Monday, August 9, 2010

कम्पयूटर के वे आरंभिक दिन और पीसी बुलेटिन बोर्ड सर्विस - सतीश सक्सेना

आज PC Quest मैगज़ीन के पुराने पेज देखकर बुलेटिन बोर्ड सिस्टम से लेकर ब्लाग लेखन तक का सफ़र याद आ गया ! सोचा आप लोगों से साझा करुँ !
१९९२ में मैंने 40 MB हार्ड ड्राइव और 1 MB RAM,5.25" floppy drive युक्त अपना पहला कम्पयूटर लिया था तो दोस्तों ने मुझे पागल बताया था क्योंकि मैं उतने पैसे में अच्छी कंडीशन की फिएट ले सकता था ! उन दिनों कम्पयूटर के जानकार, मार्केट में उपलब्ध नहीं थे बिना किसी जानकारी के कम्पयूटर लेकर घर आया और पीसी क्वेस्ट मैगजीन लेकर, घंटो कम्पयूटर के सामने बैठ, ऑटो एक्सिक बैच और कॉन्फिग फ़ाइल में सर खपाता रहता था ! अगले दिन कम्पयूटर सीखने की कक्षा में एडमिशन लेने के बाद गया तो टीचर के बचकाने तरीके को देख, जमा पैसे छोड़कर घर बापस आ गया था और पी सी क्वेस्ट मैगज़ीन को गुरु मानकर साउंड कार्ड ...वीडियो कार्ड ...मेमरी मैनेजमेंट में सर खपाता रहता था !

               पीसी क्वेस्ट मैगज़ीन पढ़ कर मैं अपनी जानकारी को अपडेट करता रहता था नेहरु प्लेस में अपने मित्र की जिस दुकान से मैं कम्पयूटर के पार्ट्स खरीदता था वहां मेरी कम्यूटर जानकारी की अच्छी भली धाक थी ..जब भी मैं दुकान में जाता उसके मेकेनिक, अनसाल्व्ड प्रोब्लम मुझसे डिस्कस करते थे और मुझे भी बड़ा आनंद आता था उन्हें समझाने में !

               सबसे अधिक समस्या अमेरिका से मंगाए गए जूम १४.४ केबीपीएस मोडेम को इंस्टालेशन और उसे चलाने में में हुई जिसमें अंततः काम पोर्ट पर मुझे जीत हासिल हुई ! पहली बार मोडम हैण्ड शेक की आवाज सुनकर जो ख़ुशी हुई उसका वर्णन मैं यहाँ नहीं कर सकता ! उसके बाद रात रात भर लोकल बुलेटिन बोर्ड सर्विस का उपयोग कर एक दूसरे से जानकारी शेयर करना कम रोमांचक नहीं होता था !

             उन दिनों कम्पयूटर जानकारी जुटाना बहुत दुर्लभ मानी जाती थी, उस माहौल में मैं पी सी क्वेस्ट और डाटाक्वेस्ट नामक मैगजीन बहुत अच्छा कार्य कर रही थीं ! भारत में, मैं कम्यूटर के प्रति जागरूकता बढ़ाने में पी सी क्वेस्ट मैगज़ीन का बहुत बड़ा हाथ मानता हूँ और उन्हें धन्यवाद देता हूँ !

(चित्र गूगल से साभार )

16 comments:

  1. आपकी यह पोस्‍ट पढ़कर मुझे याद आया कि मैं भी कम्‍प्‍यूटर से सबसे पहले 1987 में रूबरू हुआ था। उन दिनों एकलव्‍य में स्रोत फीचर सर्विस की शुरूआत हुई थी। उसका पहला अंक मैंने ही कम्‍प्‍यूटर पर कंपोज किया था। पर उसके बाद कुछ ऐसा संयोग हुआ कि कम्‍प्‍यूटर से लगभग पंद्रह साल दूर ही रहा। और अब तो यह हाल है कि वह अपने से दूर ही नहीं होने देता।

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  2. achchha laga ye padh kar ki aapka computer se sambandh itna purana hai........:)

    great sir!!

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  3. हमने भी DOS एन्विरोंमेंट में ही सीखा था. अपने पहले कंप्यूटर ३८६ को पेंटियम १०० तक पहुँचाने में ही लाखों खर्च हो गए. एक उपलब्धि रही. अपने संस्थान के हम आईटी प्रमुख बनाये गए.

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  4. acha article tha... pad kar acha laga..
    share karne k liye shukriya..

    mere new blog par aapke comment ka intzaar rahega...
    http://asilentsilence.blogspot.com/

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  5. अच्छा लगा इस जानकारी को भी यहाँ बाँटना ..

