Wednesday, December 29, 2010

नए वर्ष पर शुभकामनायें चाहिए - सतीश सक्सेना

यूरोप यात्रा की खुशनुमा यादों के साथ, इस वर्ष ब्लॉग जगत की खट्टे, मीठे अनुभव लिए, आपके मध्य हूँ ! ब्लॉगजगत की यादों की बात करुँ तो पूरा वर्ष टिप्पणियों   और लेखों में उलझा रहा और आत्मसंतुष्टि और सत्संग, ढूँढने के बावजूद कम ही मिल पाया ...
स्वप्रकाशित लेखों पर , भीड़ के द्वारा की गयी ,वाह वाही के कारण, बने अपने आभामंडल की चमक में मदांध, हम लोग अक्सर मूर्ख को कालिदास और कालिदास को मूर्ख कह कर, विद्वता को निर्ममता से रौंद डालते हैं !      
ब्लॉग जगत की त्रासदी है कि पढने लायक लेख़क और उसके लेख को समझ कर टिप्पणिया देने वाले पाठक, की तलाश करना, सागर में बिना साधन, मोती ढूँढना है !
जो अच्छे लिखते हैं, वे लोकप्रिय न होने के कारण सामने नहीं आ पाते...मगर जो कूड़ा लिखते हैं, वे  अधिक टिप्पणियां देने के कारण अधिक लोकप्रिय हैं ! ( मैं भी लगा रहता हूँ ...) :-)     

दिन भर में ४० - ५० टिप्पणियां देने का लक्ष्य पूरा करने के लिए , अधिकतर लोग यहाँ, दूसरे को पढ़कर, अपना समय बर्बाद नहीं करते , किसी लेख की, पहली और आखिरी कुछ लाइनों  से समझ न आये तो किसी अच्छे ब्लागर की टिप्पणी  पढ़ कर, अपनी टिप्पणी ठोक देने से काम चला जाता है ! हाँ कभी कभी , जल्दी जल्दी समझने को कोशिश कर ,जो राय बने, उसे कायम कर, अक्सर मूर्ख  को समझदार  और समझदार को मूर्ख मान लेते हैं !
ब्लॉगजगत में पिछले वर्ष की उपलब्धियों के नाम पर कुछ ख़ास नहीं मिल पाया जो दिल को तसल्ली मिले  ....
हाँ कुछ ऐसे स्वघोषित विद्वान्  ;-) जरूर मिले जो यह समझा गए कि कुछ अच्छा लिखा करो तो लोग तारीफ़ भी करेंगे :-)))
अपने काम और व्यवहार के प्रति लोगों की बुद्धि समझ कर, अपने बाल नोचने का दिल कई बार किया है  .... 
इस वर्ष तो यही समझ आया कि मूर्खों से ईश्वर रक्षा करे और चालबाजों से दूरी बनी रहे, हालाँकि पहचानने में बार  बार गलती की है  ..... :-(
दोस्तों से अनुरोध है कि सच्चे मन से, अगले वर्ष की शुभकामनायें दे जाना, हमारे ब्लॉग पर...बहुत जरूरत है !
शुभकामनायें चाहिए कि अगले साल  "हमें समझ जाने वाले" और "हमारी असलियत जानने वाले" समझदार, कम से कम टकरायें  :-)), और कुछ भले और ईमानदार लोगों से भेंट हो तो इन लेखों का लिखना सार्थक हो !सबसे  अंत में ईश्वर से प्रार्थना है कि  मेरे पास इतना धन और शक्ति जरूर बचाए रखे  कि वक्त आने पर, मेरे दरवाजे से , कोई मायूस होकर, वापस न लौट जाए ! 
किसी का एक आंसू,बिना उस पर अहसान किये, पोंछ सका, तो अगले वर्ष, अपना मन संतुष्ट मान लूँगा  ...

Monday, December 27, 2010

हम अपनी शिक्षा भूल चले -सतीश सक्सेना


काफी समय पहले, ब्लाग जगत में अपने अनुभवों को लेकर ,यह हलकी फुलकी रचना लिखी थी  शायद आपको आनंद दे !

कुछ मनमौजी थे, छेड़ गए
कुछ कलम छोड़ कर भाग गए
कुछ संत पुरूष भी पतित हुए
कुछ अपना भेष बदल बैठे ,
कुछ मार्ग प्रदर्शक,भाग लिए
कुछ मुंह काले करवा आए,
यह हिम्मत उन लोगों की है,
जो दम सेवा का भरते हैं !
कुछ ऋषी मुनी भी मुस्कानों के, आगे घुटने टेक गए !

कुछ यहाँ शिखन्डी भी आए
तलवार चलाते हाथों से,
कुछ धन संचय में रमे हुए,
वरदान शारदा से लेते !,
कुछ पायल,कंगन,झूमर के
गुणगान सुनाते झूम रहे ,
मैं कहाँ आ गया, क्या करने, 
दिग्भ्रमित बहुत हो जाता हूँ !
अरमान लिए आए थे हम , अब अपनी राहें भूल चले !

