Friday, July 4, 2008

एक पिता का ख़त पुत्री को ! (प्रथम भाग )

आधुनिकतावाद की ओर भागते भारतीय समाज में, पाश्चात्य सभ्यता की जो बुराइयाँ आईं, हम भारतीयों के लिए , बेहद तकलीफदेह रहीं ! और आग में घी डालने का कार्य किया, पैसा कमाने की होड़ में लगे इन टेलीविजन चैनलों ने, चटखारे लेकर, सास के बारे में एक्सपर्ट कमेंट्स देती तेजतर्रार बहू, लगभग हर चैनल पर नज़र आने लगी और फलस्वरूप तथाकथित, शिक्षित विवाहित भारतीय महिलाएं यह भूल गईं कि इस टीवी चैनल का आनंद, उनकी ही तरह उसकी भाभी भी ले रही है , और इस तरह भारतीय महिलाओं के लिए नए संस्कार हर घर में पनपने लगे ! नए "गुणों" को सीखतीं, हमारी विवाहित पुत्रियाँ यह भूलती जा रही हैं कि वह एक दिन इसी घर में सास एवं मां का दर्जा भी पाएँगी तथा वही संस्कार उनके आगे होंगे !

भले ही कोई पुरूष या महिला नकार दे, पर क्या यह सच नहीं है कि किसी घर ( मायका या ससुराल ) में, माँ को वो सम्मान नही मिलता जिसकी वो पूरी हकदार है ! और जननी का सम्मान गिराने का अपराध सिर्फ़ भावी जननी ( बेटी ) ने किया और असहाय पिता (सहयोगी पति ) कुछ न कर पाया !

हर स्थान पर पुत्री यह भूल गई कि सास भी एक पुत्री है और मेरी भी कहीं मां है, जिस बहू ने सास का मजाक उड़ाया उसे उस समय यह याद ही नही आया कि मेरी मां के साथ भी यह हो सकता है, और जब मां के साथ वही हुआ तो वो लड़की ( एक बहू) असहाय सी, अपनी भाभी का या तो मुंह देखती रही या उसको गाली दे दे कर अपना मन शांत किया !

नारी जागरण का अर्थ यह बिल्कुल नही कि हम अपने बड़ों की इज्जत करना भूल जायें, या बड़ों की निंदा करने और सुनाने में गर्व महसूस करें ! अपनी सास का सम्मान, अपनी मां की तरह करके, बच्चों में संस्कार की नींव डालने का कार्य शुरू करें ! सास और ससुर के निर्देश, अपने माता पिता के आदेश की तरह स्वीकार करने लगें तो हर घर एक चहकता, महकता स्वर्ग बन सकता है !

मैं, एक कविह्रदय, यह नहीं चाहता कि मेरी पुत्री यह दर्द सहे व महसूस करे ! और यही वेदना यह ख़त लिखने के लिए प्रेरणा बनी !

मूल मंत्र सिखलाता हूँ मैं ,
याद लाडली रखना इसको
यदि तुमको कुछ पाना हो

तो देना पहले सीखो पुत्री !
कर आदर सम्मान बड़ों का,
गरिमामयी तुम्हीं होओगी  !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं  रहोगी !

उतना ही कोमल मन सबका  
जितना बेटी, तेरा मन है !
उतनी ही आशाएँ  तुमसे ,
जितनी तुमने लगा रखी हैं !
परहित कारक बनो सुपुत्री , 
भागीरथी तुम्हीं  होओगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं रहोगी !

उनकी आशाओं को पूरा,
करने का है धर्म तुम्हारा
जितनी आशाओं को पूरा
करवाने का स्वप्न तुम्हारा
मंगलदायिनि  बनो लाडली,
स्वप्नपरी सी तुम्हीं लगोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्हीं  रहोगी !

पत्निमिलन की आशा लेकर
उतना ही, उत्साह ह्रदय में  !
जितनी तुमको पिया मिलन
की अभिलाषा है गहरे मन में
प्यार किसी का कम न मानो, 
साध तुम्हारी पूरी होगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्हीं  रहोगी !

