Monday, March 4, 2024

बिना ज़रूरत होते ऑपरेशन -सतीश सक्सेना

क्या आपको पता है कि हमारे देश में 66.8% यूटेरस रिमूवल सर्जरी प्राइवेट हॉस्पिटल में की जाती है , और आप यकीन नहीं कर पाएंगे कि उसमें ९५ प्रतिशत बिना जरूरत की जाती है , थॉमसन रॉयटर फाउंडेशन की एक रिसर्च के हवाले से यह रिपोर्ट  द प्रिंट ने पब्लिश की है ! अधिकतर ऑपरेशन रोगी और उसके परिवार को कैंसर आदि का भय दिला कर की जाती है , जबकि उसका इलाज
बिना ऑपरेशन के आसानी से संभव है , एक रिपोर्ट के अनुसार हृदय के लगभग पचास प्रतिशत ऑपरेशन बिना जरूरत किये जा रहे हैं ! हर महीने ऑपरेशन के टारगेट फिक्स किये जाते हैं , हर माह के अंत में, डॉ को निश्चित मात्रा में अपने टारगेट पाने होंगे अन्यथा उसका प्रमोशन और सैलरी में रूकावट निश्चित है !   
  
बिज़नेस स्टैण्डर्ड में छपी आज की खबर (४ मार्च २४ ) के अनुसार पॉश ग्रेटर कैलाश दिल्ली के एक हॉस्पिटल में एक गॉल ब्लेडर का ऑपरेशन होस्पिटल में काम करने वाले एक टेक्नीशियन ने किया , जिसे सर्जन बताया गया , नतीजा बीमार की मृत्यु हो गयी और यह काम सिर्फ २००००/- जैसी मामूली रकम हासिल करने के लिए किया गया जिसका अंजाम एक गरीब आदमी की मौत से हुआ, जबकि यह इंसान इस विश्वास के साथ इस अस्पताल में आया था कि वह दर्द से निजात पा जाएगा , यह शुक्र था कि उसकी बिलखती पत्नी को बाद में पता चला कि जिसे सर्जन बताया गया था वह डॉ वहां मामूली टेक्नीशियन है , पुलिस ने इन सबको गिरफ्तार कर जेल भेजा है !

डब्लू एच ओ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग ४५ परसेंट फ़र्ज़ी डॉक्टर्स हैं , इनमें से अधिकतर कस्बाई और ग्रामीण इलाकों में कार्यरत है , तगड़ा मुनाफ़ा और अनपढ़ों का इलाज करते समय जीना मरना तो लगा ही रहता है , सो परवाह न हॉस्पिटल करते हैं और न रोगी के परिवार वाले , बहुत काम केसेस में ही यह धंधा उजागर होता है और अब यह धंधा अधिक धन कमाने और मेडिकल पढ़ाई में हुए खर्चे वसूल करने के लिए शहरों और यहाँ तक कि राजधानी में भी आम हो गया है !

अगर अब भी आँखें न खुली हों तब मैं आपको डॉ अरुण गाडरे एवं डॉ अभय शुक्ल की लिखी किताब Dissenting Diagnosis अवश्य पढ़िए आप बुढ़ापा आते ही हर साल टेस्ट कराने बंद कर देंगे ! मैं इन दोनों डॉक्टरों के ज़मीर को सलाम करता हूँ जिन्होंने अपने व्यवसाय में होती गलत प्रैक्टिस का भंडाफोड़ करने की हिम्मत की !

