Saturday, July 7, 2012

तुम्ही सो गयीं, दास्ताँ सुनते सुनते - सतीश सक्सेना

आज रश्मिप्रभा जी की एक रचना पढकर अनायास अभिमन्यु की पीड़ा याद आ गयी ! वैज्ञानिक तथ्य है कि बच्चे गर्भ से ही शिक्षा ग्रहण करने लगते हैं ! महाभारत काल की यह घटना बहुत मार्मिक है , काश उस दिन सुभद्रा को नींद न आयी होती तो शायद कथाक्रम  कुछ और ही लिखा जाता ! 
अभिमन्यु ,माँ  के गर्भ में, पिता को सुनते हुए,चक्रव्यूह भेदना समझ चुके थे  मगर इससे पहले कि अर्जुन पुत्र को बाहर निकलने का रास्ता बताते, माँ सुभद्रा को नींद आ चुकी थी !पिता के अधूरे रहते पाठ के कारण, अभिमन्यु चक्रव्यूह से कभी बाहर न निकल सके ! 
पांडवों को, कृष्णा की वह नींद बहुत भारी  पड़ी थी ! एक पुत्र का व्यथा चित्रण इस रचना द्वारा महसूस करें ! 
एक भयानक पूर्वाभास जैसा रहस्यमय संयोग कि यह कविता  लिखने के बाद, सबसे पहले 8 माह की गर्भवती अनु को उसकी असामयिक मृत्यु से एक सप्ताह पहले सुनाई गयी ... :(
मैंने यह रचना क्यों लिखी मुझे खुद नहीं पता , काश न लिखता !!

पिता ने कहा था !
कि जगती रहें  !
आप भी पुत्र  की ,
बात सुनती रहें !
काश कुछ देर भी  , 
ध्यान देतीं  अगर  !
तब न खोती मुझे नींद में, सुनते सुनते ! 

मैंने उनको बहुत ,
ध्यान देकर सुना !
पर तुम्हे उस समय 
पाया कुछ अनमना  
काश उस दिन पिता 
साथ, जगतीं अगर,
पर तुम्ही सो गयीं, दास्ताँ सुनते सुनते  !

मैं तो मद्धम ध्वनि 
में भी सुनता रहा  !
नींद में डूबते भी 
मैं  चलता  रहा  ! 
काश कुछ दूर तक, 
ऊँगली छुटती नहीं !
माँ  कहाँ खो गयीं ?दास्ताँ सुनते सुनते !

पिता  चाहते थे 
कि  यशवान  हो !
और तुम चाहती थीं 
कि  बलवान  हो !   
काश कुछ देर ऑंखें  
झपकती  नहीं ,
तेरा दीपक बुझा नींद में, सुनते सुनते !

एक दुख तो रहेगा
मुझे   भी  यहाँ  ,
मैं पिता की तरह
लड़ न पाया वहाँ,
उनका सम्मान, उस 
दिन बचा ना सका !
माँ , कहाँ ध्यान था, दास्ताँ सुनते सुनते !

81 comments:

  1. बेहतरीन अख्यांश काव्य रश्मियों के साथ / मां सोती नहीं तो अभिमन्यु की जगह शायद अर्जुन की प्रति छाया का संवरण होता , और अर्जुन की तरह नेत्रित्व ,वांछित ... ? .सरल स्पष्ट सुन्दर काव्य बधाईयाँ जी /

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर.......
    माँ चाह कर तो नहीं सोयी होगी.....इसमें भी ईश्वर की कोई इच्छा रही होगी.

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप सच कह रही हैं ...
      कोई माँ सोंच भी नहीं सकती , यह सिर्फ एक कथा है और इसे कथा के रूप में ही लेना चाहिए !

      Delete
  3. मैं सोया नहीं पर तुम सो गई
    पाठ पूरा नहीं मैं सुन सका
    चक्रव्यूह के अन्दर मैं जा फँसा
    माँ इतिहास तुम पर क्यूँकर हँसा
    वहाँ पर मरा, यह बेहतर हुआ
    पिता की तरह
    दुविधा में न फँसा
    अच्छा ही हुआ तुम सो गई दास्ताँ सुनते सुनते

    रश्मि जी ने जो लिखा उसी पर आधारित....
    सादर

    ReplyDelete
  4. अब आज सोचता हूँ मैं अभिमन्यु .... सारी कला जानकर भी अपने गंभीर दादा भीष्म को देख मैं क्या करता !

    ReplyDelete
    Replies
    1. सच कहा आपने ...
      जब भीष्म ने ही वाण चढ़ा लिया तो बचा कहाँ कुछ लिखने को...