पति है जीवन भर का साथी

दुःख के साथ ख़ुशी का साथी ! 
तेरे होते, कभी अकेलापन 
महसूस  न  , करने  पाये ! 
सदा सहायक रहो पति की, 
हर अभिलाषा पूरी होगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्हीं  रहोगी !
......क्रमश
http://satish-saxena.blogspot.in/2008/07/blog-post_12.html

19 comments:

  1. सतीश सक्सेना जी उस पुत्री के पिता को मेरा सादर प्रणाम आप का लेख ओर आप की कविता दोनो ही संस्कारो से भरे हे, अगर भारत के हर घर मे बेटियो को ऎसे ही संस्कार दिये जाये तो कितना अच्छा होगा, लेकिन आप के कहे अनुसार ही मेने देखा हे हम पाश्चत्य सभ्यता की सभी बुराईयो को अपना कर अपने को सभ्य मानते हे, लेकिन इस समाज मे कुछ अच्छाईया भी हे जिसे हम नही देखते,एक सुन्दर लेख ओर कविता के लिये आप का आभार

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  2. जब भी कोई ख़त मेने पढ़ा हैं चाहे माँ लिखे या पिता , पुत्री को ही सीख और संस्कार दिये जाते हैं . क्या इसकी कोई ख़ास वजह हैं की कभी भी कोई ख़त किसी माँ या पिता नए अपनी पुत्र को नहीं लिखा हैं , ना कभी किसी पुत्र को संस्कार देने की बात की गयी हैं . क्यों ?? क्या इस लिये की लड़किया संस्कार विहीन पैदा होती हैं , या इसलिये की लड़के हमेशा सम्स्काओ के साथ दुनिया मे आते हैं ? या इस लिये की घर का मतलब हैं नारी की सारी जिम्मेदारी , फिर चाहे वोह माँ , हो या बेटी या सास या बहु ?? कभी कोई ख़त किसी पुत्र को भी लिखा जाता , चाहे माँ लिखती या पिता , या ससुर तो शायद भारतीये संस्कारो की गरिमा को कुछ आगे ले जाया जाता .

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  3. रचना जी !
    आपकी ही लाइने प्रस्तुत कर रहा हूँ ! ".....सिर्फ नजरिया देखने का अलग अलग होता है ।"
    अपनी पुत्री को बेइंतहा प्यार करने वाले पिता की चिंता, आप नहीं समझ पाएँगी क्योंकि आपका नजरिया व् सोचने का तरीका आपका अपना है, हो सकता है आपके सन्दर्भ मैं यह व्याख्या ठीक ही हो!
    जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है पिता के नाते मेरा यह पहला कर्तव्य है कि मेरे पुत्र और पुत्री उचित आचरण करें, परन्तु पुत्र के मुकाबले मेरी पुत्री, दो घरों कि जिम्मेवारी सँभालने का गरुतर कार्य करेगी इसलिए मेरा चिंतित होना स्वाभाविक है,पुत्री के इस त्याग का सामने पुत्र कहीं नही ठहर पाता !

    सारा जीवन किया समर्पित
    परमार्थ में नारी ने ही ,
    विधि ने ऐसा धीरज लिखा
    केवल भाग्य तुम्हारे में ही में
    उठो चुनौती लेकर बेटी , शक्तिमयी सी तुम्ही दिखोगी !
    पहल करोगी अगर नंदिनी घर कि रानी तुम्ही लगोगी !.....
    यह मेरी एक लम्बी कविता है जो क्रमश आप पढ़ेंगी, आशा है स्नेह बनाये रखेंगी !

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  4. सतीश सक्सेना जी आज पहली बार आप के ब्लोग पर आयी हूँ और आप की बात से 100%सहमत हूँ। भगवान करे हर नर और नारी को ये सदबुद्धी मिले।

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  5. सतीश जी
    पहली बार आपके ब्लाग पर आई और कविता पढ़कर अभिभूत हो गई। एक पिता ने पुत्री को इतना सुन्दर पत्र लिखा है। मूल मंत्र सिखलाता हूँ मैं
    याद लाडली रखना इसको
    यदि तुमको कुछ पाना हो
    देना पहले सीखो पुत्री
    कर आदर सत्कार बड़ों का गरिमामयी तुम्ही होओगी,
    पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्ही रहोगी !
    वाह बहुत सुन्दर।

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  6. agar itna hone par bhi bahuon ko jinda jala diya jay tb? kya jitni ladkiya agni ke hawale ki jati hain sabhi sanskarwihin hoti hai?