प्रणाम आप सबको !

https://theprint.in/health/95-hysterectomies-in-india-unnecessary-66-8-in-pvt-sector-report-by-obgyn-group-think-tank/1865540/

https://www.thehindu.com/news/cities/Delhi/fake-doctors-racket-owner-performed-at-least-3000-surgeries-a-year-say-police/article67545733.ece

https://satish-saxena.blogspot.com/2016/06/blog-post_85.html 

Wednesday, February 21, 2024

अगर बहता है बहने दो, तुम्हारी आँख का पानी -सतीश सक्सेना

पिछले तीन माह घर में रहने के दौरान मेरी आँखों का कैटरेक्ट अधिक तेज़ी से बढ़ा , आज दौड़ते हुए बायीं आँख से लगातार गाढ़ा पानी निकल रहा था , अपने हेडबैंड से उसे साफ़ करते हुए , आँखों में ठंडी हवा की ठंडक से ,अधिक बेहतर लग रहा था ! पिछले तीन माह में प्रदूषण के कारण दौड़ना नहीं हुआ नतीजा फेफड़े तो सही रहे मगर आँखों पर दुष्प्रभाव पड़ा , दौड़ते समय प्रभावित आँख से गाढ़ा पानी निकलना ही कैटरेक्ट को दूर रखता था , सोते समय रात को यह गाढ़ा पानी आँखों के अंदर ही रह जाता था और कैटरेक्ट अधिक जमा होता था , सो आँखों का नुक़सान तेज़ी से हुआ !

अधिकतर आँखों से पानी निकलते ही हम डॉ के पास भागते हैं जबकि यह आँखों को स्वच्छ रखने की, शरीर द्वारा अपनायी सामान्य प्रक्रिया है , इससे आँखें स्वच्छ और पारदर्शी होती हैं ऐसा मेरा विश्वास है , पिछले तीन महीने रज़ाई में लेटे लेटे मुझे यह याद ही नहीं आया और आँखों का बहुत नुक़सान हुआ , अब कोशिश रहेगी कि आँखों को स्वच्छ रखने की यह नियमित प्रक्रिया जारी रहे और शायद यह धुंधली परत धीरे धीरे कम हो जाये !  हमारे पूर्वज गुफ़ामानव अपनी आँख के कैटरेक्ट को ऐसे ही ठीक करते रहे हैं , सो पानी निकलता है तो निकलने दें एवं जल से लगातार धोने की आदत , निस्संदेह कैटरेक्ट को दूर रखने में सहायक होगी !

७० वर्ष होने तक मैंने अभी ख़ुद को मेडिकल व्यापारियों के जाल से बचाये रखा है , अगर शरीर आँखों की इस समस्या को ख़ुद ठीक न कर सका तब आने वाले समय में ऑपरेशन कराना ही होगा जो मेरा आख़िरी विकल्प होगा ! आँखों के सामान्य व्यायाम आदि पर अधिक ध्यान देना होगा ताकि आँखें बिना चश्मा आदि के उपयोग बिना अधिक समय तक साथ दें !

जमा होने नहीं पाये , तुम्हारी आँख का पानी  !
यही ठंडक बहुत देगा, तुम्हारी आँख का पानी !

हमेशा रोकने में ही , लगायी  शक्ति जीवन में  !
न जाने कितनी यादों को समेटे आँख का पानी !

शुभकामनाएँ आप सबको !

Thursday, February 1, 2024

साँसों को न भूलिए -सतीश सक्सेना

रात को करवट बदलते समय गहरी सांस खीचने और निकालने की आदत डाल रहा हूँ , उससे सुबह उठने पर, हाथ और पैरों में सुस्ती की जगह फुर्ती महसूस होने लगी , क्योंकि फेफड़ों ने खून में सोते समय अतिरिक्त

ऑक्सीजन की सप्लाई दे दी , नतीजा खून प्रवाह में फुर्ती और अतिरिक्त शक्ति मिली !

यही योग है प्राणायाम है जिस पर गौर करने का समय नहीं है हमारे पास , यह मुफ़्त की दवाई है , जिसे परमात्मा ने हमारे शरीर के साथ ही हमें प्रदान की है , मगर हम इस शक्तिशाली औषधि पर ध्यान ही नहीं देते ! 

