Tuesday, August 9, 2011

बूढ़ा वट वृक्ष -सतीश सक्सेना

मित्रो,
मॉल  में घूमते हुए, आपका ध्यान, मैं  बाहर खड़े, सूखते वट वृक्ष और जीर्ण कुएं की ओर दिलाना चाहता हूँ जो इस विशाल एयर कंडीशंड बिल्डिंग बनने से पहले, आपके लिए छाया और पानी देने का एकमात्र स्थान था  ! याद करें, हमारे बचपन में, शीतल पानी और छाया केवल वहीँ मिलती थी  ! 
आजकल  वहां कोई नहीं जाता   !

क्या कभी आपने  कमजोर होते, माता पिता के बारे में सोंचने  की  जहमत उठाई है कि इस उम्र में, बिना आपके, वे अपना सही इलाज़ कैसे कर पा रहे होंगे ! 

क्या आपने सोचा है कि  उनके  जैसे , कमजोर असहायों वृद्धों  को, अस्पताल, जिनका उद्देश्य मात्र पैसे कमाना है, तक पंहुचना, कितना तकलीफदेह और भयावह होता होगा  !

                              बीमार हालत में, दयनीय आँखों से, डाक्टर को ताकते , ये वही हैं, जिनकी गोद में आप सुरक्षित रहते हुए, विशाल वृक्ष बन चुके हो और ये लोग, उस ताकतवर वृक्ष से दूर ,निस्सहाय, गलती हुई जड़ मात्र , जिन्हें बचाने वाला कोई नहीं !
मात्र आपकी निकटता से, यह अपने आखिरी समय में, सुरक्षित महसूस करेंगे !
इस समय इन्हें आपकी आवश्यकता है ......

अंतिम समय में इन्हें सम्मान के साथ विदा करें  जो इनका हक़ है यकीन मानें, आपके पास बैठने मात्र से, यह शांति से अपनी ऑंखें बंद कर लेंगे !

                                 खैर ! अच्छे वैभवयुक्त जीवन के लिए, आपको हार्दिक शुभकामनाएं ! 

54 comments:

  1. सचमुच फीका लगने लगता है यह सोच कर मॉल का वैभव.

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  2. आज उंगली थाम के तेरी तुझे मैं चलना सिखलाऊं,
    कल हाथ पकड़ना मेरा, जब मैं बूढ़ा हो जाऊं...

    नाम तो रौशन किया जा रहा है दुनिया में लेकिन उस बाती को भूलकर जिसने खुद दिन-रात जलकर हमें जगमगाने लायक बनाया...

    जय हिंद...

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  3. आप तो सही लिख रहे हैं। परंतु आज की सोच यह है जो अपने माता-पिता का ख्याल रखे वह मूर्ख है। जो उनके बाद आ कर उनकी धन-संपत्ति पर निगाहें गड़ाए और जीते जी उन्हें नहीं पूंछे वह बुद्धिमान है।

    जब तक धनवान की पूजा बंद न होगी ऐसी असहाय स्थिति चलती रहेगी।

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  4. bahut sahi kaha bhai ji !

    dhnyavaad

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  5. संवेदनशील आलेख ...
    कुछ तो मन के चक्षु खोल रहा है ...!!
    आभार.

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  6. सतीश जी,
    यह बहुत अच्छी घटना पर आपने सबका ध्यान
    आकर्शित कराया है ! जिनकी बदौलत वैभव,ऐशोआराम
    मिला है बच्चे उनको ही भूलते जा रहे है !
    बहुत बढ़िया पोस्ट आभार आपका !

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  7. ये भारत है यहाँ की स्थिति अभी भी इतनी भी नहीं बिगड़ी है जितना की सभी कहते है आज भी एक बड़ी संख्या में लोग अपने माता पिता के साथ ही रहते है | कुछ है जो नौकरी के कारण माँ बाप को छोड़ कर जाते है पर वो भी उन्हें अपने छोटो के साथ छोड़ कर जाते है अकेले नहीं | हा ये सही है की ऐसे लोगों की संख्य थोड़ी बढ़ी है जो माँ बाप को अकेला छोड़ कर खुद आराम से जीते है पर हालात इतने भी बुरे नहीं है उम्मीद करती हूं जो ऐसा करते है उन्हें थोड़ी सदबुद्धि मिले |

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  8. बेहद भावमय करती प्रस्‍तुति ।

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  9. बूढा पीपल घाट का बतियाए दिन रात।
    जो भी बैठे पास में सिर पे धर दे हाथ॥

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  10. सतीश जी
    आपने बिल्कुल सही कहा । काश ये बात सब समझ पाते क्योंकि ये वक्त तो सब पर आना है। हम भी इसी कोशिश मे है कि जितना अपनी तरफ़ से सुकून दे सकें दे दें। ये फिर नही मिलने वाले। जब तक हैं बस तभी तक इनका प्यार और आशीर्वाद ले लें उसके बाद तो …………?