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  7. "जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है पिता के नाते मेरा यह पहला कर्तव्य है कि मेरे पुत्र और पुत्री उचित आचरण करें, परन्तु पुत्र के मुकाबले मेरी पुत्री, दो घरों कि जिम्मेवारी सँभालने का गरुतर कार्य करेगी "
    उचित आचरण दोनों के लिये बराबर हो , आप का पुत्र एक दिन किसी को आप की पुत्रवधू बना कर घर लाएगा इसलिये संस्कार उसको भी मिलने चाहीये ताकि ५०% घर की जिमेदारी वोह ले . आने वाले समय मे जिस प्रकार से लड़किया आगे बढ़ रही हैं वोह घर की सारी जिमेदारी नहीं केवल ५० % निभाना चाहेगी . अगर आप का पुत्र बाकि ५० % नहीं निभा पाया तो घर टूट भी सकता हैं . from
    traditinal role woman has taken up multidimensional role and if future sons are not prepared for it the society is in for a shock !!!

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  8. satish


    Bahut hi sunder kavitha.

    No words to describe it. I will need to look in to dictionary
    for many many adjectives.......

    Aap ki beti bahut bhagyashali hai .... jiseke pita "aap " hain..
    Jisko zindagi ki har sach ek kavitha ke roop mein mila...........

    It is really a anmol tohfa, anmol bhent for her......


    But now it has become public who reads it, in your blog and educate their daughters bahus.
    I am one of them.who will try to practice.First i will become to set an example to my daughter.


    Your talent , Intelligence, imagination, and above all your personality is a gods gift. I do not know to express like others.But its true.

    But these are my true feelings after reading your latest blog " Pita ka patr putri ko "

    Agar aapko kahin pe bhi koi galati mere likhne main payi gayi tho kindly forgive and forget.




    Regards

    Sethu Nagarajan

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  9. आपकी कविता पढ़ी ...हर पिता पुत्री को सुखी देखना चाहता है ..पर ताल मेल तो दोनों तरफ़ से जरुरी है ...एक अच्छा संदेश है इस पत्र का संदेश दोनों पुत्री और पुत्र के लिए लिया जाए ..घर में सुख शान्ति होगी तो ही घर घर कहयेगा ,,

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  10. यह पत्र (आशीर्वाद) २५ नवम्बर १९८९ को लिखा गया उस समय गरिमा ४ वर्ष की थी, इस लेखन का उद्देश्य, अपनी प्राणों से भी प्यारी बेटी को, हर स्थान पर सफल बनाने का था ! हर लाइन का अर्थ लोग अपनी अपनी भावनाओं के हिसाब से लगायेंगे , यह मैं जानता हूँ , परन्तु मेरा अर्थ निम्नलिखित ही है !
    - यदि तुमको सम्मान प्राप्त करने की इच्छा हो तो पहले देना सीखो !
    - विवाह के समय दोनों की आशाएं व अरमान एक समान होते हैं !
    - जितनी आशायें तुम पुरी कराना चाहो उतनी ही तुम भी पूरी करने का प्रयत्न करो !
    - कभी अपने जीवन साथी को अकेला महसूस न करने दो !
    मैंने जीवन मैं कभी अन्याय सहन नही किया और न कभी अपने बच्चों को यह शिक्षा देने की सोच ही सकता हूँ,
    विवाह संस्था को सफल बनाने हेतु , पहल करनी ही होगी, और पहल करने की शिक्षा मैं, अपनी पुत्री से ही क्यों न शुरू करुँ ! मेरा यह विश्वास है कि विनम्रता से, लोगों का आसानी से जीता जा सकता है !

