Monday, February 6, 2012

हम बुलबुल मस्त बहारों की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ? -सतीश सक्सेना

एक दिन सपने में पत्नी श्री से कुछ ऐसा ही सुना था ,समझ नहीं आया कि यह सपना था कि हकीकत ....हास्य रचना का आनंद
महसूस करें, मुस्कराएं..... ठहाका लगाएं ! 
हो सकें तो सुधर भी जाएँ ... ;-)

जब से ब्याही हूँ साथ तेरे
लगता है मजदूरी कर ली
बर्तन धोये घर साफ़ करें

बुड्ढे बुढिया के पाँव छुएं !
जब से पापा ने शादी की,  

फूटी किस्मत, अरमान लुटे  !
जब देखो तब बटुआ खाली, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?

ना नौकर है , न चाकर  है,  
ना ड्राइवर है न वाच मैन !
घर बैठे कन्या दान मिला

ऐसे भिखमंगे चिरकुट को,
कालिज पार्टी,तितली,मस्ती,
बातें लगती सपने जैसी !
चौकीदारी इस घर की कर, हम बात तुम्हारी क्यों मानें

पत्नी , सावित्री  सी  चहिए,  
पतिपरमेश्वर की पूजा को ! 
गंगा स्नान  के मौके  पर  ,
जी करता धक्का  देने को !
 

तुम पैग हाथ लेकर बैठो , 
हम गरम गरम भोजन परसें !
हम आग लगा दें दुनिया में, हम बात तुम्हारी क्यों माने ?

हम लवली हैं ,तुम भूतनाथ
हम जलतरंग, तुम फटे ढोल,
हम जब चलते, धरती झूमें 
तुम हिलते चलते गोल गोल, 
तुम आँखे दिखाओ, लाल हमें, 
हम  हाथ जोड़  ताबेदारी  ?
हम धूल उड़ा दें दुनिया की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?


ये शकल कबूतर सी लेकर
पति परमेश्वर बन जाते हैं !
जब बात खर्च की आए तो
मुंह पर बारह बज जाते हैं !

पैसे निकालते दम निकले , 
महफ़िल में बनते शहजादे ! 
हम बुलबुल मस्त बहारों की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?

110 comments:

  1. \पुरुष मानसिकता पर गहरा व्यंग

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    1. पुरुषों को बदलना होगा ....

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    2. पुरुषों को क्या बदलना होगा :)

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  2. यर्थाथ का चित्रण। बधाई।

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  3. सपने में भी पत्नी श्री !
    धन्य हो मित्र !:)

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    Replies
    1. सतीश भाई के दिखाये पे ना जाइए :)

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    2. वह भी धमकियों के साथ :-))

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  4. लगता है कवि होने के साथ-साथ मन पढ़ने में भी निपुण हो गये हैं - बहुतों के स्वरों को वाणी दे दी आपने तो ,बधाई स्वीकारें !

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    1. अगर यह सच है तो लेखन सफल हो गया ...
      आभार आपका !

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  5. सटीक व्यंग्यात्मक प्रस्तुति।

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  6. बहुत बढ़िया सर.... बहुत बढ़िया... शायद सभी पत्नियों के विचार एक से होते हैं...

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    1. हा..हा...हा...हा....
      शुक्रिया अरुण भाई :-)
      पूंछने की कोशिश करें न .....
      :-)

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  7. बहुत शानदार...शुभकामनाएं...

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    1. बड़े दिन बाद आयीं हैं आप ..
      आभार आपका !

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  8. वाह जी हास्य में व्यंग्य का सम्मिश्रण बहुत सुन्दर लगा |

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    Replies
    1. शुक्रिया आपका इमरान भाई !

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  9. हमारी श्रीमतीजी को हमने पढ़ा दी है, उन्होने ईमेल पर मँगा ली है। आगे की टूट फूट की जिम्मेदारी अब आपकी..

