Thursday, June 12, 2008

क्यों लोग मनाते दीवाली ? (दूसरा भाग ) - सतीश सक्सेना

जिन्हें सीने से लगाना चाहिए , उन्हें आज भी इस देश में अछूत कहा जाता है ! इस दुर्भाग्य से निकलने हेतु मेरा यह प्रयास है और आशा है कि काश एक दिन यह कलंक दूर हो सके ! और हम अपने को सभ्य कहलाने लायक बन सकें !


बीसवीं सदी में पले बड़े
कंगूरों  के ठेकेदारो  !
मन्दिर के द्वारे खड़े हुए ,

मासूमों के चेहरे देखो ! 
बचपन से इनको गाली दे , 

क्या बीज डालते हो भारी !
इन फूलों को अपमानित कर,क्यों लोग मनाते दीवाली !

तीसरा भाग जनसंख्या का
शूद्रों के हिस्से में आया !

हँसते समाज के साथ जियें 
ऐसा अधिकार नहीं पाया ! 
मन्दिर प्रवेश वर्जित करते, 

कैसे ब्राह्मण ? अपराधी हैं !
परमेश्वर के कर द्वार बंद , क्यों लोग मनाते दीवाली  !

आरक्षण का विरोध करने
वालो कुछ सहकर तो देखो

सदियों से तड़पाया जैसा   
अहसास दर्द सह कर देखो 
कितने प्यासों ने जाने दी थीं,
तड़प तड़प कर बिन पानी ,
पीने का पानी वर्जित कर , क्यों लोग मनाते दीवाली !

आरक्षण अगर मिटाना है
तो शुरू करो ब्राह्मण कुल से

अनपढ़ वामन रक्षित होकर  
सम्मानित होता समाज से ! 
अनपढ़ वामन पंडित होता,
शिक्षित अछूत को हेय मान
इस महाज्ञान को धर्म मान, क्यों लोग 
मनाते दीवाली ?

वे भी हम जैसे इंसान थे   
कैसे अपमान झेलते थे !
छाया शूद्रों की पड़ने पर
कोढे लगवाए जाते थे !
यों धर्म नष्ट हो जाने पर , 

करते थे  प्रायश्चित्त, महा
गंगा में धोकर महापाप ! क्यों लोग 
मनाते दीवाली ?


3 comments:

  1. कटु सत्य बड़ी खरी-खरी बातों मे अद्भुत साहस के साथ बयान किया आपने.
    बहुत-बहुत बधाई.

    ReplyDelete
  2. बढ़िया है. लिखते रहिये.

    ReplyDelete
  3. मानवता के अभिशाप को यूं खरे खरे और सरल ढंग से आपने कविता में पिरो दिया । कोरे भाषणों में भी लोग यूं कहने का साहस नहीं जुटा पाते हैं।
    सबसे अच्छा ये लगा कि अंतिम छंद में आपने पूरी कविता बच्चों को समर्पित कर दी है। यही आज की ज़रूरत है । नौनिहाल ही अगर इसे समझ सकें तो ही इस बदनुमा दाग को मिटाया जा सकता है।
    लिखते रहें। शुक्रिया.....

    ReplyDelete

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- सतीश सक्सेना

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