कुछ प्रश्न बेतुके से सुनकर
पंडित पोथे, पढने भागें,
कुछ प्रगतिवाद, परिवर्तन
के सम्मोहन में ही डूब गए
कीकर, बबूल उन्मूलन की
सौगंध उठा कर आया था ,
मैं चिर-अभिलाषित, ममता का, 
रंजिश के द्वारे आ पहुँचा !
ऋग्वेद पढाने आए थे ! पर अपनी शिक्षा भूल चले !!


Sunday, December 26, 2010

कांटे बबूल के -सतीश सक्सेना

डॉ अनवर जमाल
आपके इस लेख में उठाये प्रश्न और मुझे लिखे पत्र  
"...मेरी नई पोस्ट देखेंऔर बताएं कि जनाब अरविन्द मिश्र की राय से आप कितना
सहमत हैं और इस पोस्ट में आप मुझे जिस रूप रंग में देख रहे हैं , क्या यह
बंद ज़हन की अलामत है ?"

के जवाब में अपना स्पष्टीकरण दे रहा हूँ ....
- आप से नाराजी की, मेरी वजह केवल एक मुद्दे को लेकर है, आपको किसी अन्य  के ऊपर अपनी राय और व्याख्या नहीं देनी चाहिए उससे आस्थावान पाठकों को बेहद तकलीफ होती है ! सम्मान पूर्वक भी, हमारी मान्यताओं की व्याख्या करते समय, यह नहीं भूलना चाहिए कि आप दुसरे धर्म के प्रति आस्थावान नहीं है ! 
ऐसा करके आप मेरे विचार से गलत परिपाटी डाल रहे हैं, जिसका परिणाम यही होगा जिसकी आप शिकायत कर रहे हैं !
-डॉ अनवर जमाल का एक विशेष स्वरूप, हिंदी ब्लॉगजगत में स्थापित हो चूका है ! एस .एम. मासूम  के लेख पर जाकर आप की टिप्पणी का अर्थ, भी लोग अपने हिसाब से लगायेंगे और परिणाम उनके ब्लॉग पर बेहतरीन लेखकों के बावजूद, उस अच्छे काम को उचित सम्मान नहीं मिल पायेगा !
इसके अतिरिक्त हर पाठक के दिल में, लेखक का एक प्रभामंडल बन जाता है, टिप्पणियों को क्वालिटी और संख्या , अधिकतर इसी सम्मान पर निर्भर है !    
-आपने मुझ पर शक करके अपनी शक्की मानसिकता का परिचय दिया था उससे मैं बहुत घायल हुआ...यकीन करें मेरी कथनी करनी में फर्क नहीं है और मैं कोई काम किसी को प्रभावित करने के लिए कभी नहीं करता ! मेरे पास एक लेखनी और ईमानदारी है , मैं चाहता तो उस वक्त ही स्पष्ट जवाब दे सकता था मगर मैंने यह उचित नहीं समझा और आपको एक वर्ग विशेष का प्रचारक मानते हुए अपने आपको उस लाइन से ही दूर हटा लिया !
-एक बात और, तीर छूटने के बाद, घायल से कोई नहीं कहता कि उसने बेवकूफी में  तीर चलाया ! मर्म बिंध जाने का असर आप मेरे लेखों में ढून्ढ सकते हैं, शायद आपको उस सतीश सक्सेना की जरूरत ही नहीं थी !
खैर , मुझे उसकी कोई शिकायत नहीं ...आपके अपने उद्देश्य हैं जिन्हें आप बेहतर जानते हैं !
स्थापित लेखक और विद्वान् होने के कारण मैं आपसे तो बिलकुल ही उम्मीद नहीं करता कि आप मान जायेंगे ...बहरहाल लगी चोट,  घायल ही बेहतर जानता है, अनवर भाई ! हमें प्यार की समझ होनी चाहिए !
अगर कभी मेरी बात कभी सच लगे, तो अपने आप को व्यापक देश हित में, बदलने की कोशिश करें लोग आपको वही  प्यार और सम्मान देंगे जिसके लायक आप अपने को मानते हैं  !
योगेन्द्र मौदगिल की दो लाइने मुझे बहुत पसंद हैं ...
" मस्जिद की मीनारें बोलीं, मंदिर के कंगूरों से  !
मुमकिन हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से " 
सादर 
(कृपया इस लेख पर टिप्पणिया न दें  ...अपने सम्मानित पाठकों से क्षमायाचना सहित )

Friday, December 24, 2010

कैसी रीति समाज की -सतीश सक्सेना

वागर्थ पर डॉ कविता वाचक्नवी की एक रचना पढ़ते हुए , निकट भविष्य में, गुडिया की विदाई का चित्र, आँखों के सामने आ गया ! और भरे मन से क्या लिखा, यह मुझे नहीं पता ....
यह रचना पढ़कर, आँखें क्यों भर आयीं ? इसका वर्णन शब्दों में करना, कम से कम मेरे लिए असंभव है ! ऐसी मार्मिक रचना के लिए उनको हार्दिक बधाई ! 
अपने मन के भाव, जैसे उस दिन लिखे गए , वही आपके सम्मुख रख रहा हूँ ...   