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    1. आप तो ऐसे न थे प्रवीण भाई ....
      :-)

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    2. हमारी श्रीमती जी बात बात पर अन्तिम पैराग्राफ सुना देती हैं। हम भी जवाब तैयार कर रहे हैं, जल्द ही सुनायेंगे।

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    3. बहुत बढ़िया रहेगा ....इंतज़ार है आपके जवाब का ...
      होली से पहले
      :-)

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    4. एक तो अभी रख लीजिये,

      सब बात तुम्हारी ही माने
      दो चार चपाती सेंक प्रिये, तुम तुर्रम खां बन जाती हो,
      सब्जी अच्छी क्या बन जाये, तुम चौड़ी हो तन जाती हो,
      भोजन करवा कर दान धर्म का पुण्य तुम्हें मिल जाता है,
      दो चार प्रशंसा शब्द और मुख-कमलपत्र खिल जाता है,
      हम भिक्षुक, याचक, जो समझो, घर में तुम्हरी तूती बजती,
      बाहर राजे, पर हर घर में, सब बात तुम्हारी ही माने।१।

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    5. :-)
      मज़ा आ गया ...
      पूरी लिख कर प्रकाशित करें...
      बहुत लोगों को इंतज़ार है जवाब का !

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  10. लाज़वाब अभिव्यक्ति..घर घर की कहानी...

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  11. :):) मुझे तालियाँ बजाने का मन कर रहा है...पर इतना सच सच नहीं बोलना चाहिए :)

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    Replies
    1. फिर तो सफल हो गयी यह रचना ....
      आभार तालियों के लिए शिखा जी :-)

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  12. हा हा हा ...
    आपने ख्वाब में ही सही, मैडम के दिल की बात पढ़ ली....
    और सिर्फ उनकी नहीं...हर पत्नि की :-)

    बेहतरीन रचना....
    write more often...

    regards.

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    Replies
    1. @ write more often...
      कुछ समय से अनियमित रहा हूँ ...मगर ध्यान रखूंगा !

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  13. बड़े भाई!
    हंसी रुके तो कुछ कहूँ... एक निर्मल हास्य रचना!! एक नोर्मल हास्य पैदा करती है!!
    मज़ा आ गया!

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    Replies
    1. अब जब सलिल भी कह रहे हैं तो सफल हो गयी यह रचना ....
      आभार !

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  14. bahut hi badiya sakaratmak soch se upji sundar rachna..

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  15. ये शकल कबूतर सी लेकर
    पति परमेश्वर बन जाते हैं !
    जब बात खर्च की आए तो
    मुंह पर बारह बज जाते हैं !
    पैसे निकालते दम निकले , महफ़िल में बनते शहजादे !
    हम बुलबुल मस्त बहारों की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?
    क्या बात है!! आप तो हास्य-कविता भी रचते हैं :) बधाई.

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    Replies
    1. अभी कभी अपने से मज़ाक करने का दिल करता है वंदना जी !

      Delete
  16. .



    गंगा स्नान के मौके पर ,
    जी करता धक्का देने को !

    अरे बाप रे ! सावधानी रख़ना कहां तक मुमकिन होगा …

    सतीश भाई साहब
    हमारी भाभीजी की महानता है जो आप यह सब लिख कर पोस्ट कर पाए हैं :)

    हम सब जानते हैं कि आपने जो लिखा है, स्थिति उससे उलटी है …


    हां, रचना अच्छी लिखी है आपने … बधाई !


    आपके परिवार में ख़ुशियां बरसती रहे…
    आप सभी परिवार जनों को
    हार्दिक मंगलकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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    Replies
    1. आभार राजेंद्र भाई ....

      Delete
  17. आपके ब्लॉग की ही पंक्तियों पर नज़र पड़ी ---- शायद जबाब मिले श्रीमती जी को ...

    द्रढ़ता हो सावित्री जैसी,
    सहनशीलता हो सीता सी,
    सरस्वती सी महिमा मंडित
    कार्यसाधिनी अपने पति की
    अन्नपूर्णा बनो, सदा ही घर की शोभा तुम्ही रहोगी !
    पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्ही रहोगी !!