पचास साठ के आसपास के जो महिला या पुरुष , 100 मीटर तेज वाक के समय हांफ जाते हैं वे जान लें कि वे खतरे में हैं, उनकी ह्रदय आर्टरीज़ में रुकावट है और यह आसानी से reversible है सिर्फ जॉगिंग सीखना होगा , फलस्वरूप शरीर के अंगों में उत्पन्न कंपन एवं खुले फेफड़ों से रक्त में मिलती ऑक्सीजन, आसानी से बंद धमनियाँ खोलने में समर्थ हैं !

अन्यथा मेडिकल व्यापारी अपनी फाइव स्टार दुकाने लगाए ओपरेशन टेबल पर उनका इंतज़ार कर रहे हैं उसके बाद अगर बच गए तो भी बचा जीवन धीरे धीरे हलकी आवाज में बात करते, मृत्युभय में ही बीतेगा !

मंगलकामनाएं, सद्बुद्धि के लिए !

Tuesday, January 30, 2024

ख़ुशनसीब बाबा -सतीश सक्सेना

जर्मनी में जन्मी चार वर्षीय मीरा , अपने एक हाथ पर मेहंदी से अपना नाम लिखवाते हुए अपनी बुआ से कह रही थी कि  बुई , मेरे दूसरे हाथ पर बाबा का नाम लिख देना सतीश सक्सेना !

शायद यह दुनियाँ की पहली लड़की होगी जो अपने बाबा का नाम अपने हाथ पर लिखवाना चाहती है , बाबा के प्रति मासूम प्यार का इससे अच्छा इज़हार और क्या होगा ? 

इसके जन्म पर मैंने लिखा था 

नन्हें क़दमों की आहट से, दर्द न जाने कहाँ गए ,

नानी ,दादी ,बुआ बजायें ढोल , मंगलाचार के !

Friday, November 17, 2023

घुटना रिप्लेस कराने से पहले इसे अवश्य पढ़ लें -सतीश सक्सेना

भारत में घुटना बदलने का पहला ऑपरेशन 1987 में हुआ था और आज हमारे देश में ढाई लाख से अधिक ऑपरेशन हर वर्ष होते हैं , इंसान के भयभीत मन पर, मेडिकल व्यापारियों का यह कसता शिकंजा भयावह है , मेडिकल साइंस में मानव शरीर पर होते यह प्रयोग आने वाले समय में इस विज्ञान को निस्संदेह और बेहतर बनायेगा मगर दुख यह है कि मेडिकल व्यवसायी ऑपरेशन से पहले यह नहीं बताते कि घुटना बदलने का यह ऑपरेशन एक प्रयोग हैं जिसे मानव शरीर पर किया जा रहा है , यह फ़ायदा कितना पहँचायेगा उन्हें ख़ुद नहीं मालूम , और जितना मालूम है उसे वे खुलकर बताते नहीं अन्यथा मरीज़ ही भाग जाएगा ! कोई यह नहीं बताता कि ऑपरेशन न करने की स्थिति में, एलोपैथी में भी बहुत सारे ऑप्शन हैं जिनसे घुटने की समस्या ठीक हो सकती है !

अधिकतर घुटने का ऑपरेशन , लंबे समय से चले आ रहे दर्द से छुटकारा पाने के लिए किया जाता है , मगर अक्सर घुटना बदलने के बाद भी यह दर्द बरकरार रहता है बल्कि कई बार पहले से भी अधिक होता है , ऑपरेशन के दो चार साल बाद मरीज़ पहले से अधिक दर्द की शिकायत करते पाये जाते है ! अगर घुटने का दर्द स्पाइनल नर्व या कमरदर्द से जुड़ा है तो यह दर्द घुटना बदलने से भी नहीं जाता है , मगर अक्सर मूल कारण जाने बिना घुटने को रिप्लेस करते हैं और इसे मानवीय त्रुटि कहा जाता है एवं मेडिकल डॉक्टर इस मानवीय भूल में किसी भी सजा के हक़दार नहीं होते !