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  11. प्रोत्साहन की आवश्यकता हर उम्र में, हर किसी को होती है ! मैं आभारी हूँ, सर्वश्री / सुश्री राज, अनीता, रचना, शोभा, रंजू, एवं लवली का जिनके कारण मेरे इस कार्य में चार चाँद लगे ! सादर

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  12. aapki kavita padhi parta padha
    aapne jo sikhsha di hai wo ek chintit maa aur chintit baap ke man ki sahi prastuti hai
    magar kya sach main kurbaani ka sila milta hai ?
    kya sach main dene ke baad maan milta hai ?
    kya sach main aisa ho pata hai

    jhukkar mitkar bhi sirf ruswayi mile to kya badal jana uchit nahi hai


    aapki is kavita main mujhe apne mummy papa ki jhalak mili
    aapko padh kar achha laga

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  13. पति है जीवन भर का साथी
    दुःख के साथ खुशी का साथी
    तेरे होते, कभी अकेलापन,
    महसूस न करने पाए,
    सदा सहायक रहो पति की हर अभिलाषा पूरी होगी
    पहल करोगी अगर नंदिनी घर की रानी तुम्ही रहोगी !
    एक सुन्दर व भावपूर्ण रचना के लिये बधाई, हां, पुत्री को सीख ही नहीं,
    अपनी सम्पत्ति में से पुत्र के समान,
    हिस्सा भी देना भाई,
    कन्या का दान मत करना,
    वस्तु की तरह उसे किसी को दान मत करना.
    बताना उसको तुम पराये घर की
    सम्पत्ति नहीं हो,
    इस घर के कण-कण में भाई की तरह,
    बराबर की हकदार हो, पुरे प्यार की भी हकदार हो.

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  14. bahut sundar patra likha hai putri ko,e bhi ho sakta hai ke aapki putri ghar jamai laye aur beta paraye ghar jaye,sikh dono ko nile to achha.

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  15. कविता अति उत्तम है ! वेसे आपके जो विचार/भाव अपनी पुत्री के लिए हैं वे सद्गुण ही हैं जिसे कोई भी धारण करे सुख और शान्ति प्राप्त करेगा चाहे वर्तमान में या फिर भविष्य में ! आज के भौतिकतावादी और स्वार्थी समाज में ब्लॉग पर आपका यह पत्र जन मानस के मन में स्फूर्ति एवं विश्वास को जगाने वाला है ! आपकी सीख सभी के लिए उपयोगी है ! समाज के हित में किए गए इस कार्य के लिए धन्यवाद् !
    श्रीमती ललिता शर्मा !

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  16. हर बात में हमने एक कसम खा रखी है कि यदि कहिं थोड़ा सा दोष निकाले या किसी दूसरों पर दोषारोपन किये वैगेर हम अपनी बात ही पूरी नहीं कर पाते, गरीब आदमी, अपनी गरीबी पर दोष मढ़कर विरासत में अपने बच्चों को गरीबी ही सौंप जाता है, एक कदम आगे बढ़ने के बजाय परिवार के हर सदस्यों को एक कदम ओर पीछे धकेल जाता है, हिन्दी की बात करने वाले अंग्रेजी पर दोषारोपन कर साल भर हिन्दी की सरकारी रोटी खाते रहते हैं, और युवापीढ़ी की बात करते ही हम पाश्चत्य सभ्यता की बुराईयों की बात करने लगते हैं। हम अपने बच्चों को कितना संस्कार दे पाते हैं यह हमें अपने घर के अंदर झांककर देखने की जरूरत है। आज की युवा पीढ़ी हमलोगों से कहिं ज्यादा शिक्षित और संस्कारी है। उसे ससुराल में किससे किस तरह का व्यवहार करना चाहिये ये बात बताने की जरुरत नहीं होती, जरूरत है उन सास-ससुर को समझाने की, कि वे जब बहु लेकर आयें तो उसको भी बैटे-बैटी जैसा मान देना सीखें, और यदि मान न दे सके तो अपमानित तो न करे। मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता हूँ, कई बार इस तरह के विवाद मुझे देखने को मिले हैं, कुछ मामले को अपवाद के रूप में छोड़ दे तो अधिकतर मामले में 'सास' को दोषी पाता हूँ। -शम्भु चौधरी

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  17. आपने वाकई बहुत अच्छा लिखा है

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  18. If the Blog is written in English it will receive much response and would be understandable by many.

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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