को
    पढ़ा लिखा कर,बड़ा किया था !
    उनकी बगिया को महकाकर,यादें खुशबूदार रखेंगे !
    हमें पता है हर सुख दुःख में,पापा पास खड़े पाएंगे !
    बहुत सुन्दर !
    latest post प्रिया का एहसास

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  11. बहुत शानदार प्रस्तुति

    "अपने कष्ट नही कह पाये
    जब जब वे बीमार पड़े थे
    हाथ नहीं फैलाया आगे
    स्वाभिमान के धनी बड़े थे
    पाई पाई बचा के कैसे, घर की दीवारें बनवाई !
    जब देखेंगे खाली कुर्सी, पापा याद बड़े आयेंगे !"
    गहरे भाव मन को छू गए |
    आशा

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  12. पिता किसी वृक्ष जैसे ही होते हैं , छाया से धूप में आने पर समझ आता है !
    नमन !

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  13. बहुत मार्मिक रचना, पेड के गिर जाने के बाद ही उसका महत्व समझ आता है, सादर नमन.

    रामराम.

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    Replies
    1. नहीं ताउजी....पिता ऐसा वृक्ष हैं जिनके रहते हुए भी उनकी छाँव की महत्ता समझ आती हैं......और जाने के बाद रह जाती हैं स्मृतियाँ शेष!
      सादर.
      अनु

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  14. मैंने सहेज ली है आपकी ये कविता.......माँ को सुनाई ...उन्होंने आपको स्नेहाशीष भेजे हैं.
    और क्या कहूँ....कुछ भावनाओं को शब्दों की दरकार नहीं होती.
    आभार आपका.

    सादर
    अनु

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  15. उनकी बगिया को महकाकर,यादें खुशबूदार रखेंगे !
    हमें पता है हर सुख दुःख में,सपने में जरूर आयेंगे !

    snvedana aur saantvana ke saath saarthak panktiyon ko naman

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  16. भावपूर्ण रचना.
    अब तो उनके बचे काम को
    श्रद्धा से पूरे कर लेना !
    उनके दायित्वों को ही बस
    मान सहित पूरे कर लेना !
    तभी सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

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  17. खुबसूरत अभिव्यक्ति !भावपूर्ण रचना.

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  18. सराहनीय भावाभिव्यक्ति !

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  19. अत्यंत भावपूर्ण रचना ...माँ की महिमा तो सभी गाते है किन्तु पिता का स्नेह कम ही लोग लिख पाते है। सादर नमन...

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  20. अनु जी के पिता जी को श्रद्धाँजलि !
    और आप के शब्दों को नमन !

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  21. जब देखेंगे खाली कुर्सी, पापा याद बड़े आयेंगे !
    sunder bhavon se saja geet hamesha ki tarah
    badhai
    rachana

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  22. बहुत सुन्दर श्रद्धा पुष्प
    चले गए वे अपने घर से
    पर मन से वे दूर नहीं हैं !
    चले गए है इस जीवन से
    लेकिन लगते दूर नहीं हैं ! पूरी रचना का सार मानो इन्हीं पंक्तियों में आ गया , जहाँ के बाद कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं या जहाँ से सब कुछ कहने की आवश्यकता शुरू होती है ..

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  23. बहुत सुन्दर श्रद्धा सुमन ..

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  24. पिता के नहीं रहने के बाद हमें कैसा लगता है... कहना मुश्किल है.. उस दर्द के शब्द नहीं है........ बहुत ही मर्मस्पर्सी रचना.....

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  25. पिता के प्रति श्रद्धा सुमन मन को भावुक कर गए ... बेहतरीन रचना

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  26. भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना.
    एक बच्चे के विकास में उसे उसके लक्ष्य तकपहुँचने का मार्ग दिखाने में माँ के साथ साथ पिता का योगदान भी बहुत महत्पूर्ण होता है.

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  27. आपकी संवेदनशीलता से ह्रदय प्रभावित है सर !
    पिताजी के प्रति आदर सम्मान और नेह के भाव को बहुत ही संवेदन शील तरीके से प्रदर्शित किया है
    उन्हें नमन !

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  28. अच्छा लगता है यादों के पन्ने पलटना.......

    सादर
    अनु

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  29. मर्मस्पर्शी ...

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  30. मर्मस्पर्शी ...

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  31. बहुत ह्रदय स्पर्शी सच में पढ़कर आँसू आ गए .......आई लव यू पापा....

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  32. बहुत याद आई पिताजी की ...मैं जो कुछ हूं ...उनसे हूं ..... बेशक मां के साथ भी ....

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  33. बहुत मर्मस्पर्शी रचना !

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  34. बहुत मर्मस्पर्शी रचना !

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  35. मार्मिक

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  36. पिता ऐसा वृक्ष हैं जिनके रहते हुए भी उनकी छाँव की महत्ता समझ आती हैं......और जाने के बाद रह जाती हैं

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- सतीश सक्सेना

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