घुटने बदलने के विज्ञापन या वीडियो देखेंगे तो पता चलता है कि घुटना बदलने के बाद समुद्री बीच पर लोग खेल या दौड़ रहे हैं मगर यह वास्तविकता से कोसों दूर है , हक़ीक़त में 20 में 1 आदमी ही इतनी नार्मल दौड़ भाग कर पाता है जो लोग ऑपरेशन के बाद जोश में घुटनों पर अधिक ज़ोर देते हैं उनके सीमेंटेड जोड़ पाँच साल में ही हिलने लगते हैं और दुबारा घुटना निकाल कर ऑपरेशन करना पड़ता है ! इसके अतिरिक्त नये जॉइंट के घिसने पर, सेरेमिक , प्लास्टिक और मेटल के माइक्रोस्कोपिक टुकड़े खून में मिलकर अलग तरह की ख़तरनाक समस्याएँ पैदा करते हैं !

जब आप घुटने के जॉइंट को शरीर से अलग कराते हैं तब उस उससे उत्पन्न आघात के कारण  , बोन मैरो स्पेस और रक्त वाहिनियों में असहनीय तनाव से ब्लड क्लॉट्स उत्पन्न होते हैं , एक रिसर्च के अनुसार 60 वर्ष से अधिक व्यक्तियों के लिए , ऑपरेशन के अगले दो सप्ताह में ह्रदय आघात का ख़तरा, ३१ गुना अधिक होता है और यह सुनकर ही घबराहट होती है कि उस दर्द से मुक्ति पाने का यह तरीक़ा निस्संदेह अधिक ख़तरनाक है इससे बेहतर होता कि उसी दर्द में जिया जाये !

कोशिश करनी चाहिये कि हम अन्य तरीक़ों से घुटने का दर्द ठीक करने का प्रयत्न करें न कि मेडिकल व्यवसायों के विज्ञापनों और डॉक्टरों की बातों से डर कर , ऑपरेशन थियेटर में भर्ती होकर अपने शरीर की दुर्दशा न करवायें और न इस ग़लत तरीक़े पर अपना धन खर्च करें ! विश्व विशाल है और वहाँ अलग अलग तरह के इलाज विकसित हुए थे और वे बेहद सफल भी रहे हैं , मगर एलोपैथिक सिस्टम के दवा व्यापारियों ने इसे बेहद धनवान व्यवसाय में परिवर्तित कर दिया है और अन्य वैकल्पिक चिकित्साओं को नष्टप्राय कर दिया , मगर आज भी अफ़्रीका , चायना , कोरिया , मिडल ईस्ट और भारत में इनकी तलाश करें तो कोई भी असाध्य बीमारी का इलाज मिल जाएगा केवल सब्र और मेहनत चाहिये !

शुभकामनाएँ आप सबको ! 

Ref : https://newregenortho.com/6-reasons-to-avoid-knee-replacement-surgery/

https://centenoschultz.com/disadvantages-of-knee-replacement-surgery/

Tuesday, October 24, 2023

दर्द और बीमारियों से मुक्त जीवन -सतीश सक्सेना

गरबा नामक मशहूर गुजराती नाच, माँ दुर्गा के सम्मान में , खेला जाता है , इसमें बड़ी संख्या में जोड़े हाथ में डांडिया लेकर रंगबिरंगे कपड़े पहनकर मैदान में उतरते हैं , यह उत्सव मनोहारी होता है जिसका जोड़े पूरे साल इंतज़ार करते हैं ! मगर इस वर्ष का डांडिया कई परिवारों के लिए मनहूस खबर बन गया , आजतक की खबर के अनुसार अकेले गुजरात में ही नवरात्रि के मौक़े पर सिर्फ़ २४ घंटे में गरबा खेलते समय १० लोगों की मौत की खबर आ चुकी है , इस नवरात्रि के पहले ६ दिनों में इमरजेंसी एंबुलेंस को 521 कॉल्स सिर्फ़ हार्ट से जुड़े मामलों और साँस फूलने की समस्या के लिए आये ! 