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  11. बहुत संवेदनशील बात लिखी है ... हांलांकि अभी हालत बद से बद्दतर नहीं हुए हैं पर होते जा रहे हैं ..

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  12. सही कह रहे है। आप!!

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  13. आज की पीढ़ी को के लिए अनुकरणीय आलेख .......कुछ सीख ग्रहण कर लें तो अच्छा है

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  14. आपकी सोच और आपकी लेखनी को सलाम ....

    यहाँ एक कबीर जी का दोहा याद आ गया
    फल कारण सेवा करे ,करे न मन से काम |
    कहें कबीर सेवक नहीं ,चहै चौगुना दाम ||

    हमेशा सेवा निस्वार्थ हो .....जैसे माँ बाप करते है ..........आभार

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  15. दुखद है यह सब...पर काफी हद तक सत्य भी.

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  16. माता-पिता अपने बच्चों के साथ सुकून से रहना चाहते हैं... बस यही है उनकी ख्वाहिश...

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  17. सतीशजी,आपका लेख ऐसी हवा का झोंका है जो हमारे मानवीय मूल्य और आस्थाओं पर चढ़ी बदलाव की धूल को हटाता है..बदलाव ऐसा जिसके लिए हम खुद जिम्मेदार हैं...कहीं माता-पिता खुद बच्चों को ऊँची उड़ान के लिए छोड़ देते हैं कहीं बच्चे खुद ऊँची उड़ान भरना चाहते हैं...उपेक्षा और विवशता..बस एक महीन सी रेखा है दोनो में... फिर भी हमारे देश की संवेदनाएँ मरी नहीं है दबी हुई हैं बस...

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  18. सतीश जी , हमारे देश में तो अभी मात पिता का सम्मान और देखभाल काफी हद तक की जाती है । लेकिन पश्चिमी देशों में लोग उन्हें मदर फादर डे पर ही याद करते हैं ।
    बस यह भावना बनी रहे , यही दुआ है ।

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  19. यह बनावटी चकाचौंध दृष्टि को ऐसा छा लेती है कि जो कुछ असली है वह देख पाने में असमर्थ रह जाती है.

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  20. ek din sabko hi to budhapa aana hai.. yah baat jaankar bhi hamara anjaan banana dukhad esthiti hai....
    bahut badiya saarthak prastuti ke liye aabhar!

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  21. सतीश जी
    आपने बिल्कुल सही संवेदनशील बात लिखी है ...कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

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  22. मॉल अपनी चमक खो देते हैं, मानवीय रिश्ते सदा चमकते रहते हैं।

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  23. बड़े भाई!!
    आपकी बातें तो वैसे भी शीतलता प्रदान करती हैं.. एक दफा हमने (चैतन्य और मैंने)भी निठारी जाकर लोगों को उकसाया था कि गर्मी से परेशान हो तो 'सेंटर स्टेज माल' में जाकर ठंडी हवा खाओ... खैर वो कहानी फिर कभी.
    अभी तो बस जिज्जी की तस्वीर देख चरण स्पर्श कहने का जी हो आया. कृपया पहुंचा देंगे!!

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  24. @ सलिल भाई ,( चला बिहारी ....)
    जरूर पंहुचायेंगे और यकीनन आप उनके आशीर्वाद के सच्चे हकदार होंगे !
    संवेदनशीलता और स्नेही होना आपसे सीखना चाहिए !
    गज़ब की हस्ती हो यार !
    शुभकामनायें !

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  25. मानवीय रिश्तों को सजोनें का प्रयास करती बेमिसाल पोस्ट.
    आज यही रिश्ते-नाते लोंगों नें भुला दिए है.
    पुनः झिझोड्नें के लिए बहुत धन्यवाद.