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    Replies
    1. बिलकुल सच १००% सच

      Delete
    2. आभार अर्चना जी ...

      Delete
  18. सतीश जी आपने सारी पत्नियों के दिल की बात कर डाली और हास्य का दरिया बहा दिया. सुंदर प्रस्तुति.

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    Replies
    1. सफल हो गयी यह रचना .....
      शुब्क्रिया आपका !

      Delete
  19. बेहतरीन अंदाज़.....

    ReplyDelete
  20. औरत को यह सटीक लगती है लेकिन आदमी को "क्या हास्य है"
    यह सपना बहूत पुराना है. अब तो हम हाथ बांधे बैठे हैं की ..........

    ReplyDelete
    Replies
    1. और हम लोग कर ही क्या सकते हैं ....
      :-)

      Delete
  21. औरत को यह सटीक लगती है लेकिन आदमी को "क्या हास्य है"
    यह सपना बहूत पुराना है. अब तो हम हाथ बांधे बैठे हैं की ..........

    ReplyDelete
  22. सपना था... खुश हो जाओ। यदि ये हकीकत बन गई तो हंसना भूल जाओगे :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. :-))
      सही कहा बड़े भाई ....
      आभार आपका !

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  23. कुछ तो छिपाया करें, सब बात जग जाहिर है :)

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    Replies
    1. हा...हा....हा....हा.....
      कब तक छिपायें सुनील भाई :-)

      Delete
  24. वाह!!!!!बहुत बेहतरीन लाजबाब प्रस्तुति,
    सतीश भाई,..लगता है घर में कुछ अनबन चल रही है,

    NEW POST...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...

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    Replies
    1. बिलकुल नहीं ....
      यह सिर्फ रचना है :-))

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    2. @ घर में अनबन ,
      इतना लाजबाब लिखियेगा तो यूँहीं शक हुआ करेंगे :)

      Delete
    3. शुक्रिया अली सर ....
      उम्मीद है ख़राब हाल में आप जरूर मदद को आओगे :-)

      Delete
    4. कवियों के साथ यही प्रोब्लम है । कहीं रचना , कहीं कविता , कहीं कल्पना --शक तो होगा ही ! :)

      Delete
  25. मैं तेरे प्‍यार में क्‍या क्‍या न बना मीना............

    बहुत खूब।

    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

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  26. दुनिया की आधी आबादी को आपने बड़ी चतुराई से अपने पक्ष में कर लिया |
    निवेदिता ने इसे कंठस्थ कर लिया है और जब तब रिंग टोन की तरह मेरे सामने बज रही हैं | धन्य है आप |

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  27. यह मुझसे अनजाने में हुआ है अमित भाई :-)
    मगर आपके उद्गारों से, यह रचना सफल मान रहा हूँ !
    आभार आपका !

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  28. साथ निभता रहे..., गजब की जुगलबंदी.

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    Replies
    1. आशीर्वाद ग्रहण किया प्रभो ....
      उम्मीद यही है !

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  29. आप हंसी-हंसी में कही गंभीर बात तो नहीं कर रहे है सतीश जी ?
    मजेदार रचना बहुत पसंद आई !

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    Replies
    1. भले ही मज़ाक सही...
      मगर यह कहानी तमाम घरों की है, जीवन भर के रिश्ते भी दिखावे से चल रहे हैं , यह अफ़सोस जनक है ....
      हमें पहल करनी होगी !
      शुभकामनायें आपको !

      Delete
  30. हम बुलबुल मस्त बहारों की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?

    अच्छा किया सब बता दिया आपने... सटीक व्यंग लिखा है आपने...आभार

    ReplyDelete
    Replies
    1. हा..हा..हा..हा...
      आभार

      Delete
  31. आदरणीय सतीश जी,क्या खूब जज़बात निखारे है आपने।

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  32. कंगूरे के दो ईमारत के एक हिस्से पर व्यंग्य बाण बेहतरीन है...