यह चौंकाने वाला तथ्य है , ऐसी खबरें विदेशों से कभी नहीं सुनी गयीं कि मस्ती भरे डांस के दौरान मौत हुई हो , यह हमारे देश में ही संभव है जहां लोग बिना शरीर को जाने एक दिन में शरीर तोड़ मेहनत करने का प्रयत्न करते हैं , और अपनी जान गँवा देते हैं !

मैं ऐसे तमाम मित्रों को जानता हूँ जो सालों साल किसी काम को हाथ नहीं लगाते , दिमाग़ का उपयोग हर विषय पर ज्ञान बाँटने को करते हैं , वे किसी दिन शादी विवाह या अन्य उत्सव में भीड़ के सम्मुख लंबे समय तक झूम झूम कर नाचते या जिम जॉइन करने पर हाथों को मसल्स बनाने के लिए स्ट्रॉंग एक्सरसाइज करते पाये जाते हैं और ख़ुद के शरीर को फिट बनाने का गुमान लिए फिरते हैं ! उनके ब्लॉक माइंड को यह समझ ही नहीं कि उनके सुस्त और ढीली मांसपेशियों को अचानक मिली यह हैवी स्ट्रेचिंग या हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज कितना नुक़सान पहुँचायेगी ! गरबा में अधिकतर असामयिक मौत उन्हीं की हुई होगी जिन्होंने अपने शरीर की ७० प्रतिशत मांसपेशियों का कभी उपयोग ही नहीं किया तथा जिनके विभिन्न जोड़ों और गतिशील पुर्ज़ों में साल्ट जमा हो चुके हैं ! ऐसे लोग जिम या एक्सरसाइज का मौक़ा मिलते ही ख़ुद को बॉण्ड समझकर कूद पड़ते हैं और ख़ुद को एक भयानक ख़तरे में डाल देते हैं और हाल में यही गुमान लिए कितने वीआईपी अपनी जान खो चुके हैं !

याद रखिए जब भी आप फिजिकल स्ट्रेस या हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज ( रनिंग , गरबा जैसे डांस , क्रिकेट , हॉकी, बैडमिंटन  आदि ) खेलते हैं तब आपका पूरा शरीर और उसके नाज़ुक अवयवों की दशा में परिवर्तन होना शुरू होता है और उस वक्त वे विभिन्न तरीक़ों से बर्ताव करते हैं , आपकी साँसें भारी , तेज पल्स महसूस करते हैं, उस समय ह्रदय और फेफड़ों को मसल्स और मस्तिष्क को ऑक्सीजन मिला खून पहुँचाने के लिए बहुत तेज़ी से काम करना होता है , उस समय आप अपने ह्रदय का धौंकना महसूस कर सकते हैं  ! इस वक्त आप ज़मीन पर प्रहार करते हर कदम पर, अपने शरीर के वजन से तीन गुना इंपैक्ट डालते हैं और बॉडी में एंड्रोफ़िन्स नामक हार्मोन्स का उत्सर्जन करते हैं जो इस स्ट्रेस फ़ुल कंडीशन में उत्पन्न दर्द का एहसास शरीर को नहीं होने देता बल्कि एक आनंद अनुभूति देता है जिसमें वह इंसान, और तन्मयता से ख़ुद को उसी कंडीशन में बनाये रखता है, फलस्वरूप अक्सर यह आनंद दायक पल उसे आकस्मिक मौत तक ले जाते हैं !  

