Tuesday, October 11, 2011

लड़कियों का घर ? - सतीश सक्सेना

गरिमा, पिता के साथ  
पहले इस नंदन कानन में 
एक राजकुमारी  रहती थी 
घर राजमहल सा लगता था 
हर रोज दिवाली होती थी ! 
तेरे जाने के साथ साथ,चिड़ियों ने भी आना छोड़ा ! 

                  मैंने इस गीत द्वारा, घर से बेटी की विदाई के बाद, भाई और पिता की  स्थिति का, एक शब्द चित्र खींचने का प्रयास किया था  ! इस मार्मिक गीत को, लिखने के बाद, छलछलाती आँखों के कारण , मैं आज तक पूरा नहीं पढ़ नहीं पाया ! विवाह योग्य पुत्री की विदाई की कल्पना भी, दारुण दुःख देती है , पता नहीं उसकी विदाई कैसे झेल पाऊंगा !


पूर्वा राय द्विवेदी 
इस रचना को पढ़कर , एक और प्यारी बेटी के पिता दिनेश राय द्विवेदी , के  आँखों में आंसू छलछला उठे ! डबडबाई  आँखों से, उनके द्वारा मेरे लेख पर लिखी गयी एक लाइन की यह टिप्पणी, मुझे भाव विह्वल करने को काफी है ! अपनी पुत्री की विदाई की याद करके ही दिनेश राय द्विवेदी जैसे प्रख्यात एडवोकेट तक रो पड़ते हैं .... 
"बहुत बहुत रुलाते हैं, तेरे ये गीत ! सच में बहुत रुलाते हैं"

उनकी इस टिप्पणी के साथ, इस गीत  को लिखने का उद्देश्य पूरा हुआ ! पुत्री को अपना घर छोड़ना ही होता है  और एक नए माहौल , नए लोगों के साथ मिलकर , नए घोसले का निर्माण करना  होता है ! ऐसे विषद संक्रमण काल में, उसे अक्सर भारी मानसिक तनाव और  कष्ट से गुजरना होता है !इस समय में, अक्सर इस लड़की को,अपने पिता और भाई से, हर समय जुड़े महसूस रहने का अहसास ही , इसकी राह आसान बनाने को, काफी होता हैं !

इस पोस्ट का शीर्षक, दिनेश राय द्विवेदी की मेधावी पुत्री पूर्वा राय द्विवेदी , द्वारा लिखी एक पोस्ट "लड़कियों का घर कहाँ है ? " की देन है, जिसमें पूर्वा के कहे शब्दों ने, मुझे इस पोस्ट को लिखने को प्रेरित किया ! मैथमैटिकल साइंस में एम् एस सी, कुमारी पूर्वा, जनस्वास्थ्य से जुडी एक परियोजना में शोध अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं !



विवाह के बाद लड़की इतना क्यों रोती है ? इस प्रश्न के जवाब में पूर्वा ने कहा था कि शादी के बाद उसका घर छीन लिया जाता है और उसका घर, मायका बन जाता है और नया घर, ससुराल  ! अपने घर को छिन जाने के कारण वह रोती है कि कोई बताये लड़कियों का घर कहाँ होता है ??

                      कहते हैं लड़की ही, घर में सबसे कमजोर होती है और मगर यह समाज, सुरक्षा देने की जगह ,उससे उसका "घर "छीन कर उसे मायका और ससुराल उपहार में दे देते हैं ! और यह काम दोनों ही पक्ष के लोग धूमधाम से करते हैं !
                       पुत्री को हमें  यह अहसास दिलाना होगा कि वह इस परिवार में बेटे की हैसियत रखती है और अपने भाई के समान  अधिकार और सम्मान की हकदार है और  हमेशा रहेगी ! यही बात, वह बहू बनकर नए घर में भी याद रखे कि उस घर की पुत्री का भी घर में समान अधिकार है और हमेशा रहेगा !
                        नए घर के निर्माण में, जो थकान होती है, उसे दूर करने को, अपने परिवार द्वारा बोले स्नेह के दो शब्द काफी हैं ! अपने मज़बूत पिता और भाई की समीपता का अहसास ही, हमारे परिवार वृक्ष की इस खुबसूरत डाली को, हमेशा तरोताजा रखने के लिए काफी होता है !
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