गुडिया द्वारा चावल , मुट्ठी में भरते ही 
आँख छलछला उठीं 
अपनी लाडली का यह  स्वरुप 
कैसे  देख पाऊंगा ..मैं पिता 
कैसी यह घडी, कैसा यह चलन
नहीं समझ सका, कभी यह मन  !
मुझे सबसे अधिक प्यार करने वाली ही , 
इस घर में सबसे कमज़ोर है, मेरे होते हुए भी  
शायद सबसे अधिक, उसे ही मेरी जरूरत है !
और सबसे पहले, उसे ही निकाल रहा, मैं खुद 
कह रहा कि , यह तेरा घर नहीं  !
भाई को सौंपती, अपने पिता को 
कि भैया ! पापा का ख़याल रखना  
कहती, यह मासूम जा रही है 
एक नयी जगह , मेरी बेटी  !
जिसको, भय वश मैंने, कभी नयी जगह, 
अकेला नहीं जाने दिया ....
यह जा रही है , नए लोगों के बीच रहने 
अकेली ! बिना अपने पिता ...
जिसे मैंने कभी नए लोगों से नहीं मिलने  दिया 
क्योंकि यहाँ भेडिये ज्यादा मिलते हैं, इंसान कम 
मेरे कठोर शरीर का , सबसे कोमल टुकड़ा
मुझसे अलग होकर जा रहा है, घने जंगल में 
यह पिता क्या करे  ?? बताओ मेरी कविता  ??
तुम सिर्फ रुला सकती हो .....
मुझे तुम क्या बताओगी ...??

Wednesday, December 22, 2010

डॉ अमर कुमार के लिए प्रार्थना - सतीश सक्सेना

डॉ अमर कुमार की एक टिप्पणी जो उन्होंने कैंसर वार्ड से लिखी है, प्रकाशित कर रहा हूँ ! 
Wow Satish Bhaiya, 
I read your mail today only, after recovering a lot from a crisis.
I was the first man to offer my proposal in the likewise manner to The Gupt Duo, I could understand their grief of parting with their dream project.
I took interest and suggested some modifications in Blogprahari,he kindly honored them too... but He was taken for ride, rather lured for a ride by few stalwarts and he Gone Gudum, the fellow kanishk Kashyap !

I own my personal website AMARHINDI and some technical resources too, So I planned an agregater in detail with Kush... BUT THE IRONY OF THE SCENARIO IS A BITTER TRUTH that we need a segregator not an agregater... 
who can categorically sort out the region, topic, and GUTwise ;)Posts.

Sorry for such an inexpressive english.. but chalega, I am already being moderated in this Cancer Ward !



अपनी जीवंत टिप्पणियों से, ब्लॉगजगत को जागरूक करते, अमर कुमार को कैंसर वार्ड में देखना , निस्संदेह एक बुरा सपना है ! मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वे आपरेशन के बाद, इस भयानक रोग द्वारा , कम से कम क्षति लेकर बाहर आयें  और हमें जागरूक करने का काम दुबारा शुरू करें !!
डॉ अमर कुमार को पूरे प्यार और सम्मान सहित शुभकामनायें !


पुनश्च :
उनसे मिले एक मैसेज के अनुसार जबड़े के कैंसर का आपरेशन ६ घंटे तक चला है, इससे इस बीमारी की भयावहता पता चलती है मगर उनकी जीवन्तता हम सबके लिए अनुकरणीय है...आप उनकी मस्ती की झलक इस मोबाइल मेसेज में देख सकते हैं ....


" Had jaw cancer, got an 7 hour marathon commando surgery last Monday . Do not worry I am ok and will continue to haunt the blogwud for several years. unable to speak clearly for next 3 months. chalega ....sab chalega bhai !
sab manjoor ! "

उनकी यह बीमारी हम सबके लिए चिंता का विषय है , आइये हम प्रार्थना करें कि वे शीघ्र ठीक होकर, हमारे बीच उसी ठसक के साथ आयें !