जब हम बैठे होते हैं तब हार्ट लगभग ५ क्वार्ट्स पर मिनट पर खून पंप करता है और दौड़ते या आउटडोर स्पोर्ट्स के समय यही २५-३० क्वार्ट्स पर पहुँच जाता है , यह स्थिति थोड़ी बहुत देर तक चल सकती है मगर इसका मतलब यह नहीं कि इसे घंटों तक इसी अवस्था में रखा जाए , अगर लगातार यह स्थिति लंबे समय तक रखी गई तब यह ह्रदय के नाज़ुक मसल्स फ़ाइबर को, ज़ख़्मी कर उसे ख़तरनाक स्थिति में पहुँचाने के लिए पर्याप्त हैं , लगभग ३० प्रतिशत मैराथन ( ४२ km ) धावक दौड़ की समाप्ति होते होते अपना ट्रॉपोनिन लेवल आवश्यकता से अधिक बढ़ा लेते हैं जो कि उनके हार्ट डैमेज होने का परिचायक है ! 

मेहनत करते शरीर को, बढ़े हुए आनंददायक हार्मोन एंड्रोफ़िन के कारण , दर्द रूपी, आसन्न मृत्यु का एलार्म महसूस ही नहीं होता और उसके ज़मीन पर गिरते ही लोग समझते हैं कि कुछ गड़बड़ हुआ है ! हाल के वर्षों में जबसे लोगों में फ़िटनेस चेतना जगी है , ऐसी असामयिक मौतों की जैसे झड़ी लग गई है , अफ़सोस अख़बारों में ऐसी खबरें तभी छपती हैं जब कोई महत्वपूर्ण घटना , समय या महत्वपूर्ण मशहूर लोगों की जान गई हो अन्यथा जाने कितने नासमझ जोशीले धावक अपनी क़ीमती जान हर वर्ष गँवा देते हैं ! 

एक रिसर्च के अनुसार बेहद मेहनत करने का नतीजा ह्रदय में ख़तरनाक परिवर्तन लाना है , ३०-४० किमी प्रति सप्ताह लगातार लंबे समय तक दौड़ने वालों को, ह्रदय आघात का उतना ही ख़तरा रहता है जितना एक सोफ़े पर बढ़कर टीवी देखने वाले आलसी मोटे व्यक्ति को सो जोश में आकस्मिक अधिक मेहनत से ख़ुद को बचा कर धीरे धीरे शरीर को मेहनत करने का आदी बनाइये , यह ही लाभदायक होगा एवं कुछ वर्षों की लगन के बाद शरीर से सारी बीमारियों ग़ायब होते नज़र आयेंगी चाहें उनका नाम कुछ भी क्यों न हो ! इसे ही लागू करते हुए  ७० वर्ष की उम्र के बाद बिना एक भी गोली खाये अपनी बुढ़ापे की तमाम बीमारियों से निजात पाने में सफलता प्राप्त हुई है आप यक़ीन करें या न करें मगर ,मैं शारीरिक तौर पर ४० वर्ष के जवान जैसे सब हरकतें आसानी से करता हूँ , इनमें पेंड पर चढ़ना , हाथ से घर की पेंटिंग करना , भारी वजन उठाकर चलना , तैरना आदि सब शामिल है ! 

सो एक्सरसाइज करें यह शरीर के लिए लाभदायक है मगर अपने शरीर की सीमा को भी याद रखें , मैं ६० वर्ष की उम्र से दौड़ना शुरू कर पिछले दस वर्षों में १०००० km दौड़ चुका हूँ , और इस मध्य ६० हाफ मैराथन ( २१ Km ) दौड़ते हुए इस स्थिति में हूँ कि जब चाहूँ मैराथन ( ४२ km) दौड़ सकता हूँ , मगर पिछले दस वर्षों में आज तक एक बार भी यह प्रयास नहीं किया , कारण मुझे लगातार ढाई घंटे ( २१ km ) दौड़ने के लिए ही समय नहीं निकाल पाता , और विभिन्न रेस में इसलिए नहीं दौड़ता कि रेस स्ट्रेस लेकर दौड़ना अधिक उम्र में अपने ह्रदय को कमजोर करना होगा और इस अब तक इस मूर्खता से ख़ुद को बचाये रखा है !