      Delete
  5. सचमुच बहुत मार्मिक चित्रण है...

    ReplyDelete
  6. बढिया प्रस्तुति .तादात्म्य कराती है श्रोता और पढने वाले का ...

    ReplyDelete
  7. वाह: सतीश जी अभिमन्यु का दर्द बहुत सरलता से उकेरा...बहुत सुन्दर..

    ReplyDelete
  8. वह भाई जी आपने तो कमाल कर दिया ...अभिमन्यु कि मनोव्यथा को सूक्ष्मता से उकेरा है आपने ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. अआप्का स्वागत है मदन भाई !

      Delete
  9. एक नींद महाभारत की दिशा बदल गयी..

    ReplyDelete
  10. अभिमन्यु की व्यथा पर कम ही कहा गया है.बचपन से ही उसके नायकत्व की तरफ मेरा आकर्षण रहा है.इतनी विषमताओं को झेलते हुए उसने जो पराक्रम दिखाया,वह दुर्लभ है.

    ...आपकी अभिव्यक्ति प्रभावित करने वाली है !

    ReplyDelete
  11. कभी कभी सगे सम्बन्धों में ऐसे स्नेहिल उलाहने कहने सुनने को मिल जाते हैं ! काश!

    ReplyDelete
  12. bahut hi gehre ,marmik bhav......

    ReplyDelete
  13. यह वह कसक है जिसे पौराणिक काल से आज तक की पीढ़ी महसूस कर रही है।

    ReplyDelete
  14. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल रविवार को 08 -07-2012 को यहाँ भी है

    .... आज हलचल में .... आपातकालीन हलचल .

    ReplyDelete
  15. bahut hi marmik prasang....bahut acchi prastuti...

    ReplyDelete
  16. प्रसंशनीय प्रभावित करती सुंदर अभिव्यक्ति,,,,,,,

    ReplyDelete
  17. बेहद वेदना भरी व्यथा ...काश की अभिमन्यु वो सार सुन पाता पर विधि की विडम्बना ....

    ReplyDelete
  18. अभिमन्यु के मन की पीड़ा को सटीक शब्दों में ढाला है ... सब कुछ तो नियति के हाथ में होता है , इसी लिए माँ भी सो गईं दास्तान सुनते सुनते

    ReplyDelete
  19. पुत्र की व्यथा का बहुत ही मार्मिक चित्रण

    ReplyDelete
  20. एक दुख तो रहेगा
    मुझे भी यहाँ ,
    मैं पिता की तरह
    लड़ न पाया वहाँ,
    उनका सम्मान, उस दिन बचा ना सका !
    माँ , कहाँ ध्यान था, दास्ताँ सुनते सुनते !

    beautiful lines with deep feelings and emotions

    ReplyDelete
  21. एक दुख तो रहेगा
    मुझे भी यहाँ ,
    मैं पिता की तरह
    लड़ न पाया वहाँ,
    उनका सम्मान, उस दिन बचा ना सका !
    माँ , कहाँ ध्यान था, दास्ताँ सुनते सुनते !

    sundar panktiyan....

    ReplyDelete
  22. अभिमन्यु का चरित्र बहुत गहरे तक उतर जाता है

    ReplyDelete
  23. बहुत खूब भाई साहब , पढ़ते पढ़ते अचानक कोई लेख जब अपने दिल को छू जाता है , तब आप जैसा कवि हृदय बिना कुछ लिखे कैसे रह सकता है. हालांकि कहानी बचपन से सुनते आये है , मगर लेखनी से आज निकली है. . . . . यही तो है की अंदर छुपा दर्द बरसो बाद भी लेखनी मे उतर जाता है. बहुत सुंदर जी .

    ReplyDelete
  24. कितना मुश्किल होता है आदर्श मात पिता बनना !

    ReplyDelete
  25. इसलिए मैं कहती हूँ कि गृहस्‍थ जीवन एक तपस्‍या है और इस तपस्‍या के फलस्‍वरूप हमें श्रेष्‍ठ और समाजोपयोगी संतान का निर्माण करना है। श्रेष्‍ठ विषय पर गीत लिखने के लिए बधाई।

    ReplyDelete
  26. अभिमन्यु की कश्मकश और माता पिता के कर्त्तव्य को समझने की कोशिश.

    बहुत सुंदर.

    ReplyDelete
  27. सुन्दर रचना ... इस पर मेरा विचार यह है कि गार्हस्थ्य जीवन में एक दुसरे को प्राधान्य देना बहुत ज़रूरी है ... शायद इस कथा का यही तात्पर्य है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सही कहा आपने, शायद यही तात्पर्य रहा होगा इस कथा का !