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  33. लगता है हमरी बातन का,तुम भंडाफोड मचायो है,
    यह बात घरैतिन जानि गईं,कम्प्यूटर का दइ मारेन हैं !

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    Replies
    1. यह भेद छिपायो जात नहीं, एक दिन तो भंडा फूटैगो
      अब लट्ठ पड़ें दुई और सही पहिले ससुरी का कमी रही !

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  34. क्या बात है सतीश जी बहुत खुबसूरत...सटीक व्यंग लिखा है आपने
    मगर बेहद प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने की बधाई

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  35. साथ में प्रत्युत्तर भी होता तो आनद दोगुना हो जाता..

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    Replies
    1. सुझाव अच्छा है !
      कोई और आगे आये तो अच्छा लगेगा :-)

      Delete
  36. इतने डरावने सपने न देखा कीजिए सतीश जी ....कम से कम सपनो में तो श्रीमतीजी से छुटकारा पाइए .......

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    Replies
    1. अब मेरे सोंचने से क्या होगा ...

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  37. ये शकल कबूतर सी लेकर
    पति परमेश्वर बन जाते हैं !
    जब बात खर्च की आए तो
    मुंह पर बारह बज जाते हैं

    अब इतनी पोल तो मत खोलो सतीश जी ... पति बेचारों का भी ख्याल रहा करो ...

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    Replies
    1. आगे कुछ नहीं कहूँगा ....

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    2. लंगोटी तक तो खींच ली है अब आगे बचा ही क्या है कहने के लिए :)

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    3. जिधर देखूं उधर ही तू ... :-(

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  38. यदि इसे सिर्फ मजाक के तौर पर पढ़ा जाये तो अच्छा है परन्तु व्यंग के रूप मैं तो मन को ठेस लगाने वाला है|
    आप पुरुष भी ना... पूरी ज़िन्दगी तन-मन-धन से प्यार करो और मिलता है है जवाब की पीछे से मेरे बारे में यह (उप्रोक्क्त रचना) सोचती हो... प्यार का आभार मानिये जनाब!

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    Replies
    1. ठीक है जी ...
      मान लिया अब :-)

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  39. अरे आपने तो हिन्दी दारावाहिक कहानी घर-घर कि कोई चरितार्थ करदीय ;)पुरुषों कि मानसिकता पर करारा व्यंग लिख दिया ...समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  40. अत्यन्त निष्ठुर होके लिखा है भाई जी ! जितना आपने ये कविता लिख के ज़लील किया उत्ता तो उन्होंने भी ना किया था :)

    बोलते हैं कि काफी दिन पानी में भिगा कर मारा जाये तो ... बस यही किया आपने ! इत्ते दिन ब्लॉग में ना थे तो क्या जान ले लोगे बेचारे शौहरों की :)

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    Replies
    1. सबसे प्यारा कमेंट्स ...
      आभार अली भाई !

      Delete
  41. हा हा हा हा हा हा ....बढिया हैं भाई जी

    फिर तो हमने ये जन्म गँवा दिया ...पति को परमेश्वर मान कर ...
    काश हम भी पत्नी पुराण में अपनी हिस्सेदारी देख सकते ....आभार

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  42. फुल मजे आये पढ़ कर....

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  43. आपके काव्यत्व -काव्य प्रतिभा को नमन ! अब इत्ती सी ही गुजारिश है कि एक पुरुष उवाच भी हो जाए!
    हम बात तुम्हारी क्यों माने.
    तुम गैंडे सी ,काली मोटी भैंस बराबर
    अक्ल के नाम पर जीरो हो ..
    और शक्की नंबर एक बनी हो
    हम बात तुम्हारी क्यों माने ...
    जब भी डाईंग टेबल पर
    खाना खाने आता हूँ,
    झट से तुम भी साथ बैठ
    जीमने को जम जाती हो
    मन कहता है थाली फेंक
    उठ कहीं चल जाऊं
    ......गंगा घटा पे कहीं धक्का देकर
    हट जाऊं ...
    बात तुम्हारी क्यों मानूं!