Monday, December 20, 2010

आपकी टिप्पणियां, आपकी पहचान बता देंगी - सतीश सक्सेना

हम ब्लॉग लेखकों को यह याद रखना चाहिए, कुछ और विद्वान लोग भी प्रसंशा पूर्वक आपको पढ़ रहे हैं, मगर वे यहाँ टिप्पणी नहीं करते अतः आप उन्हें पहचान नहीं पाते !
अक्सर लेख लिखते समय,सोच समझ कर,लिखने के कारण, हम लोग अपने गुणों का भरपूर परिचय देने में तथा अपने अवगुणों को छिपाने में सफल हो सकते हैं ! 
मगर जब भी हम बढ़ चढ़ कर बात करेंगे, गलती होने की सम्भावना निश्चित ही बढ़ जाती है ! 
किसी लेख पर, बिना कारण जाने, गुस्से में दिए हमारे कमेन्ट , हमारी असलियत उजागर कर सकते  हैं और ऐसे कमेन्ट हमारे  ईमानदार मित्रों को, हमसे दूर ले जाने में, सक्षम होंगे !
आइये एक मनपसंद ग़ज़ल सुनिए मुझे भरोसा है आपको और मेरे मित्रों को अवश्य पसंद आएगी !
हमारी कलम , बनावट के बावजूद हमारी वास्तविक पहचान बताने में समर्थ है !

तुझे देख कर सब मुझे जान लेंगे ....
( चित्र गूगल से साभार )  

Sunday, December 19, 2010

पुरविया की टूटी पान की दुकान पर, दीपक बाबा और मैं -सतीश सक्सेना

                           ब्लॉग वाणी को पुनर्जीवित करने का प्रयास, अंततः सिरिल गुप्ता के पत्र के साथ, समाप्त हो गया ! हाँ, फोन पर उनसे बात करते समय ,आवाज से झलकता हुआ दर्द, छिपाने के बावजूद, महसूस हो गया ! बार बार पूंछने पर भी उन्होंने वे कारण नहीं बताये  जो ब्लोगवाणी बंद कराने के लिए जिम्मेवार रहे थे मगर उनका दिल दुखाया गया, यह अंदाज़ तो हो ही गया !
                            ब्लॉग जगत में ताजे बने लेखकों की भीड़ में ,जिसमें संत पुरुषों से लेकर थर्ड ग्रेड शोहदे शामिल है ,अच्छे काम करते कुछ लोगों को, बिना उनका काम समझे , अपमान किया जाए तो इसमें आश्चर्य कैसा ?? संगति का असर तो झेलना ही पड़ेगा  ! आश्चर्य तब होता है जब खासे स्थापित लोग भी, निर्दोषों पर ऊँगली उठा कर, झूठे आरोप लगाते नज़र आते हैं ! आने वाले समय में ऐसे "चरित्रवान " लोग, नंगे नज़र आयेंगे ऐसा मेरा विश्वास है क्योंकि उस समय ब्लॉगजगत में अंधों की संख्या यकीनन कम होगी !
                            खैर भारी मन से , कल भटकते हुए, मैं पुरविया की दुकान पर पंहुचा तो वे सतीश सक्सेना और डॉ अरविन्द मिश्रा   :-) की परेशानी में अनूप शुक्ल की तरह दुखी बैठे थे  ! दीपक बाबा, कौशल मिश्रा को सुनकर आप भी मुस्कराए बिना नहीं रहेंगे ! आप  पुरविया के ब्लॉग पर कमेंट्स की ताजगी देखिये .....
दीपक बाबा said...

मिसिर जी, सही लपेट रहे हो ........ अभी 'मजनू' भी आ रहे होंगे ....... वही जवाब देंगे..

सतीश सक्सेना said...
@ पुरविया

@ बाबा
तुम जैसे जवान होंगे घर में, तो हमें ही मंजनू बनाना पड़ेगा ....
दिन ही बुरे हैं घर के बच्चों को क्या दोष दें ..
सही है! लगे रहो दोनों यही पर :-(
मनोज कुमार said...
लग तो ऐसे ही रहा है जैसा आपने कहा है कि ऐसा लगता है किसी पान की दूकान को नगर निगम का दस्ता गिरा गया हो, जब धडाधड महाराज ही नहीं हैं तो बहुत से लोगों तक अपनी बात पहुँचाना भी दुष्कर कार्य है!
सतीश सक्सेना said...
टूटी पान की दूकान के बाहर फूटपाथ पर , हमारे पुरविया और दीपक बाबा सर पर हाथ रखे ,दूसरों की चिंता में घुल रहे हैं कि इनके पान का क्या होगा ....की चिंता कर रहे हैं ! जय हो महाराज !