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  6. पुराना दोस्ताना लगता है. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  7. कहते हैं पुरानी दिन याने गोल्डन days, परन्तु इस मामले में ऐसा नहीं है. भौतिकता के मामले में पुराने दिनों को पिछड़े दिन मानते हैं लोग.
    खैर, कुछ चित्र देखें शायद और स्मृतियाँ भी कौंध जाएँ
    http://bloggerbusti.blogspot.com/2008/05/than.html

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  8. अहा! 1988 से शुरू किए गए अपने कम्प्यूटर सफर की यादें ताजा हो गईं। 640KB के बदले 1MB की RAM वाले कम्प्यूटर मालिक को ईर्ष्या से देखा जाता था। एक किलो मिठाई के डब्बे जितनी बड़ी 20 MB की हार्डडिस्क से अधिक की क्षमता वाला कम्प्यूटर अज़ूबा माना जाता था। DOS के लम्बे लम्बे कमांड लिखते देख हमारे बॉस पूछते थे कि इतना सब याद कैसे रहता है!? वो स्पूल टेप में डाटा रखना, चौकोन चपाती जैसी 360KB वाली फ़्लापी डिस्क के मुकाबले कितना रोमांचक लगता था।

    आभार आपका, इन यादों में ले जाने का

    बी एस पाबला

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  9. @डॉ कविता वाचक्नवी,
    आपका यह लेख मैंने बहुत पहले पढ़ा था और शायद उसी का प्रभाव था जो आज यहाँ अपनी यादें लिख दी ! नया नया कम्पयूटर सीखना और वह भी उन दिनों के भारतीय परिवेश में, जब नेट दुर्लभ होता था, वास्तव में एक नया अनुभव था ! आज कम्पयूटर के गिरते हुए दामों के बीच उन दिनों के दुर्लभ दामों के बारे में सोंचता हूँ तो यह आश्चर्यजनक और लिखने लायक लगता है !

    अच्छा लगा कि आपने प्रतिक्रिया व्यक्त की ! धन्यवाद !

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  10. आज की पोस्ट में फिएट वाली घटना को पढ़ आपकी वहाँ कही बात स्मरण हो आई थी, इसीलिए स्मरण हेतु लिंक दिया.

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  11. मेरे लिए तो अभी भी यह पहेली है. बस काम भर का ही सीखा है.

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  12. खूब चर्चा छेड़ी है आपने भी. ये नहीं कहूंगी कि क्या खूब याद दिलाया आपने... मैं खुद कहां भूल पाई हूं उन varityper computers को... 1990 में जब मैने अखबार के दफ़्तर में कदम रखा, तब कंपोजिंग के लिये इन्हीं कम्प्यूटर्स की मदद ली जाती थी, और स्पूल टेप में डाटा सेव किया जाता था. डार्क रूम में फ़िल्म डेवलप होती थी... सोचती हूं, कितने पुराने हो गये हम भी :)

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  13. यहाँ DOS MB RAM KB इत्यादि देख कर लगा कि, विज्ञान-विषयक कोई बात हो रही है, या फिर शायद यह इँज़ीनियरिंग का कोई चक्कर है, काहे कि फोटो किसी मशीन ऊशीन की लगती है... अगर इतनी समझ होती तो डॉक्टरी जैसे बेगैरती क्षेत्र को चुनना ही क्यों पड़ता ? सक्सेना साहब हमेशा अच्छी अच्छी बातें बताते रहते हैं, सो आज भी कुछ अच्छा ही बताया होगा । साधुवाद !

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  14. एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !

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  15. सक्सेना जी आपका ये लेख पढ़ कर बरबस "याद आ गया मुझको गुजरा जमाना" :-) अगर में गलत नहीं हूँ तो १९९१ तक 20 MB की हार्ड डिस्क ही बाजार में उपलब्ध थी, क्योंकि मैं १९९१ में 1 MB RAM और 20 MB की हार्ड डिस्क का कंप्यूटर खरीद कर आया था. उस समय सोफ्ट व्हाईट मोनिटर आने शुरू हो गए थे लेकिन उससे पहले हरे रंग के मोनिटर होते थे. रही बात मदर बोर्ड की तो १९९४ तक जब AT-386-SX/DX सीरीज बाजार में आ गए थे तब तक मदर बोर्ड में बेस मेमोरी तो 640 KB ही रहती थी और उसके बाद उसे 2-3 MB बनाने के लिए उसमे एक्सटेंडेड मेमोरी लगा करती थी.
    आज मात्र बीस साल पुरानी ये बाते जैसे सदियों पुराना इतिहास सी लगती है.

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  16. आपका ये लेख पढ़ कर पुरानी यादें ताज़ा हो गई...इस मामले में मेरा अनुभव ज्यादा नहीं|सन २००० में जब सत्तर हज़ार खर्च कर के पहली बार जब कम्प्युटर,स्कैनर,प्रिंटर और वैब कैम खरीदा था तो मुझे माउस पकड़ना भी नहीं आता था...उसे खोलते कैसे हैं? और बन्द कैसे करते हैं?...ये जानना तो बहुत दूर की बात थी मेरे लिए लेकिन शायद जैसे खुद पर विश्वास था कि मैं इसे चला लूँगा...तब कई महीनों तक पूरी-पूरी रात जाग कर मैं कम्प्युटर के साथ कुछ ना कुछ पंगे लेता रहता था...हर वक्त कुछ नया सीखने की चाह की बदौलत आज अपनी जान-पहचान वालों में मुझे एक एक्सपर्ट के रूप में जाना जाता है लेकिन रोज नई चीज़ें आ रही हैं...इसलिए अभी भी बहुत कुछ सीखना बाकी है....

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- सतीश सक्सेना

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