मानव कुल में रहते हम लोग, शायद अपने सांस्कृतिक पारिवारिक गुणों को भूलते जा रहे हैं ! पीढ़ियों से चलता आया परस्पर पारिवारिक स्नेह, आज न केवल दुर्लभ नज़र आता है , बल्कि एक चालाकी और चतुरता का भाव अवश्य सब जगह नज़र आता है , जिसके चलते हम लोग एक दूसरे के प्यार पर शक करते हुए भी, साथ रहने को बाध्य होते हैं !
पारिवारिक व्यवस्था में सबसे पहले बहू का स्थान आता है , यह नवोदित लड़की, आने वाले समय में इस घर की मालकिन होगी इस तथ्य को लोग कभी याद ही नहीं करना चाहते न कोई उसे यह अहसास दिलाता है कि वह घर में प्रथम सदस्य का दर्ज़ा महसूस कर सके ! छोटे छोटे फैसले लेते समय भी, वह बच्ची अपनी सास अथवा पति के मुँह देखने को मजबूर रहती है और अक्सर परिवार के लोग इस बात पर खुश होते हैं कि बहू आज्ञाकारी मिली है ! शुरुआत के दिनों में, अपने ही घर में कोई निर्णय न ले सकने की, उस घुटन का अहसास, करने का कोई प्रयत्न नहीं करता ! समय के साथ ,अपने मन को अभिव्यक्त न कर पाने की तड़प, न चाहते हुए भी उस बच्ची को इस नए परिवार से दूरी बनाये रखने को, पर्याप्त आधार देने के लिए, काफी होती है !
इस प्रकार एक अनचाहा कड़वा बीज, घर के आँगन में कब लग गया, कोई नहीं जान पाता और हम लोग समय समय पर, अनजाने में, इसे खाद पानी और देते रहते हैं !
जहाँ तक माँ बाप का सवाल है वे अपनी ही असुरक्षा में घिरे रहते हैं ! अपनी ही औलाद से, अपनी जीवन भर की कमाई को, पढ़ाई लिखाई और बच्चों की परिवरिश पर खर्च हो चुकी, बताने में कोई कसर नहीं छोड़ते ! उन्हें अक्सर यह लगता है कि बच्चों ने अगर बुढापे में मदद न की तो क्या होगा ? अतः अपनी शेष जमापूंजी आदि बच्चों की नज़र से दूर ही रखा जाए तभी अच्छा होगा ! उनकी यह समझ और झूठ , बच्चों को पता लगते अधिक देर नहीं लगती ! अपने ही बड़ों द्वारा, उन पर विश्वास न किये जाने पर, रिश्तों में ठहराव और एक बड़ी दरार आना स्वाभाविक हो जाता है !
अक्सर अपनी असुरक्षा की भावना लिए, बड़ों की यह बेईमानी, उस परिवार में अपनों के प्रति शक के माहौल को पैदा करने में, बड़ी भूमिका निभाती है एवं अनजाने में एक भयंकर विष बीज और रोप दिया जाता है ! जहाँ ममता, स्नेह और सुनहरे भविष्य का मज़बूत आधार, परस्पर मिलकर तैयार किया जाना चाहिए वहीँ शक और शिकायतों का एक मजबूत आधार बन जाता है !
मुझे याद आता है ,मेरे एक सीधे साधे साथी के रिटायरमेंट पार्टी पर, उनकी पत्नी तथा बच्चों ने मुझसे आखिरी चेक की रकम फुसफुसाते हुए जाननी चाही और साथ ही यह भी कि उनके पति, को इस बारे में न बताया जाए , तो मैं निशब्द रह गया !
पुत्री सबसे अधिक अपने परिवार से जुडी होती है ! कुछ समय बाद अपने घर से दूर हो जाने का भय उसे अपने परिवार के प्रति और भी भावुक बना देता है ! अनजाने में सबसे अधिक अन्याय इसी के साथ किया जाता है, अपने घर में भी और नए घर में भी ! अफ़सोस है कि उसकी माँ भी उसे यह अहसास दिलाने में आगे रहती है कि यह घर उसके भाई का है जबकि अधिकतर लड़कियां अपने भाई के लिए कुछ भी देने के लिए तैयार रहती हैं ! अगर भावनात्मक तौर पर ही भाई और माँ उसे स्नेह का विश्वास दिला दें तो शायद ही कोई लड़की अपने आपको अकेला महसूस करे !
हर भाई को अपनी बहिन से स्नेह चाहिए मगर हर बार हम भूल जाते हैं कि परिवार वृक्ष की यह सबसे सुन्दर टहनी ही सबसे कमजोर होती है और वह जीवन भर अपने पिता और भाई से प्यार की आशा लगाए रहती है ! और हम ...??
आइये, पूंछे अपने दिल से !
( यह लेख दैनिक जागरण में दैनिक जागरण में ७ जुलाई २०११ को छपा है )