टूटी पान की दूकान के बाहर फूटपाथ पर , हमारे पुरविया और दीपक बाबा सर पर हाथ रखे ,दूसरों की चिंता में घुल रहे हैं कि इनके पान का क्या होगा ....की चिंता कर रहे हैं ! जय हो महाराज !
वैसे लिखा बढ़िया है ! !
दीपक बाबा said....
@ सतीश सक्सेना 
@ इनके पान का क्या होगा....
हमरे तो वैसे ही बेकार पान है.......... जो लोग बढिया पान खिलाते थे..... उनका क्या होगा.? सक्सेना जी पहले उनकी चिंता कीजिए....
सतीश सक्सेना said...
हमें तो बाबा और पुरविया की दूकान का ही पान अच्छा लगता है ...धक्का काहे दे रहे हो यार !
वैसे ही सर फटा जा रहा है आज ..
कल शाम छत्तीस गढ़ भवन में कुछ गरम शरम  मीटिंग है चलोगे ...तुम्हारे साथ ठीक रहेगा !
चलने का मन हो, तो फोन कर लेना.....
दीपक बाबा said...
आप तो आइसे बात कर रहे हैं जैसे आपका फोन न. १०० या १०१ हो.......
सतीश सक्सेना said..
सतीश सक्सेना said..
बाबा !
तुम थानेदार क्यों नहीं बन जाते यार...... !
९८११०७६४५१
                                         बिना किसी दिखावे के , ब्लोगर मित्रों के बीच, इस प्रकार की बातचीत दुर्लभ दिखती है ! अधिकतर ब्लॉग जगत में लोग लिखते समय "आदरणीय "और "जी "अवश्य लगाते हैं जबकि दिल में एक दूसरे के प्रति कोई प्यार नहीं होता  ऐसे  सम्मान का क्या फायदा जिसमें प्यार का अभाव हो और संबोधन में नाटकीयता साफ़ झलक रही हो ! डांटने का अधिकार का तो यहाँ सर्वथा अभाव ही है....  

Saturday, December 18, 2010

ब्लोगवाणी संचालकों को एक पत्र , एक अनुरोध के साथ - सतीश सक्सेना

हिंदी ब्लॉग जगत के लिए बेहद सम्मानित मैथिली जी एवं  सिरिल !

मैं एक सामान्य व्यक्ति हूँ , हिंदी ब्लॉगजगत के लिए जो कार्य आप पिता पुत्र ने किया है उसका सम्मान करता हूँ ! ब्लोगवाणी के चले जाने से जो रिक्तस्थान पैदा हुआ वह भर नहीं पा रहा है और इसके बिना ब्लॉग जगत का बहुत नुकसान ( खास तौर पर नए ब्लोगर का )हो रहा है ! मेरी इच्छा, आपके लगाये पौधे को पुनर्जीवित कर ,उसमें आपको सहयोग भर देने की है  !
-क्या आप इसमें अपना समय दे पायेंगे ? यदि हाँ तो आप जैसा सहयोग चाहेंगे  वह मैं देने को तैयार हूँ मेरी तरफ से यह कार्य पूर्णतः समाज के भले के लिए होगा हाँ इसमें आवश्यक धनराशि, चाहे वह कितनी हो क्यों न हो , अपने प्रयत्नों से एकत्र कर लगाने को तैयार हूँ ! और योगदान बिना किसी शर्त होगा !

-अगर आप समय नहीं देना चाहें तो मैं आपका ब्लोगवाणी तंत्र खरीदने के लिए तैयार हूँ और इस तंत्र को पुनर्जीवित कर , ५ लोगों की कमेटी के नेतृत्व में चलाने की व्यवस्था करना चाहूँगा इसमें  आपका नाम जुड़े रहने की प्रार्थना के साथ, आपको उसमें बने रहने की प्रार्थना भी शामिल है !

- प्रयुक्त सर्वर एवं एक ओपरेटर का खर्चा वहन करने की व्यवस्था की जा सकती है !
  
-उपरोक्त कार्य में योगदान के लिए मेरा उद्देश्य, किसी प्रकार का आर्थिक लाभ लेने का नहीं है ! हाँ अगर आपको उससे आर्थिक लाभ हो तो मुझे सहर्ष स्वीकार होगा !

- आशा है जिस भावना से, इस पौधे को रोपित किया था , दुबारा पुनर्जीवन में आप सहर्ष साथ देंगे ! 
आपकी हर शर्त मंजूर होगी !
उत्तर की प्रतीक्षा में 

सादर  
सतीश सक्सेना
(यह अनुरोध मेरी व्यक्तिगत इच्छाशक्ति के आधार पर है इसमें किसी ब्लोगर से कोई राय नहीं ली गयी है , हाँ समान सोच वाले मित्रों  से अनुरोध है कि  वे साथ दें, इससे मैं अपने आपको और मज़बूत महसूस करूंगा ) 
satish-saxena.blogspot.com


अभी अभी इमेल बॉक्स खोलने पर , सिरिल गुप्ता का यह मेल मिला है जो आप लोगों के लिए, पोस्ट का एक भाग बना कर प्रकाशित कर रहा हूँ  ! मेरा विचार है कि अभी भी उनसे बात करने का मौका है ..फिलहाल आप लोगों के विचार आमंत्रित हैं ....  



