Tuesday, April 2, 2013

रिक्शे वाले ... -सतीश सक्सेना

कुछ पंक्तियाँ, एक कमेन्ट के रूप में श्री गिरधारी खंकरियाल की " ये बेचारे -रिक्शे वाले " शीर्षक वाली रचना पर लिखी गयी हैं ! शीर्षक के शब्द उन्ही के हैं , आभार सहित ,  ...

कौन समझना, चाहे इनको
काम बहुत, क्या देखें इनको
वजन खींचते, बोझा ढोते
दर्द न जाने दुनिया वाले
ये बेचारे रिक्शे वाले !!

भूख न जाने क्या करवाये 
बहे पसीना नज़र न आये
पशुओं जैसा काम कराएं 
बातें करते, दुनिया वाले 
ये बेचारे रिक्शे वाले

हड्डी हड्डी बता रही है  
नज़रें सामने, मन है घर में
बीमारी का खर्चा, उस पे 
कष्ट न समझें दुनिया वाले 
ये बेचारे रिक्शे वाले

यह गरीब भी पुत्र किसी की 
दवा के पैसे जुटा रहा है,
अम्मा का दुःख बेटा जाने     
कैसे जानें दुनिया वाले, 
ये बेचारे रिक्शे वाले !

माँ की दवा, बहन की शादी
जाड़ा गर्मी हो या पानी
कुछ अनजानी चिंता इनकी 
समझ न पाएं दुनिया वाले 
ये बेचारे रिक्शे वाले !!

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