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  26. सतीश जी,
    हम लोग तो फिर भी कुछ कोशिश कर रहे हैं, अपने बुजुर्गों के प्रति... हमारा क्या होगा जब रिटायर होंगे... तब तक अगर इण्डिया अमेरिका बन गया तो अवश्य कुछ सोशल स्क्योरिटी मिल जाएगी...वर्ना भविष्य बहुत ही भयावह है...इण्डिया अमेरिका हो जायेगा इसमें शक है...पर बच्चे जरुर अमेरिकन बन जायेंगे...

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  27. आपका लेख अच्छा है, आपका फ़ोटोग्राफ़िक सेंस और भी अच्छा है और जिस तरह आपने अपने फ़ोटो को इस लेख में पिरोया है, वह और भी ज़्यादा क़ाबिले तारीफ़ है।

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  28. सच है ,सबसे बड़ा पुरुषार्थ है पितृ और मातृ ऋण से उरिन होना -!

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  29. काश समय रहते लोग समझ सके कि एक दिन उनका हश्र भी ऐसा ही होना है !

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  30. मानवीय रिश्तों का मान करने की सीख देती सुंदर पोस्ट......

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  31. सर्वकालिक सत्य और जरूरत है. पर अफ़्सोस एक बाप कई बेटों को हंसते हंसते पाल लेता है पर कई बेटे एक बाप को नही पाल पाते.:(

    आदरणीया माताजी प्रणाम कहियेगा.

    रामराम.

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  32. एक पेड़ के लिए बहुत जरूरी है अपनी जड़ से जुड़े रहना।

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  33. हम तो उस पेड की श्रेणी में हैं, हम का सोंचें :)

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  34. aajkal ke bacche naukriyon aur waqt ka rona ro kar mata-pita ke aage apni laachariyon ka pitara khol apni jaan chhuda lene ka safal prayas kar lete hain kyunki mata pita to sab jante hain...unhone bhi apna keemti waqt in baccho ko diya hai vo b tab jab ek bahut bada pariwar hota tha aur maa sara din ghar ke kaam ki chakki me pisti thi...lekin maa apne bacche ka vyvhar bhi samajhti hai...par kya kare jab baccho ko unke sath ki chaah hi nahi hain.

    baccho ko apne mata pita ke iye samay dena chaahiye.

    bahut jagruk karti post.

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  35. सतीश जी,
    बहुत अच्छी और ज़रूरी बात उठाई है, सोचने को बाध्य करती है, फिर लगता है क्या सोचना भर काफ़ी है ...

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  36. aap ki samvedansheelta ke to sabhi qayal hain
    ye chalan aam hota jaa raha hai
    halanki asha ki jyoti abhi bujhi nahin hai pichhle kuchh dinon men joint family ka pratishat kuchh badha hai (aisa mujhe lagta hai )

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  37. आपकी पोस्ट सामाजिक सरोकार से सराबोर है. बहुत सुंदर.

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  38. hmmm...
    pata nahi ham bacche itane kharab kaise ho jate hain...
    apka yah lekh padhkar bachpan mei suni ek kahani yaad aa gai, jisme ek aurat apni saas ke saath bura bartaav karti, unhe na dhang se kahne ko deti aur na hi odhne ko, tab unhi ki bahu unko sabak sikhati hai...
    thank you so much Uncle aise post lagane ke liye aur hamari buddhi ko jaagrit rakhne ke liye...
    :)

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  39. mai ke pero ki neeche to jannat hai
    jisne apne bhoode ma baap ki khidmat nahi ki vo janaat mai kais jaaega ..??

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  40. मात्र आपकी निकटता से, यह अपने आखिरी समय में, सुरक्षित महसूस करेंगे !

    यही भावना तो छूटती जा रही है, सतीश जी.
    बहुत विचारणीय मुद्दा उठाया आपने.......

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  41. मॉल का तुत्फ़ उठाते हुए भी ऐसे ख्यालात दिल ओ दिमाग मैं आना आशा कि किरण जैसा है. शायद ...

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  42. आँखे नम हो गई ....सच में बुढ़ापे में माँ बाप कितने बेबस हो जाते हैं...

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  43. सतीश भाई जो आपने कहा वह भारतीय जीवन का आदर्श मात्र है यथार्थ नहीं है व्यावहारिक होते हुए भी .जीवन इतना ही निस्संग और बे -वफ़ा है .हमारा भी यही हाल है एक टुकडा अपने पन की तलाश में कभी भी विदेश चले जातें हैं जहां हमारी एक प्यारी सी बिटिया रहती है .मर्द हिन्दुस्तानी ऐसा घोड़ा है जिसकी लगाम "जोरू "के हाथ में होती है .दिमाग भी जैसे रशिया में पैदा हुआ हो और कह रहा हो -आई टेक ओनली कम्नांड फ्रॉम दी है कमान .बहुत अच्छी आदर्श -उन्मुख पोस्ट .बधाई .