Cyril gupta

 to me
show details 5:25 PM (2 hours ago)
आदरणीय सतीश जी,
आपको हम और ब्लागवाणी अब तक याद है यही बहुत बड़ा सम्मान है, और यह तो गौरव कि बात है आप अपनी गाढ़ी कमाई का धन ब्लागवाणी पर लगाने को तैयार हैं.
लेकिन ब्लागवाणी तो धनाभाव में बंद नहीं हुई. ब्लागवाणी चालू है, उसके सर्वर पर जितना खर्च पहले हो रहा था निरंतर उतना ही अब भी हो रहा है़.  अब ब्लागवाणी को अपडेट करना रोक दिया है जिसके कारण निजी हैं.
ब्लागवाणी क्योंकि अब ब्लॉग इतिहास का हिस्सा है इसलिये कृपया दूसरे विकल्पों और नये आने वाले रचनाशील लोगों को मौका दें. मुझे नहीं लगता वे आपको निराश करेंगे.
इतने प्रेमपूर्ण पत्र के लिये धन्यवाद, यह हमेशा याद रहेगा.
आपका दोस्त
सिरिल

Friday, December 17, 2010

ब्लोगर मीटिंग,ब्लॉग जगत का एक खूबसूरत चेहरा - सतीश सक्सेना

ब्लॉग जगत में आने से पहले ही मैं एक व्यस्त सामाजिक प्राणी था जो अकेला रहना कभी पसंद नहीं करता था जो लोग मुझे अच्छे लगते रहे हैं, उनकी समस्याओं को अपनी पूरी शक्ति के साथ सुलझाने का प्रयत्न करना, मेरा जूनून रहा है, नतीजा हर समय व्यस्तता, जो मेरी अक्षय उर्जा को और शक्ति देता रहता है !

मानव समाज में मित्रता और मुहब्बत एक अजीब रंग है जो किस पर चढ़ जाए यह कोई नहीं जानता ! समान गुण स्वभाव के लोगों में परस्पर खिचाव स्वाभाविक ही है , सो ब्लॉग जगत में शुरुआत से ही जिन लोगों से आकर्षित रहा उनमें अनूप शुक्ल, अरविन्द मिश्र और समीर लाल प्रमुख रहे ...मुझे इन लोगों के लेख कहीं न कहीं प्रभावित करते रहते थे और हम मुरीदों में शामिल होते चले गए ! अभी इसी माह समीर लाल के साथ दिल्ली में समय बिताने का मौका मिला ! शायद आपको जानकर आश्चर्य होगा कि प्रोफेशनल चार्टर्ड एकाउंटेंट समीर लाल, बिना किसी विशेष आधिकारिक डिग्री लिए, कम्पयूटर टेक्नालोजी में कनाडा स्टाक मार्केट में, सोफ्टवेयर विशेषज्ञ के रूप में मशहूर हैं ! इस संवेदनशील, पारिवारिक और भावुक व्यक्ति की रचनाओं के जरिये, आप  इसमें छिपे एक सीधे साधे सरल व्यक्तित्व को आसानी से देख सकते हैं !   


गर्वरहित मगर प्रभावशाली  जाकिर अली रजनीश के साथ खड़े  डॉ अरविन्द मिश्र , से मिलने में लगा कि एक मस्त परमहंस से मुलाकात हो गयी ! मिलनसारिता और बेबाकी में सीमारहित, अरविन्द में, कई जगह मुझे अपना प्रतिरूप नज़र आया ! अगर आप खुलकर बात करना और कहना पसंद करते हैं तो बेबाक विद्वता के धनी , अरविन्द मिश्र के पास से हटने का दिल नहीं करेगा, और निस्संदेह विभिन्न विषयों पर गहरी पकड़ रखने वाले अरविन्द, किसी को भी आसानी से, हँसते हँसते प्रभावित करने में सक्षम है !


 ब्लॉग जगत की शख्शियतों की चर्चा ही बेकार मानी जायेगी अगर अनूप शुक्ल का नाम नहीं लिया जाए ! हिंदी ब्लॉग साहित्य में, अपने योगदान की बिना चर्चा किये, अपनी ही छवि के साथ खिलवाड़ करने वाले इस विद्वान् लेख़क में गज़ब का जीवट है जो निर्ममता के साथ अपने व्यक्तित्व के साथ मज़ाक करता रहता है ! आप एक उदाहरण देखिये  "सतीश सक्सेना जी ने मासूम भाई को सुझाया कि वे अनूप शुक्ला से भी अमन का पैगाम लिखवा लें। मुझे लगा कि शायद सतीश जी अमन में हमारे मसखरेपन को शामिल करवाना चाहते हैं। हम कोई पैगाम देंगे तो लोग भले न हंसे हमको खुद हंसी आयेगी कि हम भी पैगाम देने लगे।
कई बार मुझे महसूस होता है की अगर हिंदी ब्लॉग में अनूप शुक्ल और समीर लाल न होते तो ब्लॉग जगत का आज का स्वरुप हमें कम से कम पांच साल बाद देखने को मिलता ! निस्संदेह ब्लॉग जगत को लोकप्रिय बनाने के प्रयासों में, ये दोनों हमेशा जाने जायेंगे !