    ReplyDelete
    Replies
    1. अमृता तन्मय जी की प्रत्युत्तर की इच्छा इच्छा आपने पूरी करदी ...
      जवाब कुछ अधिक ही तगड़ा रहा :-)
      शुभकामनायें आपको !

      Delete
  44. सटीक व्यंग्यात्मक प्रस्तुति....बढिया!

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  45. बेचारा पुरुष पत्नी से कुछ नहीं चाहता- सिवाए प्यार के। और लेडीज को देखिए। सिर्फ पैसा,पैसा,पैसा!

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  46. आपकी और अरविन्द मिश्र जी की कल्पनायें साकार हों। :)

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    Replies
    1. धन्य हो प्रभु ...
      ध्यान सबका रखते हो ...
      अरविन्द मिश्र को भुलाए नहीं :-)

      Delete
  47. इस कविता\किस्से\वाकये पर टिप्पणी करना भी मुश्किल लग रहा है, हँसी के मारे बहुत अच्छा हाल हो गया है बड़े भाई:)

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    Replies
    1. अब लगता है कि यह हलकी फुलकी रचना कुछ वाकई अच्छी बन गयी है...
      आभार संजय !

      Delete
  48. हम लवली हैं ,तुम भूतनाथ
    हम जलतरंग,तुम फटे ढोल
    हम उड़नतश्तरी में घूमें ,
    जब तुम घर बाहर जाते हो
    तुम आँखे दिखाओ लाल हमें, हम हाथ जोड़ ताबेदारी ?
    हम धूल उड़ा दें दुनिया की, हम बात तुम्हारी क्यों मानें ?

    बहुत मजा आया । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद .

    ReplyDelete
  49. तारीफ़ तो आपकी करनी चाहिए सतीश जी, कि आपने पत्नी के सपने को यहाँ भली भांति उतारा!...बहुत मजा आया!

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  50. हा हा हा हा ..................मज़ेदार हास्य है.

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  51. हम आपकी हिम्मत कि दाद देते हैं कमसे कम आपने इसे स्वीकार करने कि हिम्मत तो कि :) बहुत सुन्दर व्यंग्य जिसे आपने बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया बहुत खूब |

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  52. हाय! यह मस्त गीत कब लिखा जान ही न पाया!! कमेंट में भी ढेर सारे हैं मेरा मतलब कमेंट भी बहुत से हैं..अभी एक्को नहीं पढ़ा। अभी तो गीत की मस्ती में डूबा हूँ।:)..बधाई स्वीकार करें।

    ReplyDelete
  53. सतीश भाई, यह सब भी सुनना पड़ता है ।

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  54. हम तो पिछले ज़माने के पतियों का संशोधित संस्करण हैं फिर भी काफी खरी खोटी सुना दी आपने :))

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  55. सटीक...क्या बात है!!

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  56. हम उड़नतश्तरी में घूमें ,....अहा!!!!!!!!!!!!आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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  57. बेचारे पति की ऐसी-तैसी कर दी है।

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  58. कमाल है सतीश जी.
    कहने न कहने की सभी बातें कह दी आपने.
    सपने का सहारा लेकर आपने अपनी ओर से उनकी कह दी,
    पर अब उनकी ओर से उनकी ही पढ़ने का
    अवसर मिले तब जाने सही वस्तु स्थिति का.

    सुन्दर हास्य रस 'दान' करने के लिए आपका आभार जी.

    ReplyDelete
  59. लग रहा है मानो,मन की बात छीन ली हो जैसे :D....
    इस व्यंग्य का कोई न कोई हिस्सा सभीके जीवन को प्रभावित करता है....
    बहुत सुन्दर व्याख्या....

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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