Monday, September 9, 2013

नन्हें पाँव, महावर, लाली, खूब हंसाया करते थे ! - सतीश सक्सेना !

गुडिया की विदाई के बाद , पहली बार उसका बचपन याद आ गया , फलस्वरूप कुछ पंक्तिया उसके बचपन की याद करते हुए ...
 मेरी गुड़िया अपनी गुड़िया के साथ 

अपने सीने पर, चिपकाकर, इन्हें सुलाया करते थे ! 
इनकी चमकीली आँखों में, हम खो जाया करते थे !

कोई जीव  न भूखा जाये , गुडिया के दरवाजे से !
कुत्ते, बिल्ली, और कबूतर, इन्हें लुभाया करते थे !

गले में झूलें हाथ डालकर, मीठी पुच्ची याद रही !
इनकी मीठी मनुहारों में ,हम खो जाया करते थे !

दफ्तर से आने पर  छिपतीं ,पापा  आकर  ढूंढेंगे !
पूरे घर में इन्हें ढूंढ कर, हम थक जाया करते थे !

पायल,चूड़ी ,लहंगा, टीका,बिंदी, मेंहदी विदा हुईं !
नन्हें पाँव, महावर, लाली, खूब हंसाया करते थे !


46 comments:

  1. बहुत सुंदर ...

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  2. बच्चों की दुनिया बहुत ही प्यारी होती है.

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  3. ख़ूबसूरत अहसास बचपने से मोहबबत की ख़ूबसूरत तस्वीर

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  4. पायल,चूड़ी ,लहंगा,टीका, बिंदी ,मेंहदी विदा हुईं !
    रेगिस्तान में मीठे झरने ,सुख पंहुचाया करते थे !
    ***
    इन मीठे झरनों ने नम कर दी आखें!

    बहुत ही मीठा गीत!
    प्रणाम!

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  5. मुझे अपने पापा याद आ गए ...अगर वे कवि होते तो ऐसा ही कुछ लिखते :-(
    गले में झूलें हाथ डालकर,मीठी पुच्ची करतीं थी !
    इनकी मीठी मनुहारों में ,हम खो जाया करते थे !

    सादर
    अनु

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  6. मनभावन रचना...बच्चों के बहाने हम भी टॉफियाँ खा लिया करते हैं...उनके साथ अपना बचपन जी लेते हैं|

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  7. बिटिया पर आपकी कविताएँ पढ़कर अक्सर मुझे माँ द्वारा कही गई अभिज्ञान शाकुन्तलम की वो पंक्तियाँ याद आ जाती हैं जब कण्व ऋषि कहते हैं कि बिटिया की विदाई पर जब मुझे इतना दुख हो रहा है तो गृहस्थों के लिए यह पीड़ा सहना कितना कठिन होता होगा...

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    1. आपकी टिप्पणी से रचना और सशक्त हुई है ...आभार !

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  8. प्यारे निश्छल भाव..... बहुत सुंदर

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  9. बहुत सुन्दर पितृ गीत.

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  10. मेरा कमेंट स्पैम में गयाः(

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    1. आपका कमेन्ट स्पैम में जा ही नहीं सकता ..

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  11. बहुत ही भावपूर्ण रचना ! बच्ची जहाँ भी रहे, खुश रहे !

    हिंदी फोरम एग्रीगेटर पर करिए अपने ब्लॉग का प्रचार !

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  12. कोई जीव न भूखा जाये , गुडिया के दरवाजे से !
    कुत्ते, बिल्ली,और कबूतर, इन्हें लुभाया करते थे ...
    कितना सच लिखा है ... इस हकीकत में बच्चों का बचपन याद अ जाता है ...

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  13. वाकई इनकी चमकीली आंखों में हमें खुद को तौलने का अवसर मिलता है।

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  14. वाह सतीश जी बेहतरीन दिल को छू लेने वाली एक पिता के ह्रदय से निकली शानदार पोस्ट |

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  15. उत्तम-
    बधाई स्वीकारें आदरणीय-
    गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें-

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  16. बहुत सुंदर और मर्मस्पर्शी गीत ....आँखें नम कर गया

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  17. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. हिंदी लेखक मंच पर आप को सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपके लिए यह हिंदी लेखक मंच तैयार है। हम आपका सह्य दिल से स्वागत करते है। कृपया आप भी पधारें, आपका योगदान हमारे लिए "अमोल" होगा |

    मैं रह गया अकेला ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः003

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  18. बिटिया का बचपन फिर से जीवंत हो उठा ....

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  19. हृदय को छू गई आपकी यह रचना.

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  20. सच है भाई जी ....
    दिखता था उसके बचपन में,हमे बचपन अपना
    तब बंद होठों में ,हम भी मुस्काया करते थे ....

    उस बच्ची को प्यार ..उन यादों को प्यार !

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  21. निश्छल भाव..... बहुत सुंदर गीत....