 १५ दिसंबर को अनूप शुक्ल का आमंत्रण था जेएनयू में आइये , चाय पीते हैं !गंभीर और बेहद भावुक, पीएचडी विद्यार्थी , अमरेन्द्र त्रिपाठी से मिलने की बहुत दिनों से तीब्र इच्छा थी इनके लिखे हुए कमेन्ट का मैं हमेशा से प्रसंशक रहा ! वहाँ पंहुच कर तो आनंद ही आ गया , मितभाषी डॉ आराधना चतुर्वेदी "मुक्ति",  ईमानदार श्रीश पाठक ,  और स्नेही मगर तीखे शिव कुमार मिश्र  ( फोन पर ) जैसे दिग्गज ब्लोगर्स से, एक साथ पहली मुलाक़ात कर, मेरा आज का दिन यादगार हो गया ! वह और बात है कि ( अनूप शुक्ल ) महागुरु ( घंटाल ) की रहस्यमय बातें और अंदाज़ आज भी मेरी समझ नहीं आती ;-)

ब्लॉग जगत में एक से एक बड़े विद्वान् लिख रहे है जहाँ मेरे जैसे जैसे लोग पासंग भी नहीं है...अगर इन लेखों के कारण इन विद्वानों से कुछ सीख सकूं अथवा इसी प्रकार इनका सामीप्य मिलता रहे तो यह ब्लाग लेखन धन्य हो जाए  ! काश प्यार और परस्पर सम्मान के साथ यह ब्लोगर मिलन चलते रहे और सब उन्मुक्त मन स्वागत करें तो शायद आनंद चौगुना हो जाए !

Sunday, December 12, 2010

सच है दुनिया वालों कि हम हैं अनाड़ी -सतीश सक्सेना

जिस पोस्ट को मैं स्नेह और प्यार की पोस्ट मान रहा था , उसका  उद्देश्य काफी हद तक कुछ गलतफहमियों के कारण खराब हो गया ! खैर सब कुछ अपने हाथ में नहीं होता ! 
महफूज़ ने मैसेज के जरिये कहा है कि मुझे दुःख है ...मुझे माफ़ कर दीजियेगा  ! धन्यवाद महफूज़ ! मगर फिर भी मैं अपना स्पष्टीकरण अवश्य देना चाहूँगा जिससे आप और खुद इंदु जी को मेरी ओर से ग़लतफ़हमी न रहे ! 
इन्दुपुरी को स्नेह वश ही विभिन्न संबोधनों से पुकारा गया था जिसमें इंदु माँ  अथवा स्नेह से बुढ़िया कहा गया !
फिर भी जो कुछ टिप्पणिया देखीं किसी संवेदनशील दिल के लिए दुखाने को काफी है ! मुझे इसका खेद रहेगा !


आइये एक बहुत प्यारा गाना  सुनते  हैं ...
सच है दुनिया वालों कि हम हैं अनाड़ी  

Saturday, December 11, 2010

एक ब्लागर की समझ -सतीश सक्सेना

पहले दिन - यार यह मुझे सतीश सक्सेना बहुत अच्छा लगता है, उसके लेख पढ़े ?
दुसरे दिन - मज़ा आ गया बहुत ईमानदार व्यक्ति है ऐसे लोग कम ही हैं ...?
तीसरे दिन - इनको गुरु बनाने का दिल कर रहा है 
चौथे दिन - अजीब बात है कैसे कैसे लोगों की तारीफें कर देते हैं गुरुदेव ! यह उस आदमी की तारीफ कर रहे हैं जो किसी लायक नहीं ! 
पांचवे दिन -( यह लेख तो बिलकुल बकवास लिखा है यह तो  @*&%^# की  भक्ति कर रहे हैं बहुत निराशा हुई इनके विचार जानकर !छटे दिन - यार आज मुझे गुरु पर बहुत गुस्सा आया इसका कमेन्ट देखकर ...मैं इसकी इतनी इज्ज़त करता हूँ और यह  ऐसे घटिया लोगों को इज्ज़त दे रहा है !
सातवें दिन - इसका लेख पढ़ा ? वाइन  के शौक़ीन है 
आठवे दिन : अपने बराबर उम्र की महिला को माँ कह रहा है  ...यह क्या बकवास है !     
नौवें दिन : अच्छा है इसकी असलियत दिख गयी आगे से इससे दूरी बना लो !
और सतीश सक्सेना को वह समझदार ब्लागर दोस्त पहचान गया .......