      Delete
  28. रश्मि जी की कविता तरह आपकी कविता भी पौराणिक कथा को कुछ नए आयाम दे गई. शुभकामनाएँ सतीश जी.

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद भाई जी ...

      Delete
  29. एक नींद ने अभिमन्यु की दुनिया ही पलट दी..
    काश माँ न सोयी होती...
    अभिमन्यु का दर्द बता दिया..
    मर्मस्पर्शी रचना....

    ReplyDelete
  30. अभिमन्यु की कशमकश को गहरे भाव दिए हैं..माँ के सो जाने के पीछे भी नियति तो रही होगी.

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कह रहीं है आप , नियति लिख चुकी थी !

      Delete
  31. बेहतरीन भाव संयोजन मनोज जी कि बात से सहमत हूँ शुभकामनायें आपको...

    ReplyDelete
  32. बहुत गहनता से कही है अभिमन्यु की व्यथा

    ReplyDelete
  33. कशमकश में रची गई खूबसूरत रचना ...बहुत खूब

    ReplyDelete
  34. "बढिया से भी बढिया चर्चा ,प्रस्तुति .
    कृपया यहाँ भी पधारें -

    शुक्रवार, 6 जुलाई 2012
    वो जगहें जहां पैथोजंस (रोग पैदा करने वाले ज़रासिमों ,जीवाणु ,विषाणु ,का डेरा है )

    ReplyDelete
  35. सावन सोमवार पर हार्दिक शुभकामनाएं ..

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया महफूज़...

      Delete
  36. इस गीत ने माँ के उत्तरदायित्व को और भी बढ़ा दिया है.. आज जब समाज में संस्कार क्षीण हो रहे हैं, माँ की भूमिका और भी बढ़ गई है....बढ़िया गीत.

    ReplyDelete
  37. मर्म को छूती कविता हेतु बधाई !

    ReplyDelete
  38. bahut hi marmik prastuti.........badhai

    ReplyDelete
  39. bahut hi marmik ..........badhai

    ReplyDelete
  40. बहुत मर्मस्पर्शी...सदैव की तरह एक उत्कृष्ट प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  41. i have always seen / heard subhadra being named responsible for the whole tragedy, but, as arjuna was the 'guru' (i am not talking about him being the father, just the guru) - wasn't it HIS duty to ensure that

    1. his disciple (the unborn child) should be able to hear the whole lesson
    2. hence should he have initiated the class at a time when the disciple was awake (in this case, the mother who was a 'nimitt' so to say for the student?
    3. should he have started teaching at a normally sleepy time to a pregnant lady (as we know, they do need their sleep
    4. krishna wasn't just a maternal uncle to abhimanyu, he was also abhimanyu's guru - so - as he knew from partha and subhadra that the lesson was unfinished - shouldn't HE have completed the missing part of the lesson ?

    ReplyDelete

  42. वाह इ.शिल्पा..

    आनंद आ गया आपकी अकाट्य टिप्पणी पढकर ! आभार आपका

    आप विदुषी हैं और भली भांति जानती हैं कि पुराण इस प्रकार कि विसंगतियों से भरे पड़े हैं, भले ही कथाये हों,मगर हमारी मान्य कथाओं में हजारों सवाल हमें उद्वेलित करते रहे हैं, भले कथा चाहे रामायण की हो अथवा महाभारत की !

    कभी हम निमित्त मान कर चुप हो जाते हैं कभी प्रभु की मानव लीला समझ अपने आपको समझाते रहे हैं !

    जहाँ तक पौराणिक कथाओं का सवाल है , सदियों चलकर इस काल तक आते आते, न जाने कितने हाथों द्वारा पुनर्लिखित होकर, इनका रूप कितना बदला होगा ? कौन जाने ?

    उपरोक्त कविता और आपका विश्लेषण दोनों ही दो अलग अलग पक्ष हैं और दोनों ही अपनी जगह पर संतुलित और ठीक लगते हैं !

    जहाँ तक मेरे द्रष्टिकोण का सवाल है मैं तो आपसे अधिक सहमत हूँ :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. शिल्प जी के प्रश्नों का जवाब जरूर इन पुरानों में छुपा होगा और वो खुद ही इनका अध्यन कर के जवाब भी ढूंढेंगी .... मुझे पूरा विश्वास है ...

      Delete
    2. बहुत मार्मिक ... भावपूर्ण रचना है ... सतीश जी ... मर्म कों छूती है ...