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  22. खूब हंसाती थी,हंसती थी,गुडिया प्यारी प्यारी सी
    इनकी तुतली भाषा में,हम गाना गाया करते थे !-- यही है बचपन की खूबसूरती
    latest post: यादें

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  23. बहुत खूबसूरत भाव ....बहुत कुछ याद दिला दिया आपकी इस कविता ने

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  24. आंसू छलक गए याद करके आपकी बिग गुरिया को याद करके

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  25. बच्चों का बचपन अनमोल धरोहर बन कर रहता है !
    खूबसूरत भाव !

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  26. दफ्तर से आने पर छिपतीं ,पापा आकर ढूंढेंगे !
    पूरे घर में इन्हें ढूंढ कर,हम थक जाया करते थे !

    पायल,चूड़ी ,लहंगा,टीका, बिंदी ,मेंहदी विदा हुईं !
    रेगिस्तान में मीठे झरने ,सुख पंहुचाया करते थे !

    यादों के पट खोलती बेहतरीन गीत सुप्रभात संग प्रणाम स्वीकारें

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  27. अहा, बच्चों के छोटे छोटे पर आनन्ददायक क्रियाकलाप याद आ गये।

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  28. वाह ! उसका बचपन आज भी सजीव है आपके दिल में..शायद बिटिया को भी यह सब याद नहीं होगा..बधाई !

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  29. पीरिवार में यह क्रम चलता ही रहता है, बिटिया की यादे नातिन में सिमट जाती हैं और बेटे की पोते में। बस परिवार बना रहना चाहिए। बहुत ही सशक्‍त रचना है।

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  30. घर में बिटिया हो तो जिंदगी बहुत खुबसूरत और बहुत से रंगों के होते हैं.....

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  31. अति सुन्दर भाव...

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  32. गले में झूलें हाथ डालकर,मीठी पुच्ची करतीं थी !
    इनकी मीठी मनुहारों में ,हम खो जाया करते थे !

    बेटियों के बचपन की यादें कभी नही भूलाती, बहुत ही हृदयस्पर्शी.

    रामराम.

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  33. आपकी रचनाओं को किसी भी विधा में बांधा नही जा सकता और ना ही ये किसी विधा की मोहताज हैं, बस आपके हृदय के भावों को सटीकता से पाठक तक पहुंचा देती हैं, बहुत ही लाजवाब लिखते हैं आप.

    रामराम.

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  34. आदरणीय सर जी,आपने
    सादर प्रणाम |
    कोई बात उस दिल से निकली इस दिल तक आई , यही महत्वपूर्ण हैं |छंद ,विधा तो गौण हैं |असली बातें ,सच्ची बातें ...अंतर्मन कों आलोकित करती हुयी |.वास्तव में ,बहुत ही खूबसूरत रचना ...मुझे भी अपना बचपन और छोटी बहन{उसका घर का नाम गुड़िया हैं } के साथ खेलना याद आ गया|ब्लॉग्गिंग में बहुत नया हूँ ,जल्दी जल्दी लिख रहा हूँ क्यूंकि इस माह के बाद व्यस्तता बहुत ही ज्यादा बढने वाली हैं,किन्तु मैंने देखा हैं ,जब भी कोई रचना दिल से करता हूँ,बिना छंद ,विधा के {जिसकी मुझे समझ ही नही हैं} तो लोग हाथो हाथ लेते हैं |आपकी हरेक पोस्ट मुझे बहुत पसंद हैं | “अजेय-असीम "

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  35. आपकी रचनाओं का हम हमेशा उन्मुक्त मन से ही आनंद लेते हैं भाईजी, निर्मल भावनाओं से पगी आपकी रचनायें भी वैसी ही निर्मल हैं।

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  36. कोई लौटा दे मेरे, बीते हुए दिन ...

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  37. बहुत सुंदर और मर्मस्पर्शी गीत,बहुत ही लाजवाब लिखते हैं आप।

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  38. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी
    पोस्ट हिंदी
    ब्लॉगर्स चौपाल
    में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल
    {बृहस्पतिवार}
    12/09/2013
    को क्या बतलाऊँ अपना
    परिचय ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004
    पर लिंक की गयी है ,
    ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें. कृपया आप भी पधारें, आपके
    विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें. सादर ....राजीव कुमार झा

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  39. उफ़ !इमोशनल कर दिया!

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  40. उन्मुक्त रचना को पूरे उन्मुक्त मन से पढ़ा.....मेरी भी एक बेटी है ,ऐसा लगा कि शुरु के छंद उसी के जीवन को दर्शा रहे हो.....अंतिम छंद का प्रवेश अभी बाकी है लेकिन कल्पना मात्र से ही आँखे भीग गयी.....सुंदर प्रस्तुती

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  41. मै भी प्यारी सी बिटिया की माँ हूँ आपकी भावनाओं को समझ सकती हूँ सुन्दर रचना है कल ही पढ़ी थी पर टिप्पणी नहीं कर पाई, बिटिया के बचपन की बहुत प्यारी स्मृतियां संजोयी है मन में जिसे भुलाना शायद कभी संभव नहीं !

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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