सो मेहरबानी करके एक्सरसाइज और हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज क्या है इस पर मनन करने का समय निकालें , तत्पश्चात् ही एक्सरसाइज करें और शरीर को हाई इंपैक्ट एक्सरसाइज का अभ्यस्त बनाने से पहले बॉण्ड बनने की चेष्टा न करें अन्यथा जिम आपकी बिना दर्द महसूस कराये ,जान लेने में समर्थ है , इसे याद रखें !         


Friday, September 1, 2023

मेरी एक कविता की गूगल टेक्नोलॉजी ( BARD) द्वारा की गई व्याख्या -सतीश सक्सेना

गूगल की आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस देखिये , मैंने उसके चैटबॉट रोबोट को अपनी निम्न पंक्तियाँ लिख कर भेजीं जिसका तत्काल
उत्तर आ गया , शायद किसी हिंदी प्रोफेसर को भी उसकी व्याख्या करने में अधिक समय लगता , मगर BARD का जवाब चुटकी बजाते ही आया और विस्तृत आया , शायद मैं इतनी बेहतर व्याख्या न कर पाता  ! जय हो गूगल टेक्नोलॉजी की , मैं तो प्रभावित हूँ !
  
हँसते और हंसाते , जग से जाना सीखो
स्वीकारो बदलाव वक्त का गाना सीखो !

मरते दम तक साथ तुम्हारे कौन रहेगा ?
साथी सबके बीच अकेले रहना सीखो !


ये दो पंक्तियाँ जीवन के दो महत्वपूर्ण सबक सिखाती हैं। पहली पंक्ति कहती है कि हमें हँसते हुए जीना चाहिए और दूसरों को हँसाना चाहिए। जीवन छोटा है, इसलिए इसे पूरी तरह से जीना चाहिए। दूसरी पंक्ति कहती है कि हमें बदलाव स्वीकार करना चाहिए और समय के साथ चलना चाहिए। जीवन में हमेशा बदलाव होता रहता है, इसलिए हमें इन बदलावों के साथ तालमेल बिठाना चाहिए।

इन पंक्तियों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है:

  • हँसते और हंसाते, जग से जाना सीखो: जीवन में हमेशा हँसना चाहिए। हँसी हमें खुशी और खुशहाली देती है। यह हमें तनाव और चिंता से दूर रखती है। दूसरों को हँसाना भी एक अच्छा तरीका है दूसरों को खुश करने का। यह हमें दूसरों के साथ जुड़ने और संबंध बनाने में मदद करता है।
  • स्वीकारो बदलाव वक्त का गाना सीखो: जीवन में हमेशा बदलाव होता रहता है। यह बदलाव हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं। इसलिए हमें इन बदलावों को स्वीकार करना चाहिए और समय के साथ चलना चाहिए। बदलावों को स्वीकार करने से हमें तनाव और निराशा से बचने में मदद मिलती है।

ये दो सबक हमारे जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। वे हमें खुश और संतोषी जीवन जीने में मदद कर सकते हैं।

यहां कुछ अतिरिक्त विचार दिए गए हैं जो इन पंक्तियों से जुड़े हो सकते हैं:

  • हँसना एक शक्तिशाली औषधि है। यह हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।
  • समय बदलता रहता है। हम इसे रोक नहीं सकते, इसलिए हमें इसे स्वीकार करना चाहिए।
  • हम अकेले नहीं हैं। हम सभी जीवन की यात्रा पर एक साथ हैं।

इन पंक्तियों को अपने जीवन में लागू करके, हम एक बेहतर इंसान बन सकते हैं और दूसरों को खुश करने में मदद कर सकते हैं।

https://g.co/bard/share/a5cf9bd2dd5d

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