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  44. सतीश भाई जो आपने कहा वह भारतीय जीवन का आदर्श मात्र है यथार्थ नहीं है व्यावहारिक होते हुए भी .जीवन इतना ही निस्संग और बे -वफ़ा है .हमारा भी यही हाल है एक टुकडा अपने पन की तलाश में कभी भी विदेश चले जातें हैं जहां हमारी एक प्यारी सी बिटिया रहती है .मर्द हिन्दुस्तानी ऐसा घोड़ा है जिसकी लगाम "जोरू "के हाथ में होती है .दिमाग भी जैसे रशिया में पैदा हुआ हो और कह रहा हो -आई टेक ओनली कमांड फ्रॉम दी हाई- कमान .बहुत अच्छी आदर्श -उन्मुख पोस्ट .बधाई .

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  45. माँ बाप बच्चों को जन्म से लेकर पढ़ना-लिखना सिखाना सब कुछ करते हैं और जब उनकी उम्र हो जाती हैं तब बच्चे उनका देखभाल नहीं करते और ये देखकर बहुत दुःख होता है! सटीक लिखा है आपने! मार्मिक प्रस्तुती!

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  46. सतीश जी सही कहा आपने, अपने हर पल में व्यक्ति किसी न किसी को करीब चाहता है अपने..और उम्र जब अपने अंतिम पड़ाव में हो तब तो और भी...हमें उनकी इस भावना की कद्र करनी चाहिए, समझना चाहिए उन्हें....इस सिक्के के एक और पहलू को देखा है मैंने अत: जिन बंधु जनों को उनके माता-पिता हर पल अपने साथ देखना चाहते हैं उन्हें कहना चाहूँगी कि भाग्यशाली हैं वो..क्योंकि अपने कुछ साथियों को देखा है मैंने..दीन-दुनिया-समाज-इज़्ज़त इन सबके लिए कुछ माता-पिताओं ने अपने बच्चों को हमेशा के लिए खुद से अलग कर लिया...उफ़ तक नहीं की...आज वो बच्चे तरसते हैं माता-पिता को प्यार देने के लिए, उनका प्यार पाने के लिए..पर उनके किसी एक कदम को एक बहुत बड़ी गलती मानते हुए उनके माता-पिता आज भी उनसे एक बेहद कठोर दूरी बनाए हुए हैं......इसलिए उनलोगों को, जिनको उनके जन्मदाता ढूँढते हैं और अपने पास चाहते हैं, उन्हें इसकी कद्र करनी चाहिए...

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  47. शुक्रिया भाई जान यहाँ भी आपको तवज्जो मिल जाए तो --
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
    Thursday, August 11, 2011
    Music soothes anxiety, pain in cancer "पेशेंट्स "

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  48. शुक्रिया भाई जान "सरकारी चिंता" में शरीक होने का .
    बुधवार, १० अगस्त २०११
    सरकारी चिंता
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
    Thursday, August 11, 2011
    Music soothes anxiety, pain in cancer "पेशेंट्स "
    http://sb.samwaad.com/
    ऑटिज्‍म और वातावरणीय प्रभाव। Environment plays a larger role in autism.
    Posted by veerubhai on Wednesday, August 10
    Labels: -वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई), Otizm, आटिज्‍म, स्वास्थ्य चेतना

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  49. दादा बड़े दिनों बाद आपके प्यार की चंव टेल सुस्ताने का अव्व्सर मिल पाया है....प्रणाम आपको
    आपकी संवेदनाओं के साथ तो हमेशा से ही जुड़ा हुआ हूँ

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  50. aapne sahi kaha hai mata pita ke god me hi humne surakshit mahsus kiya hai.pr unko hum dekh na paye unki seva na kar paye .to samjhiye ki jeevan bekar hai
    bahut hi achchhi soch
    rachana

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  51. यह तो हर बेटे-बेटी का फ़र्ज़ बनता है किन्तु बहुत कम लोग ही इसे निभा पाते हैं .....
    आपका यह लेख बहुत ही महत्त्व का है सतीश जी ! हमें अपनी बंद आँखें जरूर खोलनी चाहिए |

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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