Thursday, December 9, 2010

अमरेन्द्र को पढना और समझना - सतीश सक्सेना

सतीश सक्सेना ने आपकी पोस्ट " द्वंद्व और काव्य का विकास . " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
बाप रे बाप !
इसे समझने के लिए गिरिजेश राव से विनती करनी पड़ेगी और वे हमें( प्रौढ़ शिक्षा क्लासें) पढ़ाने आयेंगे नहीं सो क्या करें भैया ??
अगली बार शराफत से कुछ ऐसा लिखो जो हमें भी इंटरेस्ट आये नहीं तो तुम्हे हूट करके एक पोस्ट पेल दूंगा.... देते रहना वहां आई टिप्पणियों के जवाब !
सुबह सुबह ब्लॉग पठन का सारा मूड खराब कर दिया ...जा रहा हूँ अपनी पुरानी खोपड़ी सहलाते
सतीश सक्सेना  


@ सतीश जी ,
सर जी , आप स्वयमेव काव्य-प्रेमी हैं , आपके लिए इतना भी टफ नहीं है . यह सब बातें तो जीवन-जगत की हैं . उसी जीवन - जगत की जहां हम आप सब रहते हैं . द्वंद्व है और हम उनका शमन , सामजस्य करते ही रहते हैं , जीवन चलता रहता है और कविता उसकी अभिव्यक्ति भी करती है . एतनेही बात है .
और सर जी , मुझको धमकी :-) हा हा हा ! ग़ालिब ने कहा है - ' मुश्किलें इतनी पडीं की आसां हो गयीं ' ! और आप मुझपर कुछ लिखकर मुझे फेमस ही करेंगे , इतना विश्वास है , काश ऐसा हो !! :-)

आप तो मेरे शुभकामी है .. और देखिये न , मैं तो अपने प्यारे दुश्मनों ( जानबूझकर बहुवचन में शब्द को प्रयोग कर रहा हूँ , वैसे तो जानता हूँ कि मेरे खिलाफ एक या आधे-तीहे ही .... बेचारे ... ) का भी शुक्रगुजार हूँ , बशीर बद्र जी की समझाईस भी तो है ---


'' मुख़ालिफ़त से मेरी शख़्सियत सँवरती है
   मैं दुश्मनों का बड़ा एहतराम करता हूँ ! ''

अमरेन्द्र त्रिपाठी  
आखिरी शेर बहुत अच्छा है अमरेन्द्र ! किसी भी हालत में मानव को डगमगाना नहीं चाहिए ! जहाँ तक मानव मन और स्वभाव की बात है मैंने आज तक कोई "अच्छा आदमी "नहीं देखा मैं खुद ऐसी लापरवाहियां, जल्दवाजियाँ  कितनी बार कर चुका हूँ !जो यह दावा करे कि उसका चरित्र पूरी तरह स्वच्छ और निर्दोष है तो मैं केवल मुस्करा सकता हूँ ! 
अमरेन्द्र जैसे बेहतरीन लेख़क की बेचैनी, इनकी पंक्तियों से जान, अच्छा नहीं लगा ...उससे भी अधिक खराब लगा हिंदी ब्लॉग जगत से, एक शक्तिशाली कलम को, लेखन से लगभग अलग कर लेना !
हिंदी ब्लॉग जगत में अच्छे लेखकों के मध्य मित्रता (खास तौर पर डॉ अरविन्द मिश्र से क्षमा याचना सहित ) के बाद, विवाद  तकलीफदेह और अनुचित है ! मनमुटाव के बाद, अगर स्वस्थ सम्बन्ध संभव नहीं हैं तो अलग हो जाइए ! व्यक्त कडवाहट तो आपको कमजोर ही करेगी ! अगर आप लोग बेहतरीन कलम के मालिक हैं, तो यकीन मानिये लोग आपका सम्मान, अपने आप करेंगे इसके लिए चिंतित क्यों  ?? 
ईमानदारी बोलती है  ! ठीक उसी प्रकार जैसे चोरी, कभी कभी न कभी खुलती जरूर है !  
काश भाई लोग इन बेहतरीन लोगों के, पैरों में लगे कांटे निकाल, इनमे मरहम लगाने का प्रयत्न करने में, बिना उपहास उडाये, मदद करें ( अनूप शुक्ल का आभार ) ! इस समय खराब लगते इन पैरों को ठीक होने दीजिये, आप कहेंगे कि , 
" वाकई ये पाँव बहुत खूबसूरत हैं "
ये हिंदी ब्लॉगजगत को बड़ी ऊंचाइयों पर ले जाने में समर्थ हैं !
किसी का  अपमान करने से खिन्न मन को क्षणिक राहत भर मिलती है , जबकि  तारीफ करने से, लगेगा कि कुछ नया सृजन किया !
( टिप्पणी कर्ताओं से अनुरोध है कि किसी व्यक्ति विशेष को लेकर विवाद युक्त टिप्पणी  न करें यह लेख हर पक्ष का सम्मान करता है ) )  
Related Posts Plugin for Blogger,