      Delete
    3. पर तुम्ही सो गयीं,दास्ताँ सुनते सुनते !
      सुन्दर और मनोहर दर्पण विचारों का आपने परोसा है .शुक्रिया .

      Delete
  43. माँ से प्रश्न करना उचित तो नहीं पर अभिमन्यु का यह प्रश्न बाल-सुलभ सा ही रहा होगा | "उत्कृष्ट रचना " |

    ReplyDelete
    Replies
    1. कविता में रोती हुई माँ के प्रति पुत्र के भाव महसूस करें ..

      Delete
  44. भावप्रवण रचना।
    हर मां के लिए प्रेरक।

    ReplyDelete
  45. abhimanyu ki pida ko uske bhavon ko bahut hi sunder shbdon me likha hai aapne
    badhai
    rachana

    ReplyDelete
  46. मार्मिक रचना अभिव्यक्ति....आभार

    ReplyDelete
  47. भावों का सुंदर संयोजन .....

    ReplyDelete
  48. अद्भुत .....
    हमेशा की तरह ....!!

    ReplyDelete
  49. सुंदर भावों से सजी आपकी प्रस्तुति काफी अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट अतीत से वर्तमान तक का सफर पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

    ReplyDelete
  50. उत्कृष्ट रचना ...माँ और पिता से ही प्रश्न पूछता है उनके लिए भाव प्रधान और बाल सुलभ
    बना रहता है ये मन सदा....अतीत की यादों से वर्तमान तक होने और ना होने पर भी सदा सानिध्य का अहसास......माँ और पिता प्रेरक....शुभ कामनाएं
    सादर !!!

    ReplyDelete
  51. बहुत सुन्दर भावप्रवण रचना दिल को छू गई

    ReplyDelete
  52. एक दुख तो रहेगा
    मुझे भी यहाँ ,
    मैं पिता की तरह
    लड़ न पाया वहाँ,
    उनका सम्मान, उस दिन बचा ना सका !
    माँ , कहाँ ध्यान था, दास्ताँ सुनते सुनते !

    बहुत सुन्दर चित्रण ..और आखिरकार ये बड़ा प्रश्न पूछ ही लिए अभिमन्यु जी .....सुन्दर प्रस्तुति //भ्रमर ५

    ReplyDelete
  53. Kya bat hai Sir Ji !
    aap to kavita bhi acchi likhte hai ...
    aaj apki kavita padhi acchi lagi..

    Pls Visit My New Post..."Abla Kaoun"


    http://yayavar420.blogspot.in

    ReplyDelete
  54. होनी को कोन टाल सका है , सर जी

    ReplyDelete
  55. sateesh bhai ji
    bahut hi bhauk kar gai aapki yah prernatmak v bhav-pravan prastuti.agar aisa na hota to maha bharat ki katha kuchh aur hi roop leti -----
    sadarnaman
    poonam

    ReplyDelete
  56. अभिमन्यू की हताशा और ये सवाल वाह पर हेनी को कौन टाल सका है कोई ना कोई तो निमित्ता होगा ही ।

    ReplyDelete
  57. ये बात भी काबिले गौर है की बच्चा इतना मेधावी था की आधी बात तो गर्भ में ही समझ गया मगर बाकी की आधी बात उसने पैदा होने के २०-२५ सालों तक सीखने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई!

    शायाद इसलिए की यही नियति हो...

    अपनी लिखी हुई रचना हमें कब पढ़ा रहे है साहब ? :)

    जारी रखिये.. :)

    ReplyDelete
  58. sundar aur sarthak bhav, badhai.

    ReplyDelete
  59. Satish,very well written.. heart felt thanks for writing such wonderful lines..

    ReplyDelete
  60. दिल को छू लेनेवाली रचना----बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  61. अंतर्मन को झकझोरती - मार्मिक अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  62. ओह कितना कुछ लिखा था अभी मैंने ...अपना दिल खोल क्र रख दिया .ज्यों कुछ पल के लिए .मैं सुभद्रा भी थी..अर्जुन भी....अभी अभिमन्यु भी. पर अनायास ही जाने क्या हुआ .कमेन्ट उड़ गया. कोई बात नही फिर लिखुंगी. बहुत कुछ लिखने को बाध्य कर दिया था आपकी इस कविता ने

    ReplyDelete
  63. हम कुछ बातें नहीं जानते ऐसा क्यों हो रहा है, इसका एहसास बाद में जब होता है तो हमें सोंचने पर मजबूर कर देती है और जो आंसू उस याद में छलकते है वो आंसू के सिवा कुछ भी और नहीं जानते कि वो इतना महत्वपूर्ण होनी क्यों बना था!

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,